बाबा रामदेव की कोरोनिल पर विवाद के बाद जानें भारत में कैसे मिलता है नई दवा का लाइसेंस

योग गुरू रामदेव की कंपनी पतंजलि ने मंगलवार को एक कार्यक्रम में कोरोनिल टैबलेट और श्वासारि वटी नाम की दो दवाएं दुनिया के सामने पेश कीं। पतंजलि ने दावा किया कि इन दवाओं से कोविड-19 का इलाज किया जा सकेगा। पतंजलि योगपीठ ने यह भी दावा किया कि उन्होंने इसका क्लिनिकल ट्रायल किया है और कोरोना संक्रमित लोगों पर इसका सौ फीसद सकारात्मक असर हुआ है। पतंजलि की इस घोषणा के कुछ घंटे बाद ही भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने इस पर संज्ञान लिया और कहा कि मंत्रालय को इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है।

मंत्रालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को दवा का नाम और उसके घटक बताने को कहा। मंत्रालय ने पतंजलि से सैंपल साइज, वो लैब या अस्पताल जहां टेस्ट किया गया और आचार समिति की मंजूरी समेत दूसरी महत्वपूर्ण जानकारियां भी देने को कहा है। मंत्रालय ने पतंजलि की इस दवा के प्रचार-प्रसार पर रोक लगा दी। हालांकि पतंजलि के चेयरमैन आचार्य बालकृष्ण ने इसे ‘कम्युनिकेशन गैप’ बताते हुए यह दावा किया है कि ‘उनकी कंपनी ने आयुष मंत्रालय को सारी जानकारी दे दी है।’

बालकृष्ण ने अपने ट्वीट में लिखा है कि “यह सरकार आयुर्वेद को प्रोत्साहन व गौरव देने वाली है। क्लिनिकल ट्रायल के जितने भी तय मानक हैं, उन 100 प्रतिशत पूरा किया गया है।” 24 जून को एक दूसरा ट्वीट कर उन्होंने यह जानकारी भी साझा कि आयुष मंत्रालय को उनके सारे दस्तावेज मिल गए। आयुष मंत्रालय के अलावा आईसीएमआर ने भी इस तरह की किसी भी दवा से जुड़े होने से इनकार किया है। सामान्य परिस्थितियों में किसी दवा को विकसित करने और उसका क्लिनिकल ट्रायल पूरा होने में कम से कम तीन साल तक का समय लगता है लेकिन अगर स्थिति अपातकालीन हो तो भी किसी दवा को बाजार में आने में कम से कम दस महीने से सालभर तक का समय लग जाता है।

भारत में किसी दवा या ड्रग को बाजार में उतारने से पहले किसी व्यक्ति, संस्था या स्पॉन्सर को कई चरणों से होकर गुजरना होता है। इसे आम भाषा में ड्रग अप्रूवल प्रोसेस कहते हैं। अप्रूवल प्रोसेस के तहत, क्लिनिकल ट्रायल के लिए आवेदन करना, क्लिनिकल ट्रायल कराना, मार्केटिंग ऑथराइजेशन के लिए आवेदन करना और पोस्ट मार्केटिंग स्ट्रेटजी जैसे कई चरण आते हैं। हालांकि हर देश में अप्रूवल का एक ही तरीका हो यह जरूरी नहीं है। विभिन्न देशों में अपने कुछ विशेष प्रावधान और नियम होते हैं।

भारत में कैसे मिलता है अप्रूवल
भारत का औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और नियम 1945 औषधियों तथा प्रसाधनों के निर्माण, बिक्री और वितरण को विनियमित करता है। औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 और नियम 1945 के अंतर्गत ही भारत सरकार का केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ- ) दवाओं के अनुमोदन, परीक्षणों का संचालन, दवाओं के मानक तैयार करने, देश में आयातित होने वाली दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेष सलाह देते हुए औषधि और प्रसाधन सामग्री के लिए उत्तरदायी है।

ड्रग रिसर्च एंड मैन्युफैक्चरिंग विशेषज्ञ डॉक्टर अनुराग हितकारी के मुताबिक, भारत में किसी ड्रग के लिए अप्रूवल मिलना एक चरणबद्ध प्रक्रिया है।भारत में किसी दवा के अप्रूवल के लिए सबसे पहले इंवेस्टिगेशनल न्यू ड्रग एप्लिकेश यानी आईएनडी को सीडीएससीओ के मुख्यालय में जमा करना होता है। इसके बाद न्यू ड्रग डिवीजन इसका परीक्षण करता है। इस परीक्षण के बाद आईएनडी कमिटी इसका गहन अध्ययन और समीक्षा करती है। इस समीक्षा के बाद इस नई दवा को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के पास भेजा जाता है। अगर ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया, आईएनडी के इस आवेदन को सहमति दे देते हैं तो इसके बाद कहीं जाकर क्लिनिकल ट्रायल की बारी आती है।

क्लिनिकल ट्रायल के चरण पूरे होने के बाद सीडीएससीओ के पास दोबारा एक आवेदन करना होता है। यह आवेदन न्यू ड्रग रजिस्ट्रेशन के लिए होता है। एक बार फिर ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया इसे रीव्यू करता है। अगर यह नई दवा सभी मानकों पर खरी उतरती है तो कहीं जाकर इसके लिए लाइसेंस जारी किया जाता है। लेकिन अगर यह सभी मानकों पर खरी नहीं उतरती है तो डीसीजीआई इसे रद्द कर देता है। भारत में किसी नई दवा के लिए अगर लाइसेंस हासिल करना है तो कई मानकों का ध्यान रखना होता है। यह सभी मानक औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 और नियम 1945 के तहत आते हैं।

डॉक्टर अनुराग हितकारी के मुताबिक इसके लिए ये भी समझना जरूरी है कि नई दवा दो तरह की हो सकती है। एक तो वो जिसके बारे में पहले कभी पता ही नहीं था। इसे एनसीई कहते हैं। ये एक ऐसी दवा होती है जिसमें कोई नया केमिकल कंपाउंड हो। दूसरी नई दवा उसे कहा जाता है जिसमें कंपाउंड तो पहले से ज्ञात हों लेकिन उनका फॉर्मूलेशन अलग हो। मसलन जो दवा अभी तक टैबलेट के तौर पर दी जाती रही उसे अब स्प्रे के रूप में दिया जाने लगा हो। ये नई दवा के दो रूप हैं लेकिन इनके लाइसेंसिंग अप्रूवल के  लिए नियम एक ही होंगे। डॉक्टर अनुराग हितकारी कहते हैं कि इन नियमों का कहीं भी उल्लंघन होने पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

अंग्रेजी दवा, होम्योपैथिक और आयुर्वेद के लिए लाइसेंस पाने की प्रक्रिया एक है?
डॉक्टर अनुराग हितकारी बताते हैं कि अंग्रेजी दवा और आयुर्वेंद के लिए अप्रूवल मिलने में  अंतर बहुत अधिक नहीं है लेकिन आयुर्वेद में अगर किसी प्रतिष्ठित किताब के अनुरूप कोई दवा तैयार की गई है तो उसे आयुष मंत्रालय तुरंत अप्रूवल दे देगा। जबकि एलोपैथ में ऐसा नहीं है।

आयुष मंत्रालय की एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एलोपैथ यानी अंग्रेजी दवा की तुलना में आयुर्वेद के लिए लाइसेंस पाने की प्रक्रिया में थोड़ा फर्क है। उनके मुताबिक, “आयुर्वेद प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है। जिसमें किसी जड़ी-बूटी को किस मात्रा में, किस रूप में और किस इस्तेमाल के लिए अपनाया जा रहा है सबका लिखित जिक्र है। ऐसे में अगर कोई ठीक उसी रूप में अनुपालन करते हुए कोई औषधि तैयार कर रहा है तब तो ठीक है लेकिन अगर कोई काढ़े की जगह टैबलेट बना रहा है और मात्राओं के साथ हेर-फेर कर रहा है तो उसे सबसे पहले इसके लिए रेफरेंस देना होता है।”

वो बताती है कि आयुर्वेद भी अधिनियम 1940 और नियम 1945 के ही मानकों पर काम करता है लेकिन कुछ मामलों में ये एलोपैथ से अलग है। “मसलन अगर आप किसी प्राचीन और मान्य आयुर्वेद संहिता को आधार बनाकर कोई दवा तैयार कर रहे हैं तो आपको क्लिनिकल ट्रायल में जाने की जरूरत नहीं है लेकिन अगर आप उसमें कुछ बदलाव कर रहे हैं या उसकी अवस्था को बदल रहे हैं और बाजार में उतारना चाहते हैं तो कुछ शर्तों को पूरा करने के बाद ही आप उसे बाजार में ला सकेंगे। ऐसा नहीं है कि किसी ने कुछ बी बनाया और बाजार में बेचने लगा।”

एनपीपीए यानी नेशनल फार्मास्युटिकल अथॉरिटी के अधिकारी के मुताबिक, इसके साथ ही देश के हर राज्य में स्टेट ड्रग कंट्रोलर होते हैं। जो अपने राज्य में दवा के मैन्युफैक्चर के लिए लाइसेंस जारी करते हैं। जिस राज्य में दवा का निर्माण होना है, वहां स्टेट ड्रग कंट्रोलर से अप्रूवल लेना होता है। नेशनल फार्मास्युटिकल अथॉरिटी के अधिकारी बताते हैं ऐसा नहीं है कि नियम और शर्ते सिर्फ नई दवाओं को बाजार में लाने के लिए है।

वो कहते हैं, अगर कोई नई दवा नहीं बल्कि कोई शेड्यूल ड्रग भी बाजार में लाया जा रहा है तो उसे बाजार में लाने से पहले उसकी कीमत तय की जाएगी। जिसके लिए नेशनल फार्मास्युटिकल प्रइसिंग अथॉरिटी से अप्रूवल लेना होगा। शेड्यूल ड्रग्स का मतलब ऐसी दवाओं से है जो पहले से ही नेशनल लिस्ट ऑफ इसेंसियल लिस्ट में शामिल हों।

इन मानक नियमों की अनदेखी होने पर लाइसेंस रद्द भी हो सकता है। फिलहाल तो इन्हीं मानकों की अनदेखी करने के आरोप में रामदेव की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। उत्तराखंड के आयुर्वेद ड्रग्स लाइसेंस अथॉरिटी ने रामदेव को उनकी नई दवा कोरनिल के लिए नोटिस जारी किया है। यह नोटिस दवा के संबंध में गलत जानकारी देने के लिए जारी किया गया है।

 

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