सड़क दुर्घटना में अपना पैर और हाथ पूरी तरह फ्रैक्चर हुए मरीज के परिजन ने अपनी दुख की कथा कुछ इस तरह व्यक्त की.

गरियाबंद के एक मरीज को एम्स ने पूरे दिन घुमाने के बाद बेड नहीं दिया. मरीज कड़ाके की ठंड में रात 3:00 बजे एम्स से एमएमआई गया. मरीज की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. इसके बावजूद एम्स के डॉक्टरों और कर्मचारियों के बर्ताव और इलाज न करने से नाराज होकर मरीज को एम एम आई जाना पड़ा.

सड़क दुर्घटना में अपना पैर और हाथ पूरी तरह फ्रैक्चर हुए मरीज के परिजन ने अपनी दुख की कथा कुछ इस तरह व्यक्त की.

…??..?………….

*मोदी जी*
सब कुछ ठीक नहीं है मोदी जी!
गरियाबंद का जिला अस्पताल तो रायपुर का एम्स ठीक नहीं है!

साफ सफाई तो ठीक है!
दीवारों की रंगाई पुताई भी ठीक है!
आपके उपलब्ध कराएं संसाधन भी ठीक है!
डॉक्टरों का चेहरा भी ठीक है!
बॉडी लैंग्वेज और कपड़ों का पहनावा भी ठीक है!
पर कुछ डॉक्टरों के हितकारी अप्रिय वचन मे स्नेह जरा कम है!
कॉमन सेंस और हेल्पिंग नेचर बहुत कम है!
कम है!
इच्छा शक्ति कम है!
अपने दायित्व के प्रति जागरूकता कम है!
मरीज के परिजनों को समझने और समझाने का अनुभव भी बहुत कम है!
यू रात 3:00 बजे मरीज को खुले सर्द रात में दूसरे हॉस्पिटल में ले जाने का कोई शौक नहीं था!
जेब में पड़े गुप्ता से उधार लिए 10000 रुुप्यो का रौब नहीं था!
किसी का शिकायत करने का भी कोई शौक नहीं था!

*जरूरत था!*
आपके सहयोग का!
सार्थक जवाब का!
उचित सुझाव का!
ठंड में ठिठुरते मरीज को कंबल का!
टूटे पैर को सहारा देने के लिए दो तकियो का!
एक निश्चित स्थान का!
*क्या दिए*
6 घंटों का इंतजार!
मरीज के साथ उनके परिजनों को ठंड की मार!
एक झूठा आश्वासन भी नहीं दे पाए!
और एक कोरा कागज शिकायत के लिए मेरे सामने बढ़ा आए!
बड़ी सहजता से कह गए जाओ!
मेरा शिकायत कर आओ!
जो करना है कर आओ!
अरे भैया ऐसा बोलकर हमें ना डराओ!
अपने मां-बाप के संस्कारों को यूं ना लजाओ!
अपने पेशे का स्वाभिमान ना घटाओ!
कुछ तो लोक व्यवहार की बातें अपने बड़ों से सीख कर आओ!

*इतना तो जरूर है!*

मैं शिकायत करने का आदि नहीं हूं!
पर कुछ गलत हो और मैं चुप रहूं ऐसा मैं आदमी नहीं हूं!
अनावश्यक उलझने वाला कहीं का विवादी नहीं हूं!
पूछते हो हमारी गलती क्या है मोबाइल में बैटरी कम है नहीं तो मैं गिनआता!
बहुत छोटी पर बड़ी गलती समझ में आता!
गेट पर खड़े गॉड से सहयोग मांगने की अपेक्षा अपने शहर से दो-चार हेमाल साथ में ले आता!

सरकारी कंबल चद्दर और तकिया मांगने से अच्छा अपने रिश्तेदारों से ही मांग लाता!
पता नहीं था ऐसी लचर व्यवस्था होगी!
नहीं तो मरीज को आपके पास कभी ना लाता!
जेब से पैसा जाता तो जाता!
इलाज तो समय पर शुरू हो जाता!
पर खेद है..

सवाल

क्या एम्स जैसे अस्पताल में गरियाबंद से आए मरीज का इलाज नहीं होगा. क्या गरीब मरीज को इलाज के लिए रात 3:00 बजे दूसरे अस्पताल में जाना पड़ेगा. क्या इसी व्यवस्था के लिए रायपुर में एम्स को बनाया गया था.

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