यूपी
उत्तर प्रदेश निकाय चुनावों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी ने शानदार जीत हासिल की, लेकिन पार्टी के लिए पश्चिम यूपी अच्छी खबर नहीं लेकर आया। खबर है कि मेरठ-सहारनपुर मंडलों से भाजपा ने नगर पालिका और पंचायत अध्यक्षों की 90 में से 64 सीटें गंवा दी। कहा जा रहा है कि क्षेत्र में खराब प्रदर्शन की बड़ी वजह टिकट बंटवारा रहा।
आंकड़े बता रहे हैं कि सीएम आदित्यनाथ के आक्रामक प्रचार का असर ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में खास नहीं रहा। मेरठ-सहारनपुर में मेयर की सीट को छोड़ दें, तो भाजपा खास प्रदर्शन नहीं कर पाई। यहां पार्टी के वल 26 सीटें ही हासिल कर सकी और बागपत, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद जैसे शहरों में निर्दलीय उम्मीदवारों का जलवा रहा। इन दोनों मंडलों में भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें बुलंदशहर के नगर निकायों से मिलीं।
दिग्गजों की मौजदगी
खास बात है कि रिटायर्ड जनरल वीके सिंह गाजियाबाद से हैं। वहीं, संजीव बालियान मुजफ्फरनगर से आते हैं। इनके अलावा नरेंद्र कश्यप गाजियाबाद, सोमेंद्र तोमर और दिनेश खटीक मेरठ से हैं। कुंवर बृजेश सिंह देवबंद, केपी मलिक बागपत, जसवंत सैनी सहारनपुर से हैं। गाजियाबाद, नोएडा में एक-एक और मेरठ में दो राज्यसभा सांसद भी हैं। भाजपा के संगठन महासचिव धर्मपाल बिजनौर से हैं। प्रदेश उपाध्यक्ष मोहित बेनीवाल शामली, राज्य मंत्री डॉक्टर चंद्रमोहन और अमित वाल्मीकि बुलंदशहर, बसंत त्यागी गाजियाबाद से आते हैं।
क्या टिकट है हार की वजह?
माना जा रहा है कि क्षेत्र में भाजपा टिकट बंटवारे के चलते हारी और इसे लेकर पार्टी में भी जमकर नाराजगी थी। बुलंदशहर में भाजपा ने एक साल पहले ही पार्टी में उम्मीदवारों को दो टिकट दे दिए। अब ऐसे में जिन पुराने कार्यकर्ताओं को अध्यक्ष पद का टिकट नहीं मिला, वह बागी बनकर मैदान में उतरे और वोट हासिल किए। जेवर सीट पर भी इसी तरह की स्थिति बनती देखी गई। यहां चुनाव से कुछ दिन पहले ही पार्टी में शामिल होने वाले को उम्मीदवार बना दिया गया। नतीजा यह हुआ कि बगावत के चलते पार्टी चौथे स्थान पर आ गई।