नई दिल्ली. अरविंद केजरीवाल लगातार तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। शीला दीक्षित के बाद यह पहली बार होगा, जब दिल्ली में कोई नेता लगातार तीसरी बार शपथ लेगा। भाजपा ने जब 2019 का लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही चेहरे पर लड़ा और उसे 303 सीटें मिलीं तो आम आदमी पार्टी ने इसी से सबक लिया। जिस तरह भाजपा ने प्रचारित किया था कि मोदी के सिवाय देश में कोई विकल्प नहीं है, उसी तरह आप ने भी दिल्ली विधानसभा चुनाव में यह प्रचारित किया कि केजरीवाल के सिवाय कोई विकल्प नहीं है। इसे टीना यानी देयर इज़ नो अल्टरनेटिव (TINA) फैक्टर कहते हैं। आप का प्रचार इसी पर केंद्रित रहा।
देयर इज़ नो अल्टरनेटिव : केजरीवाल बनाम कौन?
लोकसभा चुनाव में मोदी को आगे रखते हुए भाजपा ने राष्ट्रवाद का मुद्दा उठाया। इसी तरह आप ने दिल्ली के चुनाव में केजरीवाल का चेहरा आगे रखते हुए बिजली-पानी जैसे मुद्दों पर जमकर प्रचार किया। पार्टी ने यह संदेश दिया कि ये चुनाव देश के लिए नहीं, स्थानीय मुद्दों के लिए हैं। आप के प्रचार में बार-बार यह सवाल उठाया जाता रहा कि भाजपा का सीएम कैंडिडेट कौन है। भाजपा के नए अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सभी 70 सीटों को कवर किया। गृह मंत्री अमित शाह पैदल घूम-घूमकर पर्चे बांटते दिखे, लेकिन इस बार पार्टी ने कोई सीएम कैंडिडेट घोषित नहीं किया। जबकि 2015 के चुनाव में भाजपा ने किरण बेदी को सीएम कैंडिडेट बनाया था।
केजरीवाल तब मोदी के खिलाफ मुखर थे, अब चुप हैं
2015 में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीती थीं। तब केजरीवाल प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ बहुत मुखर थे। जब उनके दफ्तर पर सीबीआई ने छापा मारा, तो केजरीवाल ने कहा था, ”मोदी राजनीतिक तौर पर मेरा सामना नहीं कर सकते, इसलिए इस तरह की कायरता दिखा रहे हैं। मोदी बताएं कि उन्हें कौन-सी फाइल चाहिए?”
हालांकि, 2017 में एमसीडी के चुनाव हुए। दिल्ली की तीनों एमसीडी को मिलाकर 272 सीटें हैं। भाजपा ने कुल 181 सीटें जीतीं। 2015 के विधानसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के बावजूद आप को तीनों में एमसीडी में कुल 49 सीटें ही मिलीं। यह आप के लिए टर्निंग प्वॉइंट रहा। इसके बाद केजरीवाल ने अपनी स्ट्रैटजी बदली। प्रधानमंत्री पर हमले कम कर दिए। 2019 के बाद केजरीवाल ने इस स्ट्रैटजी पर पूरी तरह से अमल कर लिया।
केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव में मोदी पर निजी हमले करने की कांग्रेस नेताओं की गलतियों को नहीं दोहराया क्योंकि वे लोकसभा में मोदी को चुनने वाले दिल्ली के वोटरों को नाराज नहीं करना चाहते थे। यहां तक कि जब पाकिस्तान के मंत्री फवाद हुसैन ने कहा कि देश के लोगों को मोदी को शिकस्त देनी चाहिए, तब केजरीवाल ने जवाब दिया कि मोदी जी मेरे भी प्रधानमंत्री हैं। दिल्ली का चुनाव भारत का आंतरिक मसला है और हमें आतंकवाद के सबसे बड़े प्रायोजकों का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं।
मुफ्त योजनाओं का प्रचार
हर महीने 20 हजार लीटर मुफ्त पानी, हर महीने 200 यूनिट बिजली मुफ्त देने और डीटीसी बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्रा जैसी योजनाओं को केजरीवाल सरकार ने जमकर भुनाया। आप का दावा है कि इन योजनाओं के चलते दिल्ली के 80% लोगों को फायदा हुआ। इसमें बड़ा तबका गरीब और लोअर मिडिल क्लास है जो आप का वोट बैंक है।
आप के वोट काटने वाली कांग्रेस मुकाबले में नहीं थी
इस चुनाव में भाजपा को तब ज्यादा फायदा मिलता, जब आप के वोट काटने वाली कांग्रेस मुकाबले की स्थिति में होती। कांग्रेस लगातार दूसरी बार दिल्ली में शून्य पर है। पार्टी में नेतृत्व में कमी रही। यहां तक कि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित ने कहा, ”मुझे यकीन था कि कांग्रेस बदतर प्रदर्शन करेगी। मैं यह बात सितंबर से जानता था। दिल्ली के प्रभारी नेताओं ने ढिलाई दिखाई। दिल्ली कांग्रेस और एआईसीसी के दो-तीन नेता इस बर्बादी के जिम्मेदार हैं।”
शाहीन बाग : भाजपा इसी मुद्दे पर आप को घेर पाई
शाहीन बाग में सीएए के विरोध में दिसंबर से जारी प्रदर्शन ऐसा मुद्दा रहा, जिस पर भाजपा आप को घेर पाई। हालांकि, भाजपा ने दिल्ली चुनाव में प्रचार की शुरुआत 1800 अवैध कॉलोनियों को नियमित बनाने के मुद्दे से की थी। बाद में भाजपा ने शाहीन बाग के मुद्दे पर जमकर बयान दिए। मोदी ने एक रैली में शाहीन बाग आंदोलन पर कहा- ये संयोग नहीं प्रयोग है। 2015 के चुनाव में सिर्फ 3 सीटें जीतने वाली भाजपा को 10 सीटों का फायदा हुआ और वह 13 सीटों पर जीतती नजर आ रही है।