कोरोना वायरस के बदलते रूपों पर वैक्सीन का कितना असर होगा

वुहान से दिसंबर में निकले कोरोना वायरस ने पिछले कुछ महीनों में खुद में बदलाव कर लिया है और अब ये दुनियाभर में नई-नई किस्मों (वायरस के स्ट्रेन) में उभर और फैल रहा है। अब तक भारत में ही इस वायरस की तीन किस्में पाई गई हैं- पहला चीन के वुहान से निकली किस्म, दूसरा यूरोप के इटली में मिली किस्म और तीसरा ईरान वाली वैरायटी। शोधकर्ता कह रहे हैं कि विश्व के कई इलाकों में तेजी से फैल रहा कोविड-19 का संक्रमण यूरोपीय स्ट्रेन (किस्म) का है और ये वो किस्म है जो फरवरी के महीने में इटली में सामने आया था।

कोरोना की यूरोपीय किस्म चीन के वुहान से निकले वायरस से अधिक शक्तिशाली है। मगर शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे ये साबित नहीं होता कि यूरोपीय वैरायटी वाले स्ट्रेन से हुआ संक्रमण ज्यादा घातक होगा। न्यूजवीक का लेख विज्ञान पत्रिका ‘सेल’ में छपे एक शोध पर आधारित है। सेल में छपे शोध में ये भी कहा गया है कि वायरस के नए किस्मों के उभरने का वैक्सीन की खोज पर कोई बहुत बड़ा असर नहीं होगा।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने भी भारत में सामने आए वायरस की किस्मों पर रिसर्च की बात कही है। साथ ही ये भी कहा है कि कोरोना वायरस की अलग-अलग वैरायटी के सामने आने का ये अर्थ नहीं है कि ये डेवलप हो रही है वैक्सीन की गुणवत्ता को किसी तरह कम कर देगा। आईसीएमआर के डॉक्टर रमन गंगाखेड़कर ने कहा था कि “वायरस के नए किस्म से वैक्सीन निष्प्रभावी नहीं होगा।” वायरस के किस्मों पर शोध करने की बात पर संस्था का कहना है कि इससे ये पता लगेगा कि भारत में संक्रमण के दौरान क्या वायरस के स्ट्रेन – यानी स्वभाव में कोई बदलाव हुआ है।

आईसीएमआर भारत में बायो-मेडिकल के क्षेत्र में होनेवाले शोध और दूसरे मामलों में निगरानी रखनेवाली संस्था है। फिलहाल कोविड-19 का इलाज, रिसर्च वग़ैरह से जुड़ी हुई नीतियां उसके द्वारा जारी दिशा-निर्देशों या फिर उसकी मदद से ही तैयार हो रही हैं। स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीच्यूट के एक रिसर्च के अनुसार ‘यूरोपीय किस्म’ जिसे तकनीकी भाषा में G614 कहा जा रहा है वो D614 (चीन से निकले वायरस) के मुकाबले संक्रमण को 10 गुना तेजी से फैला सकता है मगर शोधकर्ता ये भी मानते हैं कि अमेरिका जैसे देश में इसके तेजी से फैलने की वजह वहां इस पर रोकथाम लगाने की कमी की वजह से भी हो सकती है।

अमेरिका में यूरोप से जानेवालों लोगों की तादाद बहुत बड़ी है तो वहां इस वैरायटी के वायरस के फैलने की ये वजह भी हो सकती है। अमेरिका में जल्द ही राष्ट्रपति चुनाव होने हैं। वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप वायरस संक्रमण के लिए बार-बार चीन पर आक्रामक होते रहे हैं। भारत के कई नेताओं ने भी हाल में वायरस और चीन पर बयान दिए हैं।

इधर हांगकांग से छपनेवाले अखबार साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि इटली में वायरस की जो किस्म फैल रही है उसका संबंध सीधी तरह से चीन से नहीं पाया गया है। अखबार ने अपनी रिपोर्ट में इटली के मिलान में हुए एक शोध का हवाला दिया है। लौंबार्डी इलाके में 300 लोगों के ब्लड सैम्पल के आधार पर किए गए जिनोम सिक्वेंसिंग (डीएनए की खोज) में पाया गया है कि वहां जो ‘ट्रांसमिशन चेन’ देखी गई है उससे चीन से कोई सीधा संबंध नहीं था।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इटली ने चीन से इटली आने वालों पर जनवरी के अंत में ही पाबंदी लगा दी थी लेकिन वायरस के चिन्ह वहां के मिलान और ट्यूरीन के नालों के पानी में दिसंबर में ही सामने आ गए थे। अखबार ने ये बात इटली के नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ हेल्थ के हवाले से कही है। जन स्वास्थ्य अभियान के डाक्टर गार्गेया तेलकापल्ली कहते हैं कि वायरस में जीवन होता है इसलिए उसमें बदलाव होना स्वाभाविक है और ये बदलाव या नए किस्म की उत्पत्ति भौगोलिक और जलवायु की वजह से भी हो सकती है।

डाक्टर गार्गेया तेलकापल्ली कहते हैं कि इस तरह के बदलाव इंफ्लुएंजा जैसे दूसरे वायरस में भी होते हैं और उसी बदलाव के आधार पर वैक्सीन में भी बदलाव किए जाते हैं। वैक्सीन में ये तबदीली पिछले छह माह के दौरान सामने आए स्ट्रेन और उसके स्वभाव के अनुरूप किए जाते हैं। विश्व भर में हर दिन जिनोम सिक्वेंसिंग को शेयर करने का सिलसिला जारी है जिसकी निगरानी विश्व स्वास्थ्य संगठन करता है। ये सिलसिला 1950 के बाद से लगातार जारी है।

 

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