यह किसानों के साथ षड्यंत्रपूर्ण धोखाधड़ी है…अनिल पुरोहित

एक साल का शासनकाल पूरा कर चुके प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और प्रदेश कांग्रेस के नेता जश्न मनाने का अधिकार भले ही जता लें, लेकिन उन्हें इस बात का सबसे अधिक अपराधबोध भी होना चाहिए कि जिन अन्नदाता किसानों को लुभाकर उन्होंने सत्ता की दहलीज में दाखिला लिया है, वही अन्नदाता किसान संभवत: अपने पूरे जीवन की सर्वाधिक यंत्रणा के दौर से इसी कांग्रेस सरकार के कार्यकाल की पहली सालगिरह पर जूझता हुआ दिख रहा है। प्रदेश का हर किसान आज खुद को छला हुआ और ठगा-सा पा रहा है। और सिर्फ किसान ही नहीं, प्रदेश का हर वर्ग और हर कोना मौजूदा प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली और हर वादे में ‘अगर-मगरÓ की प्रवृत्ति से उपजी निराशा के चलते सिसकियां भरता हुआ नजर आ रहा है तो यह लाजिमी है कि प्रदेश सरकार और कांग्रेस के स्वनामधन्य नेताओं को जश्न मनाने से ज्यादा अपने कार्यकाल की समीक्षा करके उसमें आवश्यक सुधार लाने की फिक्र करनी चाहिए।
पर, यहां बात किसानों की ही करें, क्योंकि कर्जमाफी, दो साल के बकाया बोनस भुगतान और 25 सौ रुपये प्रति क्विंटल की दर से किसानों का पूरा धान हर साल खरीदने का न केवल वादा किया था कांग्रेस ने, अपितु गंगाजल हाथ में लेकर और गाय-बछिया की पूंछ पकड़कर कसम तक खाई थी, लेकिन एक साल बीतते-न-बीतते प्रदेश की सरकार हांफने लगी है। हर किसान का हर कर्ज पूरा माफ करने का वादा ही कांग्रेसी-पूतों के पांव पालने में दिखा चुका था। पहले सिर्फ एक साल का अल्पकालीन ऋण ही माफ हुआ, वह भी सहकारी व ग्रामीण बैंकों का। फिर जब विरोध के स्वर उठने लगे तो दीगर बैंकों के ऋण माफ करने की पहल हुई पर वह भी आधे-अधूरे मन से। किसान इस चक्रव्यूह में ऐसा उलझा कि अब नए कर्ज के लिए वह परेशान हो गया। रही बात भाजपा शासनकाल के दो साल के बकाया बोनस के भुगतान की, तो एक साल पूरे होने के बाद भी वह राशि किसानों को नहीं मिली है। बोनस राशि का भुगतान तो छोडि़ए, कोई कांग्रेस नेता अब उसकी बात तक नहीं कर रहा है! यदि कांग्रेस नेताओं को लग रहा है कि प्रदेश का किसान शायद इस वादे को भूल जाएगा, तो कांग्रेस और प्रदेश सरकार की यह बड़ी भूल होगी।
लेकिन इनसे भी बड़ी यंत्रणा तो किसान अब भोगता हुआ नजर आ रहा है। किसानों की यह पीड़ा प्रदेश सरकार के एक साल के कार्यकाल को कलंक -कथा बताने के लिए पर्याप्त है। दरअसल जब 25 सौ रुपये प्रति क्विंटल पर धान खरीदने का वादा कांग्रेस ने किया, तभी से यह सवाल उठ रहा था कि आखिर इसके लिए वित्तीय प्रबंधन कैसे होगा? प्रदेश के मतदाता न भूलें कि तब कांग्रेस के नेता खुद को कुशल वित्तीय प्रबंधक बताते हुए आंकड़ों के साथ यह सारा प्रबंध कर लेने का दावा करते प्रदेश भर में धूम रहे थे। तब उन्होंने यह नहीं कहा कि केन्द्र सरकार की रजमंदी से हम अपनी कीमत पर धान खरीदेंगे। कांग्रेस का दांव चल गया और कांग्रेस एक लंबे वनवास के बाद सत्ता में लौट गई। इसी के साथ कांग्रेस के लोगों को यह अतिविश्वास हो गया कि समूचा देश परिवर्तन चाहता है, और इसके लगभग चार-पांच माह बाद होने वाले लोकसभा की चुनावी जंग जीतने के ख्वाब कांग्रेस की आंखों में पलने लग गए। लेकिन लोकसभा के नतीजों से कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष की राजनीतिक जमीन ही खिसक गई थी। प्रदेश सरकार संभवत: तभी से धान खरीदी के मुद्दे पर अनपी जान छुड़ाने के दांव-पेंच आजमाने में जुट गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर तमाम तरह के दबाव तक बनाने में विफल रही प्रदेश सरकार अंतत: हांफने लगी और उसके हाथ-पैर फूलने लगे। यहीं से प्रदेश के अन्नदाता किसानों का सर्वाधिक बुरा दौर शुरू हो गया जो अब सामने पूरा प्रदेश देख रहा है।
प्रदेश के किसानों का जो एक-एक दाना धान पूर्ववर्ती भाजपा सरकार बिना कोई हीलाहवाला किए खरीद रही थी, आज प्रदेश सरकार ने उस पूरी खरीदी-प्रक्रिया को ही इतना पेचीदा बना दिया कि हर किसान खून के आंसू रोने पर विवश है। सबसे पहले तो धान की कीमत 1815-1835 रुपये प्रति क्विंटल की। फिर एक नवम्बर के बजाय एक दिसम्बर से धान खरीदना तय किया। प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल खुद को किसान बताकर भी किसानों को इतनी जलालत और परेशानियों से जूझने को विवश कर दें, यह सचमुच हैरत की बात है। अपनी नीयत, नीति और नेतृत्व-क्षमता की विफलता से बदहवास सत्ताधीशों का यह हाल है कि वे रोज अपने ही बनाए नियम और मापदंडों को बदल रहे हैं। रकबा घटाकर, धान खरीदी की लिमिट तय करके, किसानों को धान बेचने के लिए और धान का भुगतान पाने के लिए चक्कर-पर-चक्कार कटवाया जा रहा है। आखिर सरकार बताए कि सितंबर-अक्टूबर में ऋण पुस्तिका के आधार पर पंजीयन करने के बाद ऐसी क्या आफत आई कि भुईयां पोर्टल को रकबे का आधार बनाया? इस पोर्टल में तो कई स्थानों पर रकबे का रिकार्ड अपडेट तक नहीं किया गया है। अब ऋण पुस्तिका जारी सरकार ने की तो फिर अपने ही दस्तावेज को रकबे का आधार नहीं मानकर प्रदेश सरकार क्या साबित कर रही है? अब किसानों को उत्पादन प्रमाण पत्र लाने कहा जा रहा है। सरकार कह रही है लिमिट खत्म, पर अफसर कह रहे हैं कि लिमिट में ही धान खरीदी करें वर्ना एफआईआर करेंगे। कुल मिलाकर किसान छला जा रहा है। तमाम दांव-पेंच अपनाकर क्या प्रदेश सरकार किसानों का पूरा धान खरीदने से बचने का काम कर रही है? और, अगर सरकार ऐसा कर रही है तो यह किसानों के साथ षड्यंत्रपूर्ण धोखाधड़ी करने जैसा होगा। प्रदेश के मुख्यमंत्री को पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की इस नसीहत को गांठ बांधकर रखें कि जो किसान बीज बोना जानता है, उसे फसल की लुआई करना भी आता है।

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