13 साल पहले चार वैज्ञानिकों ने दी थी कोरोना की चेतावनी, नजरअंदाज करना दुनिया को पड़ा भारी

पांच माह से दुनिया भर में हाहाकार मचाने वाले कोरोना वायरस (कोविड-19) को लेकर हांगकांग के चार वैज्ञानिकों ने 13 साल पहले ही अपने रिसर्च रिव्यू में दुनिया को आगाह कर दिया था। इन वैज्ञानिक ने चेतावनी दी थी कि बहुत जल्द ही चीन के वन्यजीव बाजार से सार्स जैसा ही एक वायरस जन्म ले सकता है।

इन वैज्ञानिकों की चेतावनी को नीति निर्माता व सभी देशों की सरकारों ने दरकिनार कर दिया। इस पर पीजीआई, पंजाब विश्वविद्यालय, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (नाइपर) जैसे प्रख्यात संस्थानों के वैज्ञानिकों ने बड़े सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि 13 साल पहले इस रिसर्च पर दुनिया अगर ध्यान देती तो आज पूरे विश्व को ये हालात नहीं देखने पड़ते। हजारों लोगों की जान बचाई जा सकती थी। कहा, इस महामारी ने पूरी दुनिया को कई दशक पीछे धकेल दिया है।

12 अक्तूबर 2007 को हांगकांग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक विसेंट सीसी चेंग, सुसन्ना केपी लाउ, पैट्रिक सीवाई वू और क्वॉक युंग यूएन का एक रिसर्च रिव्यू अमेरिकन सोसाइटी फॉर माइक्रो बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ था। इसमें इन वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में वायरस पर हुई रिसर्च का रिव्यू किया था। साथ ही निष्कर्ष निकाला था कि वर्ष 2002 में दक्षिणी चीन के वन्यजीव बाजार से सार्स जैसे वायरस का उदय हुआ है और आगे चमगादड़ आदि के जरिए कोविड- 2 वायरस फैल सकता है। इस वायरस का वर्तमान में नाम कोविड-19 है, जो वही है।

यह सार्स की फैमिली से ही है। वैज्ञानिकों ने रिसर्च रिव्यू में यह भी कह दिया था कि कोविड- 2 अन्य वायरसों से कई गुना ताकतवर होगा। कई अन्य विश्लेषण भी किए थे। वैैज्ञानिकों का मानना है कि कई जीवों से वायरस निकलकर चमगादड़ में पहुंचा और वह कई गुना ताकत लेकर बाहर निकला। जानवरों ने अपने बचाव के लिए वायरस विकसित किया है।
मालूम हो कि दुनिया भर के वैज्ञानिकों की ओर से वायरस पर किए गए शोध के बाद जो रिसर्च होता है, उसे रिव्यू कहा जाता है। यानी सभी रिसर्च का निचोड़। इन चार वैज्ञानिकों ने वही निचोड़ निकाला और दुनिया के सामने जर्नल के जरिए रख दिया। नियमत: इस जर्नल आलेख पर सरकारों व पॉलिसी मेकर्स को काम करना चाहिए था लेकिन वह सोते रहे। चीन ने तो आंखें मूंदी ही, उसके साथ पूरी दुनिया भी सोती रही।

क्या कहते हैं ट्राइसिटी के वैज्ञानिक

चेतावनी को दरकिनार करने का अंजाम दुनिया के सामने
रिसर्च जर्नल के जरिए दुनिया की चिंता के संकेतों को सामने रखा गया था। बावजूद इसके चीन में सार्वजनिक रूप से महामारी पैदा करने वाले वन्यजीवों को दूर नहीं रखा गया। वैज्ञानिकों की चेतावनी को नीति निर्माताओं द्वारा गंभीरता से नहीं लिया गया। यदि ऐसा होता तो आज हालात अलग होते। यह प्रकरण जांच का विषय है। साथ ही आगे के लिए भी सबक होगा

चीन समेत पूरी दुनिया को करना चाहिए था काम

Coronavirus

वैज्ञानिकों ने इस वायरस पर हुए रिसर्च का जो रिव्यू किया है उसके जरिए पॉलिसी मेकर आदि को आगाह किया गया था। इस पर चीन के साथ-साथ पूरी दुनिया को काम करना चाहिए था लेकिन आज के हालातों से लग रहा है कि काम नहीं हुआ। यह गंभीर लापरवाही बरती गई है। भविष्य में वैज्ञानिकों की बातों को सरकारों को कतई नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
विज्ञान व तकनीकी को गंभीरता से लेने की जरूरत
वर्ष 2007 में हांगकांग के वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि कोविड 2 वायरस का जन्म होगा तो वह कई गुना ताकतवर बनकर आएगा। पूरी दुनिया के प्रमुख लोगों ने इसे देखा लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया। यही कारण है कि आज पूरी दुनिया महामारी से घिरी हुई है। पूरा विश्व एक साथ कभी लॉकडाउन नहीं हुआ। पॉलिसी मेकर, सरकारों को वैज्ञानिकों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए था। साथ ही विज्ञान को गंभीरता से लेने की जरूरत है।

ग्रास रूट पर हुए रिसर्च को समझना होगा
वैज्ञानिक रिसर्च केवल इसलिए नहीं करते कि उन्हें प्रमोशन चाहिए, वह आगामी खतरों व संभावनाओं के बारे में पॉलिसी मेकर्स को बताते हैं। 13 साल पहले प्रकाशित हुए जर्नल आलेख को गंभीरता से लेने की जरूरत थी लेकिन वह नहीं हुई। आज हालात सबके सामने हैं। ग्रास रूट पर हुए रिसर्च को सरकारों व पॉलिसी मेकर्स को गंभीरता से लेने की जरूरत है।

जब चेताया था तो कहां सो रहे थे नीति निर्माता
वर्ष 2002-03 में सार्स वायरस आया था। आज उसी वायरस में कई अन्य वायरस मिले और वह ताकतवर बनकर पूरी दुनिया के सामने आ गया। इस खतरे के प्रति वैज्ञानिकों ने वर्ष 2007 में चेताया लेकिन इसको दरकिनार किया गया। सरकारों ने ध्यान नहीं दिया। आज स्थिति सभी के सामने है। जरूरत इस बात की है कि विज्ञान व तकनीक को गंभीरता से लेना होगा।

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