राजधानी रायपुर समेत पूरे छत्तीसगढ़ में महिलाओं और लड़कियों के साथ हिंसा की समस्या है। उनका नैतिक अपमान हमारे समाज के लिए कलंक है। महिलाओं के समावेशी, समतामूलक तथा संवहनीय विकास में हिंसा बाधक न बने, इसके लिए राज्य सरकार की ओर से कई प्रयास किए गए हैं। कई कानून बनाए गए हैं। छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां महिलाओं को यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, टोनही प्रताड़ना, छेड़खानी, तस्करी, अपहरण जैसे अपराधों से बचाने के लिए टोल फ्री नंबर 181 रामबाण साबित हुआ है। आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले तीन साल के भीतर इस नंबर पर छह हजार 148 महिलाओं ने अपनी शिकायत दर्ज कराई । इनमें से तीन हजार से अधिक महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए 181 टोल फ्री नंबर पर काम किया गया है।
181 की टीम बताती है कि यह हिंसा है : 181वुमेन हेल्पलाइन प्रबंधक मनीषा तिवारी ने नईदुनिया से चर्चा में बताया कि 181 टोल फ्री नंबर पर टीम निरंतर महिलाओं के प्रति हो रही हिंसा को रोकने के लिए काम रही है। 99 प्रतिशत महिलाओं को आज भी पता नहीं है कि उनके साथ किस तरह का अपराध किया जा रहा है।181 की टीम उन्हें काउंसिलिंग और परामर्श के लिए ले जाती है। न्यायालय में क्या-क्या विकल्प है और उन्हें किस तरह के विधिक सहायता मिल सकती है इसके लिए भी जानकारी देते हैं। टोल फ्री नंबर 181 पर चौबीस घंटे लोगों को मदद मिलती है।
तीन साल पहले हुई 181 टोल फ्री नंबर की शुरुआत : छत्तीसगढ़ में 25 जून 2016 से महिलाओं के लिए टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर 181-सखी की शुरुआत हुई। हेल्पलाइन शुरू करने का मकसद था कि हर तरह के अपराध के खिलाफ महिलाओं की मदद करना। आंकड़ों को गौर करें तो राजधानी समेत प्रदेश भर में औसत छह महिलाएं रोज टोल फ्री नंबर 181 पर घरेलू हिंसा, बलात्कार और अपहरण की शिकायतें दर्ज करा रही हैं। खतरे की स्थिति में सुरक्षा के साथ महिलाएं किसी भी प्रकार की सहायता के लिए इस हेल्पलाइन का उपयोग कर सकती हैं। इसमें आपातकालीन चिकित्सा और तत्कालीन पारिवारिक परामर्श की आवश्यकता भी शामिल है। यह सेवा महिला पुलिस स्टेशनों, राज्य महिला आयोग, परिवार परामर्श केंद्र, गैर-सरकारी संगठनों, कानूनी सेवा केंद्रों, आश्रम घरों, चिकित्सा और कानूनी विशेषज्ञों के साथ एकीकृत है। दिलचस्प बात यह है कि 1388 रायपुर में सबसे अधिक घरेलू हिंसा के मामले सिर्फ टोल फ्री नंबर 181 में दर्ज हुई।
महिलाओं के काम आ रहा कानून
यह सही है कि अब महिलाएं जागरुक हो रही हैं। घरेलू हिंसा अधिनियम 2005,महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न निवारण अधिनियम, मातृत्व लाभ अधि.छत्तीसगढ़ टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम 2005, अनैतिक व्यापार निवारण अधि. 1956 समेत कई कानून हैं जिनके प्रति महिलाओं को और जागरुक करने की जरूरत है