- आप सत्ता में वापसी तो भाजपा चाहेगी वनवास खत्म करना
- कांग्रेस को शीला दीक्षित सरकार के कार्यकाल में हुए विकास का सहारा
- दिल्ली का विकास, शाहीन बाग, मुफ्त बिजली-पानी, प्रदूषण, ट्रैफिक समेत कई मुद्दे पर दिल्ली के मतदाता करने निकलेंगे फैसला
विस्तार
दिल्ली का चुनाव हर दिन नया करवट लेता रहा। कभी कोई तो कभी कोई मुद्दे मतदाताओं के बीच उछलते रहे। हर दिन राजनीतिक मुद्दे बदले और वोटरों के सामने राजनीतिक दलों ने पासे पर पासे फेंकते रहे। आप व भाजपा ने एक दूसरे को राजनीतिक पटकनी देने के लिए हर उस हथकंडे अपनाए जिससे वह वोटर को अपने पक्ष में कर सके। वहीं कांग्रेस ने भी दोनों की लड़ाई में चुप्पी साधे हुए अपने परंपरागत वोटरों के बीच पहुंचती रही।
इसी बीच दिल्ली की सबसे बड़ी समस्या प्रदूषण और लगातार हो रहे अग्निकांड पर दोनों पार्टी एक दूसरे को कठघरे में खड़े करती रही। प्रदूषण से राहत देने के मामले में दोनों पार्टियां अपना पक्ष मजबूत करती रही। चुनाव की तारीख जैसे-जैसे करीब आती गई और अचानक से नागरिकता संशोधन कानून पर दिल्ली की राजनीति गरमा गई।
एक विशेष वर्ग को साधने की कोशिश में जहां आप विधायक व कांग्रेस के पूर्व विधायक समर्थन में आ गए तो भाजपा ने अपना राष्ट्रवादी कार्ड खेल दिया। हिंदुत्व का एजेंडा जैसे ही भाजपा ने अपनाया दिल्ली की राजनीति करवट लेने लगी। इस कार्ड को लेकर भाजपा आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान में जुट गई। इस स्थिति में भाजपा बराबरी की लड़ाई में पहुंच गई।
शाहीन बाग मुद्दे के बार आम आदमी पार्टी के बिजली-पानी और बसों में महिलाओं को मुफ्त सफर कराने का कार्ड पर भारी पड़ता दिखा। हालांकि शुक्रवार को चुनाव वाले दिन इसे ध्यान में रख कर मतदाता मतदान केंद्रों पर पहुंचेंगे। उधर कांग्रेस भी अपने रफ्तार से शाहीन बाग मुद्दे पर बीच का रास्ता अख्तियार कर विशेष वर्ग के साथ शीला दीक्षित के विकास पर वोट मांगती दिखीं। इस बीच मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी कौन होगा इस पर भी लंबी राजनीति चली।