क्या मंत्री जी को पद से हटाए जाने की रची जा रही साजिश, आखिर किसको पहुंचेगा लाभ
कोरबा : छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में बीते 8 मार्च को कोरबा नगर पालिका निगम में सभापति के चुनाव में बीजेपी द्वारा तय प्रत्याशी हितानंद अग्रवाल की जगह बीजेपी पाषर्दों के पसंद के आधार पर बीजेपी के ही पार्षद बने नूतन सिंह की जीत हो गई. इस जीत के पश्चात श्रम मंत्री लखनलाल देवांगन ने निकाय के दोनों पद सभापति और महापौर को मिलकर कोरबा को आगे बढ़ाने का बयान मीडिया के समक्ष दिया. इस बयान के पश्चात ही बीजेपी ने उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन को नोटिस जारी कर दिया है। हालांकि इस चुनाव में सीधे तौर पर लखनलाल की भूमिका स्पष्ट नहीं है। पार्षदों ने अपनी मंशाअनुरूप वोट डाले, अब सवाल यह उठता है कि इसके बाद भी लखनलाल और वरिष्ठ बीजेपी पदाधिकारी क्यों बीजेपी के ही एक वर्ग के घेरे में आ गए? इसे सिलसिलेवार ढंग से समझने की जरूरत है।
1 मार्च को सभापति के चयन के लिए रायपुर उत्तर के विधायक पुरंदर मिश्रा को पर्यवेक्षक बनाकर कोरबा भेजा गया.
सभी पाषर्दों से उन्होंने वन टू वन मुलाकात की बजाय, पार्टी जो नाम देगी उस पर सहमती संबंधी बात कर चले आए.जबकि कई पार्षदों ने हितानंद अग्रवाल के अलावा किसी भी नाम का प्रस्ताव देने की बात कही थी.
पर्यवेक्षक ने लोकल स्थानिय पार्षदों की बात को अनुसना करते हुए पैनल में हितानंद अग्रवाल के नाम को शामिल कर लिया.
8 मार्च को सभापति का चुनाव होना था. 11:45 बजे तक नाम की घोषणा नहीं हुई, लेकिन हितानंद अग्रवाल डीजे लेकर चुनाव स्थल पहुंच गए। बीजेपी पार्षदों ने पर्यवेक्षक के सामने निष्पक्षता को लेकर आपत्ती भी दर्ज कराई.
12 बजे नामांकन होना था. 11:46 पर वाट्सअप पर राज्य नेतृत्व से हीतानंद अग्रवाल का नाम सामने आया, जिसका बीजेपी पार्षद दल लगातार विरोध कर रहा था।
सभी पार्षदों ने अपने आप को कमरे में बंद कर हीतानंद अग्रवाल को वोट नहीं देने की बात दोहराई. इसके बाद भी प्रत्याशी नहीं बदला गया। इसी बीच आरएसएस से बीजेपी में आए नूतन सिंह ने दो निर्दलिय पार्षदों के प्रस्तावक होकर सभापती का नामांकन दाखिल कर दिया।
बीजेपी के नाराज पार्षदों ने हीतानंद अग्रवाल की जगह 33 वोट नूतन सिंह को दे दिया
कांग्रेस ने निर्दलीय अब्दुल रहमान को समर्थन दिया जिन्हें 16 वोट मिले
बीजेपी के अधिकृत प्रत्याशी को महज 18 वोट मिले, कुछ बीजेपी पार्षदों ने पार्टी लाईन पर चलकर उन्हें वोट किया।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर हीतानंद अग्रवाल का विरोध क्यों कर रहे थे बीजेपी के पार्षद
दरअसल सूत्रों और कुछ आंकड़ों के हवाले से बात की जाए तो हीतानंद अग्रवाल एक दफा अपने ही वार्ड से चुनाव हार चुके हैं। उनपर कांग्रेस के पूर्व विधायक जयसिंह अग्रवाल के करीबी होने का भी आरोप है।
चर्चा यह भी है कि, तीन चुनाव से अपना वार्ड जीतने के लिए वे कांग्रेस से डमी प्रत्याशी उतरवाते आए हैं।
शायद यही वजह रही की बीजेपी ने भीतरधात के डर से इस चुनाव में उन्हें कोरबा में चुनाव प्रचार से वंचित कर लोरमी में चुनाव प्रचार के लिए भेजा था।
सूत्रों के हवाले से यदि खबर की तरफ आगे का रूख किया जाए तो नेता प्रतिपक्ष रहते हुए भी 31 बीजेपी पार्षदों ने हीतानंद के कांग्रेस से मिले होने का आरोप लगाते हुए बीजेपी संगठन को पत्र भी लिखा था।
दरअसल आखिर इतने विरोध के बाद भी हीतानंद को भाजपा का सभापति का प्रत्याशी क्यों बनाया गया? संभवत: इस बात से भी भाजपा पार्षदों में कहीं ना कहीं असंतोष व्याप्त था, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
तो वहीं यदि छत्तीसगढ़िया प्रभाव की बात की जाए तो कोरबा में लगातार छत्तीसगढ़ीया नेताओं का प्रभाव बढ़ रहा था। शायद यही वजह रही कि 15 वर्षों बाद स्थानिय नेताओं की एकजुटता से कोरबा विधानसभा में बीजेपी ने जीत दर्ज की।
महापौर चुनाव में 10 वर्षों बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं ने मेहनत कर संजू देवी सिंह को रिकार्ड मतों से जीत दिलाई।
उत्तर भारतीय बाहुल्य होने के बाद भी छत्तीसगढ़िया ओबीसी नेताओं की कोरबा में पूछ परख बढ़ी
संभवत: यह बातें संभाग के अन्य नेताओं को स्वीकार नहीं है, कुछ पार्षदों का ऐसा मानना है कि शायद इसलिए पार्टी कार्यकर्ताओं की एकजुटता को तोड़ने सभापति का प्रत्याशी हमपर थोपा गया।
अब इस षड्यंत्र में आखिर किनका होगा फायदा कौन उठायेगा लाभ? :-
सवाल नंबर
१. क्या लखनलाल पर निशाना लगाकर उन्हें मंत्री पद से पदच्युत कर बीजेपी के दूसरे नेता मंत्री पद की आस लगाए बैठे हैं?
२. क्या बीजेपी के ही दूसरे नेता इस प्रकरण को आधार बनाकर कोरबा में कांग्रेस के अग्रवाल पॉलिटिक्स को बचाना चाहते हैं।
३. क्या इससे कोरबा में स्थानिय नेतृत्व की एकजुटता टूटने का सीधा लाभ कांग्रेस के जयसिंह अग्रवाल को मिलेगा।
बहरहाल अब गौरीशंकर अग्रवाल को कोरबा में सभाप्रति प्रकरण की जांच का जिम्मा सौंपा गया है। देखने वाली बात होगी कि आने वाले समय में कोरबा का स्थानीय छत्तीसगढ़िया नेतृत्व रचे गए इस षणयंत्र से कैसे बाहर आता है. या बीजेपी देवतुल्य कहकर अपने ही कायर्कता पार्षदों पर अपने थोपे गए फैसले को सही साबित करने किसी की बली लेती है या गलतियों को सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाती है।
बहरहाल सवाल चाहे जो भी हो यह तो निश्चित है कि इन दिनों छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में भाजपा के खेमे में उथल-पुथल सी मची हुई है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि अपनी साफ सुथरी छवि व विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के तौर पर पहचान बना चुकी भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ व सक्षम पदाधिकारी की टीम आखिर किस निष्कर्ष पर निकलती है।