ओबामा ने सुनाई लादेन के खात्मे की इनसाइड स्टोरी, मारते ही किया था PAK के राष्ट्रपति को फोन

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की किताब ‘अ प्रॉमिस्ड लैंड’ दुनिया की कूटनीतिक और सामरिक रणनीतिक पर पड़े रहस्य के पर्दे हटा रही है. ओबामा ने अपनी किताब में दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी ओसामा बिन लादेन के खात्मे की कहानी सिलसिलेवार तरीके से बताई है. बता दें कि जब लादेन पाकिस्तान के एबटाबाद में अमेरिका की खुफिया कार्रवाई में मारा गया था उस वक्त बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति थे, इस लिहाज से वे अमेरिकी सेनाओं के सुप्रीम कमांडर भी थे और उनके पास हर खुफिया जानकारी सबसे पहले और एक्सक्लूसिव तरीके से आती थी.

बराक ओबामा ने इस किताब में पाकिस्तान की पोल खोली है और कहा है कि ओसामा को खत्म करने के ऑपरेशन में पाकिस्तानी एजेंसियों को शामिल न करने का फैसला उन्होंने जानबूझकर लिया था. क्योंकि कई पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी और आईएसआई के अफसर तालिबान और यहां तक कि अल कायदा के आतंकियों से मिले हुए थे, और ये एक ओपन सीक्रेट था, ऐसे में इस ऑपरेशन में पाकिस्तानियों को शामिल करने से गड़बड़ी की आशंका थी. ओबामा ने साफ कहा है कि पाकिस्तान इन आतंकियों का इस्तेमाल कभी भारत तो कभी अफगानिस्तान के खिलाफ करता था.

आपरेशन के खिलाफ थे जो बाइडेन 

ओबामा कहते हैं कि उनके रक्षा मंत्री रॉबर्ट गेट्स और तत्कालीन उपराष्ट्रपति जो बाइडेन इस ऑपरेशन के खिलाफ थे. जो बाइडेन अब अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित हो गए हैं.

मंगलवार को दुनियाभर में रिलीज हुई इस बुक में बराक लिखते हैं, “जैसे ही मुझे लादेन की जानकारी मिली, मैंने तय कर लिया कि हमारे पास पर्याप्त सूचना है और हम उस कंपाउंड में हमले के विकल्प पर विचार करने लगे, जबकि सीआईए टीम ग्राउंड पर काम कर रही थी, मैंने टॉम डॉनिलॉन और जॉन ब्रेननन को कहा कि अगर हम रेड करें तो ये विकल्प कैसा रहेगा.”

जरा सी सूचना लीक हुई और हमारा मिशन फेल था

ओबामा लिखते हैं कि इस मिशन में गोपनीयता कायम रखना एक चुनौती की तरह था. अगर लादेन से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी भी लीक हो जाती तो हम मौका गंवा बैठते. इसलिए पूरी सरकार में मात्र कुछेक लोगों को इस ऑपरेशन के प्लानिंग की जानकारी थी.

पूर्व राष्ट्रपति ने आगे लिखा, “हमारे सामने और चुनौतियां थीं, हम जो भी विकल्प चुनते उसमें पाकिस्तानी शामिल नहीं हो सकते थे.”

पाक सेना और ISI के रिश्ते तालिबान, अल कायदा से थे

आतंकवाद में पाकिस्तान की मिलीभगत को साफ साफ रेखांकित करते हुए बराक ओबामा ने लिखा, “हालांकि पाकिस्तान की सरकार ने आतंकवाद विरोधी अभियान में हमारी मदद की थी, लेकिन यह एक खुला सत्य था कि पाकिस्तान के कुछ सैन्य अधिकारी, खासकर इसकी खुफिया एजेंसियों के ताल्लुकात तालिबान और यहां तक कि अल कायदा से थे, ये इसका इस्तेमाल रणनीतिक शक्ति के रूप में करते थे ताकि अफगानिस्तान कमजोर बना रहे और पाकिस्तान के नंबर वन दुश्मन भारत के साथ शामिल न हो जाए.”

पाकिस्तानियों को लादेन को खत्म करने के ऑपरेशन में शामिल करने के क्या खतरे थे इस बारे में ओबामा लिखते हैं कि एबटाबाद से पाकिस्तान का एक सैन्य ठिकाना मात्र कुछ ही मील की दूरी पर था, अगर हम कुछ भी पाकिस्तानियों को बताते तो ये हमारे टारगेट तक पहुंच सकता था.

ओबामा ने लिखा है कि हमलोग एबटाबाद में जो कुछ भी करते वो हमारे एक सहयोगी की सीमा का उल्लंघन होता-एक तरह से युद्ध की स्थिति होती- इससे कूटनीतिक तनाव तो पैदा होता ही इसकी दूसरी जटिलताएं भी थी.

अंतिम चरण में दो विकल्पों पर विचार 

आखिरकार अंतिम चरण में ओबामा प्रशासन दो विकल्पों पर विचार कर रहा था. पहला विकल्प था कि हवाई हमले से पूरे कंपाउंड को ही नष्ट कर दिया जाए, दूसरा विकल्प था कि एक विशेष ऑपरेशन को अनुमति दी जाए, जहां एक चुनिंदा टीम हेलिकॉप्टर से चुपके से पाकिस्तान जाए, कंपाउंड में कार्रवाई को अंजाम दे और इससे पहले कि पाकिस्तान की पुलिस और सेना को पता चले और वो कोई कार्रवाई करे ये टीम पलक झपकते ही वहां से बाहर निकल आए.

आखिरकार ओबामा सरकार ने गहन चर्चा और विचार के बाद दूसरे विकल्प पर हामी भरी. बराक ओबामा लिखते हैं, ” रेड के लिए अंतिम अनुमति देने से पहले एक मीटिंग में तत्कालीन विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा था कि ये एक 51-49 का कॉल है, रक्षा मंत्री रॉबर्ट गेट्स ने भी रेड के खिलाफ राय दी हालांकि वो एयर स्ट्राइक के पक्ष में थे.”

आगे ओबामा ने कहा, “जो बाइडेन की राय भी रेड के खिलाफ थी, उन्होंने तर्क दिया कि इस ऑपरेशन के फेल होने के बहुत चांस थे और वे खुफिया एजेंसियों से और भी सुनिश्चित करवाना चाहते थे कि लादेन कंपाउंड में है.”

लादेन को मारने के बाद जब ओबामा ने जरदारी को किया फोन…

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