कोरोना का बढ़ता संक्रमण देश और दुनिया के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। पूरी दुनिया को इसकी वैक्सीन का इंतजार है और यह इंतजार जल्द ही खत्म होने वाला है। भारत, ब्रिटेन, रूस, अमेरिका, इस्रायल समेत कई देश वैक्सीन बनाने के काफी नजदीक पहुंच चुके हैं। रूस ने दुनिया का पहली कोरोना वैक्सीन का दावा किया है और 12 अगस्त को उसका पंजीकरण करा रहा है। हालांकि इस वैक्सीन पर ब्रिटेन, अमेरिका आदि देश संदेह जता रहे हैं कि यह कितनी कारगर होगी। अन्य वैक्सीनों के संदर्भ में भी कई विशेषज्ञ ये कह चुके हैं कि केवल वैक्सीन काफी नहीं होगी। बहरहाल, कोरोना को लेकर हुए कई शोध अध्ययनों में बताया जा चुका है कि मोटापा के शिकार लोगों में वायरस संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। अब एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने आशंका जताई है कि मोटे लोगों में वैक्सीन ज्यादा असरदार नहीं होगी।
अमेरिका की अलबामा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने आशंका जताई है कि सार्स-कोव-2 वायरस से लड़ने वाली वैक्सीन उन लोगों की सुरक्षा कर पाने में ज्यादा असरदार साबित नहीं हो पाएगा, जिनके शरीर में भारी मात्रा में चर्बी जमी हुई है। पहले से उपलब्ध कुछ वैक्सीनों को उदाहरण देते हुए उन्होंने यह आशंका जताई है।
अलबामा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में फ्लू और हेपेटाइटिस-बी के टीके का हवाला दिया है। साल 2017 में हुए शोध में सामान्य से अधिक वजन वाले लोगों में ये दोनों टीके संबंधित संक्रमण का मुकाबला करने में बहुत कारगर नहीं रहे थे और उनमें सक्षम एंटीबॉडी पैदा नहीं हो पाई थी।
अध्ययन में कहा गया है कि मोटे लोग फ्लू और हेपेटाइटिस के संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील तो होते ही हैं, उनमें संक्रमण के गंभीर होने के साथ ही अंग खराब होने और जान जाने का खतरा भी अपेक्षाकृत ज्यादा रहता है। कोरोना से बचाव में कारगर वैक्सीन के मामले में भी ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है।
टी-कोशिकाओं और मैक्रोफेज की कमी
इस शोध अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. चाड पेटिट के मुताबिक मोटापे से जूझ रहे लोगों में संक्रमणरोधी वैक्सीन के कम प्रभावी होने के पीछे मुख्यत: दो कारण हैं।
पहला- टी-कोशिकाओं का ठीक तरह से काम नहीं करना। टी-कोशिकाएं ही इम्यून सिस्टम को एंटीबॉडी पैदा करने का संदेश देती हैं।
दूसरा- प्रतिरोक्षक क्षमता के सक्रिय होने से शरीर में सूजन बढ़ना। इससे ‘मैक्रोफेज’ नाम की विशेष कोशिकाओं का उत्पादन घट जाता है। मैक्रोफेज, शरीर में खतरनाक तत्वों को नष्ट करने के लिए अहम मानी जाती हैं।
काफी मायने रखता है सुई का आकार
वैंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. विलियम शैफनर के मुताबिक, मोटे लोगों में टीकाकरण के समय सुई का आकार बहुत मायने रखता है। पारंपरिक रूप से एक इंच लंबी सुई इस्तेमाल होती है, जिससे मोटे लोगों में इम्यूनिटी पैदा होने की संभावना कम हो जाती है। उनके लिए थोड़ी बड़े आकार की सुई से टीकाकरण करना चाहिए, ताकि वैक्सीन की दवा मांसपेशियों तक गहराई से पहुंच सके।
टीकाकरण बहुत जरूरी
डॉ. शैफनर ने इस बात पर बल दिया कि फ्लू और हेपेटाइटिस-बी की तरह ही कोरोना का टीका भले ही मोटे लोगों पर ज्यादा प्रभावी न हो, लेकिन उनमें कुछ हद तक सुरक्षा जरूर पैदा होती है। इसका मतलब यह है कि वायरस की चपेट में आने की स्थिति में संक्रमण का गंभीर होने या मौत होने का जोखिम बहुत कम हो जाता है। इसलिए परिणाम के बारे में सोचे बिना टीकाकरण जरूर कराना चाहिए।