22 जनवरी की सुबह 7 बजे तिहाड़ जेल में निर्भया के दोषियों को फांसी पर लटकाया जाएगा। ठीक 2 घंटे तक चारों दोषी फंदे पर झूलते रहेंगे। इसके बाद डॉक्टर नाड़ी की जांच करने पहुंचेगा। मृत होने की पुष्टि के बाद इसी डॉक्टर के सर्टिफिकेट के आधार पर जेल प्रशासन सजा देने वाले जज को सूचित भी करता है।
जेल प्रशासन के एक वरिष्ठ डॉक्टर के अनुसार, चार में से दो दोषियों की फंदे पर लटकने के बाद गर्दन जल्दी टूट जाएगी। संभावना है कि 10 से 15 मिनट में ही इनका काम तमाम हो सकता है। बाकी दोनों दोषी फांसी पर झूलने के बाद कुछ समय तक पैर फड़फड़ाते रहेंगे और इनके दम तोड़ने में वक्त लग सकता है।
डॉक्टर ने बताया कि जिनका शरीर 65 किलोग्राम से ज्यादा वजन का होता है, उनकी गर्दन जल्दी लंबी होती है। चिकित्सा विज्ञान भी यही कहता है। जेल की भाषा में गर्दन लंबी होने का मतलब होता है गर्दन टूटना। अक्षय और मुकेश का वजन क्रमश: 52 और 67 किलोग्राम के आसपास है। यह लगातार कम होता जा रहा है
इसीलिए उन्होंने संभावना जताई है कि इन दोनों दोषियों की गर्दन लंबी होने में थोड़ा ज्यादा वक्त लग सकता है। अन्य दोषी पवन का वजन 81 किलोग्राम बताया जा रहा है। उन्होंने बताया कि 65 किलोग्राम से कम वजन वालों की मौत जल्दी नहीं होती है। फांसी पर झूलने के बाद गर्दन लंबी होने में वक्त लगता है। वे अपने पैर फड़फड़ाते रहते हैं। इसीलिए फांसी पर लटकाने के बाद दोषी की नाड़ी जांच करने के बीच 2 घंटे का अंतराल रखा जाता है।
तिहाड़ जेल में ऐसा पहले भी हो चुका है। 31 जनवरी 1982 को कुख्यात हत्यारे रंगा और बिल्ला को फांसी दी गई थी। तिहाड़ जेल के पूर्व प्रवक्ता सुनील गुप्ता की किताब ब्लैक वारंट में यह पूरा किस्सा लिखा है। इस किताब के अनुसार, 31 जनवरी 1982 को सुबह 5 बजे रंगा ने स्नान किया था, बिल्ला ने नहीं।
तत्कालीन जेल अधीक्षक आर्य भूषण शुक्ल ने लाल रुमाल हिलाया तो जल्लाद ने लीवर खींच दिया। 2 घंटे बाद जब डॉक्टरों ने जांच की तो बिल्ला मृत पाया गया, लेकिन रंगा की नाड़ी तब तक चल रही थी। सांस रोकने या शरीर का वजन कम होने से ऐसा हो सकता है। जब रंगा की सांस चल रही थी तो उसके पैरों को दोबारा नीचे जाकर खींचा गया था। किताब में लेखक ने दावा किया है कि उस वक्त वे वहां मौजूद थे।