रायपुर : छत्तीसगढ़ के चांपा के कोसा और कोसा उत्पादों की ख्याति देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक फैली है, परंतु अब चांपा के कोसा और कोसा उत्पादों को कोरबा के उमरेली ब्रंाड कोसा उत्पादों से चुनौती मिलने लगी है। कोरबा जिले के करतला विकासखंड के उमरेली गांव में 40 महिला सदस्य नियमित रूप से कोसा उत्पादन इकाई में धागा निकालने, धागे को रंगने, कपड़े की डिजाईनिंग और उसे बुनने के काम में लगी हैं। उमरेली गांव के नाम पर ही कोरबा के इस कोसा और उसके उत्पादों को उमरेली ब्रांड नाम से बेचा जा रहा है। प्रदेश और प्रदेश के बाहर लगने वाले बुनकर मेलों, सरस मेलों, क्राफ्ट और व्यापार मेलों में श्रद्धा सुमन महिला ग्राम संगठन द्वारा उमरेली ब्रांड कोसा उत्पादों की बिक्री की जा रही है और उत्पादन लागत से 30 प्रतिशत अधिक तक लाभ कमाया जा रहा है। उमरेली ब्रांड कोसा से स्वसहायता समूह की चालीस महिलाओं को ही नहीं बल्कि गांव के 24 समूहों के 265 परिवारों को नियमित रोजगार मिल रहा है। गांव के दो सौ से अधिक परिवार इस कोसा व्यवसाय में अपनी भागीदारी निभाते हैं।
श्रद्धा सुमन समूह की चालीस महिलाएं लगी कोसा उत्पादन एवं विक्रय में, 30 प्रतिशत तक हो रहा लाभ
श्रद्धा सुमन महिला ग्राम संगठन की अध्यक्ष श्रीमती माया देवांगन बतातीं हैं कि पहले गांव के लोग कोरबा से कोसा कूकून इकट्ठा कर चांपा के व्यापारियों को औने-पौने दाम में बेच देते थे। चांपा के व्यापारियों द्वारा कोसा के धागा को भी मनमाने दाम पर ग्रामीणों से खरीदा जाता था। जिला प्रशासन के सहयोग से गांव में ही स्वसहायता समूह का गठन कर कोसा प्रसंस्करण एवं उत्पादन इकाई की शुरूआत की गई। बिहान कार्यक्रम के तहत उमरेली में ही कोसा सिल्क एम्पोरियम भी शुरू किया गया। गांव के 24 समूहों को कोसा उत्पादन, प्रसंस्करण, धागाकरण, रंगाई, बुनाई, डिजाईनिंग आदि कार्यों का प्रशिक्षण दिलाया गया। पूरा काम सीख लेने के बाद जिला पंचायत कोरबा के द्वारा दो लाख रूपये की सहायता बिहान कार्यक्रम के तहत उपलब्ध कराई गई। छः महीने में ही समूह का काम, कोसा उत्पादों की क्वालिटी और लगन देखकर जिला खनिज न्यास मद से काम को और विस्तारित करने के लिए साढ़े चार लाख रूपये की सहायता भी उपलब्ध कराई गई। श्रीमती माया देवांगन ने बताया कि सदस्यों द्वारा तैयार किये गये कोसा साड़ी, चुनरी, साल, कुर्ता एवं अन्य कोसा सिल्क उत्पादों का विक्रय एम्पोरियम के साथ-साथ देश के विभिन्न राज्यों में आयोजित होने वाले व्यापार मेलों में भी किया जा रहा है। महिलाओं को इनकी उत्पादन लागत से 25 से 30 प्रतिशत तक का अतिरिक्त लाभ भी हो रहा है। हाल ही में पश्चिम बंगाल, झारखंड, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में लगे व्यापार मेलों में उमरेलिया ब्रांड कोसा उत्पादों की खूब मांग रही है और इन मेलों में समूह ने लगभग पांच लाख रूपये का व्यापार किया है।
समूह की सचिव श्रीमती उमा यादव सदस्य श्रीमती उर्मिला और उषा देवांगन भी अन्य दूसरी सदस्यों के समान मजदूर से मालिक बन अपने चेहरे पर आत्मविश्वास से भरी मुसकान बिखरते हुए बताती हैं कि जिस काम के लिए पहले मजदूरी के रूप में दो सौ से तीन सौ रूपये मिलते थे। आज उसी काम को ठीक से सीखकर कोसा से संबंधित कई प्रकार की साड़ियां, चुनरियां, सॉल, कुर्ते आदि बनाकर अब मालिक के रूप में एक हजार से तीन हजार रूपये तक कमा रहें हैं। श्रीमती उमा यादव ने बताया कि बड़े-बड़े शहरों के व्यापारी और आनलाईन मार्केटिंग कंपनियां भी उमरेली ब्रांड कोसा सिल्क की मांग करने लगी हैं।
कलेक्टर भी पहुंची थी केंद्र, बाउंड्रीवाल और फर्शीकरण की दी मंजूरी- कलेक्टर ने भी इस केन्द्र में पहुंचकर महिला समूह के सदस्यों से ट्रेनिंग, रेलिंग, कलरिंग, बुनाई सहित सभी कामों की जानकारी ली और अच्छा काम कर आत्मनिर्भर होने पर प्रोत्साहित किया। कलेक्टर ने समूह की मांग पर केन्द्र के लिए बाउंड्रीवाल बनाने और सामने की तरफ फलोरिंग कराने की भी स्वीकृत दी। उन्होंने इस कार्य में और अधिक लोगों को जोड़ने का आव्हान किया।