अब सेब, स्ट्राबेरी, ग्रीन टी और कॉफी भी पैदा कर रहा छत्तीसगढ़

रायपुर। प्रदेश की पहचान अब सिर्फ धान तक सीमित नहीं है, बल्कि दूसरे राज्यों के फलों की पैदावार भी जिले में शुरू हो गई है। सेब, स्ट्राबेरी, चायपत्ती, कॉफी आदि आने वाले दिनों में स्थानीय बाजार में उपलब्ध होने लगेंगे। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया कि प्रदेश की आबोहवा में अन्य राज्यों के कई फलों की पैदावार ली जा सकती है। इसके बाद कुछ किसानों ने फसल लेना भी शुरू कर दिया है।

जगदलपुर में स्ट्राबेरी

जगदलपुर कृषि विज्ञान केंद्र में लगभग पांच वर्ष पहले फ्रांस की स्ट्राबेरी की फसल लेने का सफल ट्रायल किया गया। यहां उगाई गई स्ट्रॉबेरी की मिठास और खुशबू वैसी ही है जैसी फ्रांस और उत्तरी अमेरिका की स्ट्राबेरी में होती है। शीतोष्ण जलवायु के इस फल को जगदलपुर में नवंबर से मार्च के बीच लिया जाता है। इनके पौधों को 16 से 27 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है।

जशपुर में ग्रीन टी

जशपुर जिले में सात वर्ष पहले आसाम से लाकर चाय की खेती शुरू की गई। ग्रीन ट्री की फसल लगाने के बाद अब इससे दानेदार चायपत्ती बनाने की तैयारी भी शुरू हो गई है। यहां लगभग चार एकड़ में चाय की खेती की जा रही है, जिससे हर महीने एक क्विंटल ग्रीन टी का उत्पादन हो रहा है।

दरभा में कॉफी

बस्तर में आंध्रप्रदेश की फसल कॉफी पैदा की जा रही है। तीन साल पहले बस्तर हॉर्टिकल्चर कॉलेज की जमीन में लगवाए गए कॉफी के पौधे अब फल देने लगे हैं। दरभा इलाके के घने जंगलों में दो एकड़ में कॉफी के पौधे रोपे गए हैं। इसे जल्द ही मार्केट में लाया जाएगा।

मैनपाट में सेब

हिमांचल प्रदेश में सेब की पैदावार की जाती है। उसी तरह मैनपाट में भी सेब की फसल ली जा रही है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रताप राठिया के अनुसार आलू एवं समशीतोष्ण फल अनुसंधान केंद्र मैनपाट में 2013-14 में सेब की कम ठंड (लो चिलिंग) में होने वाली किस्मों- अन्ना, एचआर-99 का परीक्षण किया गया। हिमांचल प्रदेश के एक विवि से ग्राफ्टिंग किये हुए पौधे लाकर लगाए गए थे। वर्तमान में अनुसंधान केंद्र में सेब के 350 पौधे हैं। इस वर्ष 16 किलो प्रति पौधा फल मिला है।

रिसर्च के दौरान पाया गया कि प्रदेश में कई जिले की जलवायु अन्य राज्यों की फसल, फलों के लिए अनुकूल है। बस थोड़ा रिसर्च और रिस्क लिया गया, सफलता मिलती गई । इन फसलों की पैदावार लेने पर किसानों के आय बढ़ेगी। – डॉ. संजय पाटील, कुलपति, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय

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