आखिर कितना सेक्स सही है……..

सेक्स. ये शब्द सुनते ही कोई मुंह छुपाने लगता है तो कोई मुंह बिचकाने लगता है. इंसानों के बीच जिस्मानी रिश्तों का मसला बहुत ही पेचीदा है. इसको साधारण तरीक़े से समझ पाना या बता पाना बेहद मुश्किल है.

दुनिया में जितने तरह के लोग हैं, उतनी ही तरह की उनकी जिस्मानी ख़्वाहिशें. उनसे भी ज़्यादा उनकी सेक्स को लेकर उम्मीदें और कल्पनाएं. हर देश, हर इलाक़े यहां तक कि हर इंसान की शारीरिक रिश्तों को लेकर चाह एकदम अलग होती है.

अब जो मामला इतना पेचीदा हो उसमें सामान्य यौन संबंध क्या है, ये बताना और भी मुश्किल है. सेक्स के बारे में लोगों की पसंद का दायरा इतना अलग-अलग और बड़ा है कि पक्के तौर पर किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता.

सामान्य ‘सेक्स लाइफ़’ क्या है? इस सवाल का जवाब खोजने के लिए हमने कुछ आंकड़ों को देखा-समझा और कुछ मोटे-मोटे नतीजों पर पहुंचने की कोशिश की है. जैसे कि आख़िर हमें कितना सेक्स करने की ज़रूरत है या फिर हम बिस्तर पर अपने साथी से कैसे बर्ताव की उम्मीद करते हैं?

हमारी इस कोशिश के नतीजे हम आपको बताएं, उससे पहले ये समझ लीजिए कि ये मोटे अनुमान हैं, कोई ठोस नतीजे नहीं. वजह साफ़ है. खुले से खुले समाज में रहने वाले लोग भी सेक्स के बारे में खुलकर बात करने से कतराते हैं. कुछ लोग सच को छुपाते हैं, तो कुछ, झूठे दावों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं, हक़ीक़त के तौर पर.

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