डोंगरगढ़। हेमंत महितकर नक्सली हमले में 3 मार्च 2017 को शहीद हुए थे । उनकी मां के हाथ में सफेद पोटली लेकर घूम रहीं हैं। थैले के अंदर क्या है, ये सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। इस थैले में एक मां 3 साल से अपने शहीद बच्चे की अस्थियां संभालकर रखी है। इस उम्मीद में कि जिस समाज और सरकार के लिए उसने अपने जान की बाजी लगाई। वो शासन-प्रशासन इनके साथ इंसाफ करेगा। जवान हेमंत महितकर नक्सली हमले में 3 मार्च 2017 को शहीद हुए। सरकार ने शहीद की याद में स्मारक बनाने का ऐलान किया। मां ने बेटे की शहीद अस्थियों को स्मारक के लिए संभाल कर रखा। लेकिन 3 साल बाद भी शहीद बेटे की प्रतिमा गांव में नहीं लग पाई।
प्रस्ताव था की गांव के स्कूल का नाम शहीद के नाम पर रखा जाएगा। गांव में एक शहीद स्मारक भी बनेगा। स्कूल के सामने ये आधा अधूरा स्मारक पड़ा है। ना शहीद के नाम का जिक्र और ना ही कोई पहचान। वो भी ऐसी जगह पर जहां स्कूल की नाली जाती है। ऐसी जगह पर वो अपने कलेजे के टुकड़ें की अस्थियां कैसे रखें। कई बार गुहार लगाई कि अभी बने जगह से थोड़ी दूर साफ जगह पर पर स्मारक बनाया जाए। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
स्कूल के नामकरण के लिए स्कूल विभाग ने प्रस्ताव भी बनाया। लेकिन जिस जगह का चयन किया गया, प्रशासन ने शहीद के परिजनों को जानकारी नहीं दी और पंचायत ने निर्माण करा दिया । स्कूल के प्राचार्य कहते हैं कि स्कूल का नाम शहीद के नाम पर करने के लिए कई बार प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है, लेकिन गांव की पंचायत में सहमति नहीं बनने की वजह से नामकरण नहीं हो पाया।
बेटे की तस्वीर को सीने से लगाए ये मां हर दरवाजे पर दस्तक दे चुकी है। लेकिन अब तक कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। पूरे मामले में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक गोरखनाथ बघेल कहते हैं कि शहीद का परिवार अलग जगह पर स्मारक चाहता है। जिसे प्रशासन को भेज दिया गया है।
शहीद की मां इन दिनों तंगहाली से गुजर रही हैं। खेत में फावड़ा लेकर खुद किसानी मजदूरी कर पेट पाल रही हैं। लेकिन वो सरकार से किसी तरह की आर्थिक मदद या सहानुभूति नहीं चाहती। बल्कि वो तो बस अपने बेटे की अस्थियों के लिए वो स्मारक चाहती हैं। जहां शहीद की आत्मा को शांति मिले और जिसे देखकर दूसरे युवा भी प्रेरणा लें सकें।