12 साल से जिस पहेली को सुलझा रहे थे साइंटिस्ट, उसी से बनी कोरोना की पहली वैक्सीन

जब किसी को कोरोना वायरस यानी कोविड-19 के बारे में पता भी नहीं था, तब एक वैज्ञानिकों का एक छोटा सा समूह इस बीमारी से बचने के लिए इम्यूनाइजेशन पर काम कर रहा था. यानी इसके वायरस से कैसे बचा जाए इसका तरीका खोज रहा था. 12 साल से चल रहे रिसर्च का फायदा आज मिला, क्योंकि इसी रिसर्च के आधार पर दुनिया की पहली कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाई गई…आइए जानते हैं इन वैज्ञानिकों की कहानी.

वायरोलॉजिस्ट जेसन मैक्लिलैन (Jason Maclellan) अमेरिका के उटाह पार्क सिटी माउंटेन रिजॉर्ट में स्नोबोर्डिंग की तैयारी कर रहे थे. तभी उनके पास नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीस वैक्सीन रिसर्च सेंटर के डिप्टी डायरेक्टर बार्नी ग्राहम (Barney Graham) का फोन आया. उन्होंने कहा कि WHO को चीन के वुहान में अनजाने निमोनिया के केस मिले हैं. लोगों को थकान, खांसी, बुखार और सर दर्द है. जेसन और बार्नी में ये बातचीत पिछले साल जनवरी की शुरुआत में हुई थी.

बार्नी ग्राहम ने जेसन मैक्लिलैन को बताया कि वुहान में बीमारी के जो लक्षण दिख रहे हैं वो बीटा-कोरोनावायरस (Beta-Coronavirus) जैसा लग रहा है. यानी सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS) का ही वंशज है. बार्नी और जेसन उस छोटे से समूह के साइंटिस्ट हैं जो 12 सालों से कोरोनावायरस का इलाज खोजने में लगे थे. लेकिन वो इस वायरस का कठिन जीनोम और वायरस स्ट्रक्चर नहीं तोड़ पा रहे थे. लेकिन दुनिया को इन दोनों की जरूरत एक बार फिर थी.

बार्नी और जेसन की 12 साल की मेहनत का नतीजा ये निकला कि इनके द्वारा किए गए रिसर्च की वजह से आज दुनिया में कोविड-19 के इतने दमदार वैक्सीन बनाए गए हैं. अमेरिका में दो वैक्सीन निर्माता कंपनियों को बार्नी और जेसन के रिसर्च का उपयोग करने की अनुमति दे दी गई है. जेसन 2008 में जब बेथसेडा स्थित वैक्सीन रिसर्च सेंटर में आए तो बार्नी ग्राहम वहां पहले से रिसर्च कर रहे थे. तब बार्नी रेस्पिरेटरी सिन्सियल वायरस (RSV) पर रिसर्च कर रहे थे, जिसकी वजह से 20 सालों से लोग बीमार हो रहे थे

RSV की स्टडी की दौरान जेसन और बार्नी ने पाया कि RSV और SARS-CoV-2 यानी कोविड-19 का जीनोम RNA से बना है. दोनों में एक जैसी समानताएं हैं. ये समानताएं देखकर जेसन और बार्नी को रिसर्च आगे बढ़ाने का मोटिवेशन मिला. RSV के इलाज के लिए 1966 में क्लीनिकल ट्रायल चल रहे थे. उस समय ट्रायल खराब हो गया. दो बच्चों की मौत हो गई. कई वॉलेंटियर्स की तबियत खराब हो गई. बार्नी यही पता कर रहे थे कि आखिर वैक्सीन में ऐसा क्या गलत हुआ जिसकी वजह से लोगों की मौत हो गई.

तभी जेसन मैक्लिलैन वायरस रिसर्च सेंटर पहुंचते हैं. उनके साथ स्ट्रक्चरल बायोलॉजिस्ट पीटर क्वॉन्ग भी होते हैं. इन दोनों का प्लानिंग होती है एड्स को रोकने के लिए उसके HIV वायरस को वैक्सीन के जरिए रोकना. लेकिन बार्नी की दिक्कत देखकर जेसन उनके साथ हो लिए. बार्नी ने जेसन को बताया कि RSV में क्लास-1 फ्यूजन प्रोटीन यानी F Protein है. यह बहुत तेजी से अपना स्वरूप बदलता है. यह इंसानी शरीर में घुसते ही प्रजनन कर अलग-अलग रूपों में बदलकर फैल जाता है. इसलिए इस पर वैक्सीन काम नहीं कर पाती.

जेसन ने फिर वायरस के प्रोटीन का स्ट्रक्चर देखने के लिए एक्स-रे क्रिस्टेलोग्राफी का उपयोग किया. इसके जरिए पहली बार RSV के बदलते हुए F Protein का स्ट्रक्चर बनाया गया. इससे बना प्रीफ्यूजन एफ प्रोटीन की तस्वीर जो एक लॉलीपॉप जैसा दिखता था. जेसन ने एटॉमिक स्तर पर जाकर बायोइंजीनियरिंग के जरिए इस रूप बदलने वाले प्रोटीन को रोकने का तरीका खोज निकाला. इसके बाद बार्नी ग्राहम ने जेसन के बायोइंजीनियर्ड RSV की टेस्टिंग जानवरों में की. जानवरों में RSV का वायरस के बदलाव में 50 फीसदी की कमी आ चुकी थी. ये बड़ी सफलता थी

इसके बाद बार्नी और जेसन ने मिलकर मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (MERS) पर काम करना शुरू किया. मर्स में भी कोरोनावायरस जैसे कंटीले प्रोटीन थे. ये भी अपना स्वरूप बदलने में माहिर था. इस समय जेसन के लैब में HKU1 नाम का पुराना कोरोनावायरस था. जिसकी वजह से हल्का जुकाम होता है. इसे साल 2005 में खोजा गया था. इसके बाद जेसन ने HKU1 की थ्रीडी इमेज बनाई. उसका मॉडल बनाया. कोरोनावायरस के प्रोटीन की जांच करने के लिए जेसन को क्रायोजेनिक इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (Cryo-EM) का सहारा लेना पड़ा. क्योंकि एक्स-रे क्रिस्टेलोग्राफी से कोरोनावायरस सही से पकड़ में नहीं आ रहा था.

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