नई दिल्ली: ‘राजनीति में आप जिसका साथ दे रहे हैं, वह आपको भुला सकता है, लेकिन अगर आप किसी समूह पर हमला बोल दें तो वे ना कभी भूलेंगे और नाहीं कभी माफ करेंगे’ रामविलास पासवान ने एक अनौपचारिक भोज के दौरान विभिन्न और विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों के साथ उनके मधुर संबंधों के राज के बारे में सवाल करने पर कुछ ऐसा कहा था. पासवान की राजनीतिक विचाराधारा का यह मूल देश के महत्वपूर्ण दलित नेता के व्यक्तित्व को दर्शाता है, जो खुद कभी किंग (प्रधानमंत्री) नहीं बन सके लेकिन अपने पांच दशक से भी लंबे करियर में उन्होंने तमाम लोगों को शीर्ष की कुर्सी पर बैठाया और उन्हें उतरते हुए भी देखा. लोकप्रिय दलित नेता का दिल्ली के एक अस्पताल में बृहस्पतिवार की शाम 74 साल की उम्र में निधन हो गया. हाल ही में उनके हृदय का ऑपरेशन हुआ था.
चौधरी चरण सिंह नीत लोक दल में बरसों तक पासवान के साथ रहे जद(यू) के के. सी. त्यागी उन्हें 45 साल से भी लंबे वक्त तक का समाजवादी कर्मी बताते हैं. उनका कहना है कि लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के संस्थापक ने उत्तरी भारत में दलितों को एकजुट करने का महत्वपूर्ण काम किया और जाते-जाते भी उनकी आवाज बने रहे. पासवान के निधन के साथ ही 1975-77 में लगाए गए आपातकाल के विरोध में हुए जनआंदोलन के एक और महत्वपूर्ण समाजवादी नेता की जीवन लीला का पटाक्षेप हो गया. वह कई बार बड़े प्रेम से ऐसी कविताएं सुनाया करते थे जिनमें राजनीतिक और सामाजिक संदेश रहता था, कई उनकी खुद की लिखी होती थीं. पासवान 1989 में सत्ता में आयी वी. पी. सिंह सरकार में महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री रहे और अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण से जुड़े मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे हिन्दी भाषी राज्यों में राजनीतिक समीकरण को हमेशा के लिए उलट-पलट दिया.
पासवान के व्यक्तित्व में विशेष आकर्षण यह भी था कि पार्टी और गठबंधन चाहे किसी भी विचारधारा के हों, उनके संबंध सभी के साथ हमेशा मधुर रहे हैं. आलम यह रहा कि कांग्रेस विरोधी आंदोलन से राजनीतिक करियर शुरू करने वाले पासवान की अटल बिहारी वाजपेयी और सोनिया गांधी दोनों से छनती थी. वह वाजपेयी नीत राजग सरकार में मंत्री रहे तो मनमोहन सिंह नीत संप्रग सरकार में भी मंत्रिमंडल के सदस्य रहे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में 2014 से लेकर अभी तक वह केन्द्रीय मंत्रिमंडल का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे. दिलचस्प बात यह भी है कि भगवा पार्टी के साथ मतभेद बढ़ने पर वह वाजपेयी सरकार से अलग हुए थे, उस दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की ओलाचना में उन्होंने कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी थी, लेकिन मई, 2014 में मोदी के नेतृत्व में राजग की सरकार में शामिल होने के बाद वह प्रधानमंत्री के विश्वासपात्र बन गए, खास तौर से दलित मुद्दों पर.
अपने राजनीतिक करियर के शुरुआती दो दशकों में पासवान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कटु आलोचक हुआ करते थे. लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने नरम रूख अपना लिया और हमेशा कहते रहे कि हिन्दुत्व संगठन को दलितों के लिए अपनी छवि बदलने की जरुरत है. वह दलितों के हित में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किए गए कार्यों का खूब समर्थन करते थे और इस मुद्दे पर सरकार की आलोचना करने वालों को आड़े हाथों लेते थे. केन्द्र में सत्ता में आने वाले गठबंधन के साथ पानी में नमक की तरह घुलमिल जाने की प्रवृत्ति के कारण कई बार आलोचक उन्हें ‘मौसम वैज्ञानिक’ भी बुलाते थे.