OBC को 27% आरक्षण दिए जाने को लेकर राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए प्रक्रिया तेज करेगी

भोपाल
 मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27% आरक्षण देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में शीघ्र सुनवाई की प्रक्रिया तेज करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने राज्य के एडवोकेट जनरल को इस संबंध में जल्द से जल्द आवेदन प्रस्तुत करने को कहा है। सरकार का उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही इसे तुरंत लागू करना है, ताकि OBC वर्ग को इसका लाभ मिल सके।

इस फैसले से प्रदेश में आरक्षण नीति को मजबूती मिलेगी और समाज के पिछड़े वर्गों को अधिक अवसर उपलब्ध कराए जा सकेंगे। मुख्यमंत्री ने इस मामले को प्राथमिकता देने पर जोर देते हुए कहा कि सरकार अपने वादे के अनुरूप सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए पूरी प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रही है।

यह फैसला बीते गुरुवार, 13 फरवरी 2025 को विधि विभाग, सामान्य प्रशासन विभाग, वित्त विभाग और अन्य संबंधित विभागों के अधिकारियों की उपस्थिति में हुई बैठक के बाद लिया गया। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कहा कि, हमारी सरकार बनने के पहले से ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण देने को लेकर कोर्ट में लगी अलग-अलग याचिका में केस चल रहा है। इसी को लेकर संबंधित विभागों के अफसरों के साथ बैठक की है। आज एडवोकेट जनरल से कहा है सुप्रीम कोर्ट में जल्दी से जल्दी सुनवाई के लिए आवेदन लगाएं।

सरकार का मत साफ- 27% आरक्षण लागू हो

सीएम यादव ने बताया कि उन्होंने एडवोकेट जनरल से कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में जल्द से जल्द सुनवाई के लिए आवेदन लगाएं। उन्होंने कहा, "हमारी सरकार का मंतव्य स्पष्ट है कि 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करना है। इसलिए हमने तय किया है कि सुप्रीम कोर्ट को सरकार का मंतव्य जल्द से जल्द बताया जाए और इसके बाद न्यायालय जो भी फैसला करेगा, उसे लागू किया जाएगा।"

उन्होंने यह भी कहा कि एससी और एसटी को भी जो आरक्षण निर्धारित है, वह संबंधित वर्ग के लोगों को प्रदेश में मिलना चाहिए। हाईकोर्ट के फैसले और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर कन्फ्यूजन की स्थिति बन रही है। इसलिए सरकार ने इस मामले में स्पष्ट राय तय करने का फैसला किया है।

आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका खारिज

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 28 जनवरी को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के राज्य शासन के निर्णय को चुनौती दी गई थी। बता दें, 4 अगस्त 2023 को हाई कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश के तहत राज्य सरकार को 87:13 का फॉर्मूला लागू करने का निर्देश दिया था। इस आदेश के बाद प्रदेश की सभी भर्तियां ठप हो गई थीं।

मामले की सुनवाई हाईकोर्ट चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की युगलपीठ ने की। यह याचिका सागर की यूथ फॉर इक्वालिटी संस्था की ओर से दायर की गई थी। अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर के मुताबिक इस फैसले के बाद प्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण पर अब नए सिरे से काम करना होगा। साथ ही प्रदेश में भर्ती से जुड़े 13% होल्ड पदों को अब अनहोल्ड भी किया जाएगा।

2021 में ओबीसी को 27% आरक्षण मिला था

दरअसल, 26 अगस्त 2021 को प्रदेश के तत्कालीन महाधिवक्ता के अभिमत के चलते सामान्य प्रशासन विभाग ने 2 सितंबर 2021 को एक परिपत्र जारी कर ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण की अनुमति प्रदान की थी। इस परिपत्र में तीन विषयों को छोड़कर शेष में 27 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया था। इनमें नीट पीजी प्रवेश परीक्षा 2019-20, पीएससी द्वारा मेडिकल ऑफिसर भर्ती 2020 और हाईस्कूल शिक्षक भर्ती में 5 विषय शामिल थे।

जानकार बोले- याचिका रद्द यानी 27% आरक्षण के आदेश से स्टे हटा

इससे पहले, ओबीसी के विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर का कहना था कि उक्त याचिका के निरस्त होने से प्रदेश में कुछ मामलों को छोड़कर शेष में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि अब यह सरकार पर है कि उक्त फैसले के बाद आगे क्या रुख अपनाती है। हाईकोर्ट ने सुनवाई में साफ कर दिया है कि प्रदेश में होल्ड पदों की सभी भर्तियों को फिर से अनहोल्ड यानी भर्ती प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। जो कोर्ट के पूर्व में जारी फैसले के चलते होल्ड पर कर दी गई थीं। 4 अगस्त 2023 को हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश के तहत राज्य सरकार को 87 /13 का फॉर्मूला लागू करने का निर्देश दिया था। इस आदेश के बाद प्रदेश की सभी भर्तियां रोक दी गई थीं।

सरकार ने यह फॉर्मूला महाधिवक्ता के अभिमत के आधार पर तैयार किया था, जिसके तहत 87 प्रतिशत सीटें अनारक्षित और 13 प्रतिशत सीटें ओबीसी के लिए रखी गई थीं। इससे 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का लाभ लाखों ओबीसी अभ्यर्थियों को नहीं मिल रहा था। अब सरकार को नए सिरे से अपना जवाब हाईकोर्ट में पेश करने कहा गया है। वहीं, इस मामले में शासकीय अधिवक्ता अभी कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं मामले

आशिति दुबे ने मेडिकल से जुड़े मामले में ओबीसी आरक्षण को पहली बार चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने 19 मार्च 2019 को ओबीसी के लिए बढ़े हुए 13 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगाई थी। इसी अंतरिम आदेश के तहत बाद में कई अन्य नियुक्तियों में भी रोक लगाई गई थी। यह याचिका 2 िसतंबर 2024 को हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर हो गई। इसी तरह राज्य शासन ने ओबीसी आरक्षण से जुड़ी करीब 70 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करा ली हैं, जिन पर फैसला आना बाकी है।

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