इस कुंड में आज भी दिखती है माता सीता की आकृति………

छतरपुर। वरदानों का धाम…मन्नतों का द्वार….ये है मां बंबर बेनी का दिव्य दरबार..ये दरबार सजा है छतरपुर जिले के लवकुश नगर की पहाड़ी पर.. जो छोटी बड़ी कुल 52 पहाड़ियों से घिरी हुई है । कहते हैं यही वो पहाड़ी है और यही वो धाम है जहां त्रेतायुग में वनवास के दौरान भगवान श्रीराम और सीता के पांव पड़े थे । इसी पहाड़ी पर ही माता सीता ने लव-कुश को जन्म दिया था । यहीं लव-कुश ने अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा पकड़ा…और यहीं अग्नि परीक्षा के बाद माता सीता धरती में समा गईं थीं ।

मां बंबर बेनी के इस धाम में एक छोटा सा जलकुंड है..कहते हैं इसी कुंड में सीताजी समाई थीं। मान्यता तो ये भी है कि इस कुंड में आज भी सीता जी की आकृति दिखाई देती है । पहाड़ी पर एक गुफा है जहां सीता रसोई है । आज ये गुफा आस्था का द्वार बन चुकी है ।जिसने जो भी मां बंबर बेनी से मांगा वो मिला जरुरी है। छोटी बड़ी 52 पहाड़ियों के बीच विराजी देवी बंबर बेनी पहले मां बावन बेनी नाम से प्रसिद्ध थीं लेकिन कुछ समय बाद बावन बेनी बंबर बेनी के नाम से प्रसिद्ध हो गईं ।

पहाड़ पर विराजी मां बंबर बेनी के इस धाम तक पहुंचने के लिए 365 सीढ़ियां चढ़नी होती है तब जाकर दर्शन होते हैं देवी बंबर बेनी के । सालभर में भी 365 दिन होते हैं इसलिए ऐसी मान्यता है कि एक दिन मां के दर पर आने से एक साल के पाप धुल जाते हैं । जिसकी जो मन्नत पूरी होती वो इस धाम में लोहे की सांग अर्पित करता है । वैसे को सालभर देवी बंबर बेनी के इस दरबार में आस्था का मेला लगता है लेकिन नवरात्री में तो शंखों की ध्वनि..घंटियों की आवाज और जय माई के जयकारों से गूंज उठती है मां बंबर बेनी की 52 पहाड़ियां ।

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