रायपुर : आदिम जाति अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त के अवसर पर प्रदेशवासियों को बधाई एवं शुभकामनाएं दी है।
डॉ. टेकाम ने कहा कि हर साल की भांति इस बार भी विश्व आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है। आदिवासी दिवस पर 9 अगस्त 2019 को राजधानी रायपुर के सरदार बलबीर सिंह जुनेजा इंडोर स्टेडियम (बूढ़ातालाब के सामने) राज्य स्तरीय आयोजन किया जा रहा है। यह आयोजन तब भव्य रूप लेगा और यादगार बनेगा जब इसमें आदिवासी समाज के समस्त भाईयों एवं बहनों की उपस्थिति एवं भागीदारी होगी। उन्होंने इस पावन पर्व पर आयोजित कार्यक्रम में सभी को शामिल होने की अपील की है।
डॉ. प्रेमसाय सिंह ने अपने शुभकामना संदेश में कहा है कि आदिवासियों को उनका हक एवं सम्मान दिलाने, उनकी समस्याओं का निराकरण करने, भाषा, संस्कृति और इतिहास के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 9 अगस्त 1994 को विश्व आदिवासी दिवस मनाने का निर्णय लिया, तब से पूरी दुनिया में विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है।
छत्तीसगढ़ राज्य में भी विश्व आदिवासी दिवस उल्लास के साथ मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ जनजातीय बाहुल्य प्रदेश है। यहां की जनजातीय कला एवं संस्कृति अनमोल धरोहर है। राज्य की कुल आबादी का लगभग 32 प्रतिशत हिस्सा आदिवासी समाज का है। आदिवासी दो शब्दों आदि और वासी से मिलकर बना है, इसका अर्थ मूल निवासी होता है।
डॉ. टेकाम ने कहा कि आदिवासी समुदाय का जीवन जल, जंगल और जमीन से जुड़ा हुआ है। जिस प्रकार प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करके अपना जीवन-यापन करते हैं, जो अनुकरणीय है। आदिवासी समाज समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है। आदिवासी समाज शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान, कला-संस्कृति सहित सभी क्षेत्रों में तेजी से तरक्की कर रहा है। देश-प्रदेश के विकास में आदिवासी समाज की भागीदारी बढ़ी है।
डॉ. टेकाम ने कहा कि भारतीय संविधान के तहत आदिवासियों के उत्थान के लिए विशेष प्रावधान किए गए है। छत्तीसगढ़ सरकार भी आदिवासियों के विकास के लिए वचनबद्ध है। छह माह के कार्यकाल में ही सरकार ने आदिवासियों को अधिकार और सम्मान दिलाने का अपना वादा पूरा किया है। ऐसा देश में पहली बार हुआ है जब लोंहड़ीगुड़ा (बस्तर) में उद्योग नहीं लगाने पर टाटा से जमीन वापस लेकर आदिवासियों को लौटायी गयी। सबसे ज्यादा तेंदूपत्ता मजदूरी 4 हजार रूपए मानक प्रति बोरा देने का निर्णय लिया। आदिवासी अंचलों में कुपोषण और एनीमिया से प्रभावित शत-प्रतिशत महिलाओं और बच्चों को प्रतिदिन पौष्टिक भोजन तथा बस्तर संभाग में प्रति परिवार को चने के साथ दो किलो निःशुल्क गुड़ की व्यवस्था की गई है। आने वाले समय में आदिवासियों के उत्थान के लिए और भी कई ऐतिहासिक कदम उठाए जाएंगे।