भारत में अभी भी स्‍त्री-पुरुष की बराबरी की लड़ाई बाकी

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021 से ठीक पहले लिंक्डइन अपॉर्च्युनिटी इंडेक्स 2021 की रिपोर्ट हम सबको सोचने पर मजबूर करती है. दुनिया में भेदभाव अब कहां? कहने वालों की आंखें भी इस रिपोर्ट को पढ़कर खुल सकती हैं. लिंक्डइन अपॉर्च्युनिटी इंडेक्स 2021 में पता चला है कि 10 में से 9 या 89 प्रतिशत महिलाएं कोरोना वायरस महामारी से नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई हैं. देखें- पूरी रिपोर्ट में क्‍या है. रिपोर्ट से साफ है क‍ि भारत में अभी भी स्‍त्री-पुरुष की बराबरी की लड़ाई बहुत बाकी है. डैमिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 85 प्रतिशत महिलाएं अपने जेंडर के कारण वृद्धि, पदोन्नति या अन्य काम के प्रपोजल से चूक गई हैं. यह आंकड़ा एशिया प्रशांत में 60 प्रतिशत के क्षेत्रीय औसत से काफी अधिक है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कई महिलाओं के पास घर से काम करने की फ्लैक्‍सिबिल‍िटी होने के बावजूद वो समय की कमी और परिवार की देखभाल जैसी बाधाओं का सामना करती हैं. कामकाजी महिलाओं के लिए समय की कमी सबसे बड़ी बाधा है. दो में से एक, या 50 फीसदी, महिलाओं को लगता है कि अवसरों को प्राप्त करने के लिए जेंडर एक बाधा है. तीन में से दो महिलाओं ने कहा है कि उन्हें नेटवर्क प्रॉब्‍लम से मार्गदर्शन की कमी का सामना करना पड़ा है. 10 में से सात कामकाजी मांओं को घरेलू जिम्मेदारियों के कारण वर्कप्‍लेस में भेदभाव का सामना करना पड़ा है. 71 प्रतिशत को लगता है कि उनके करियर के दौरान पारिवारिक जिम्मेदारियां आती हैं.

63 प्रतिशत महिलाओं को लगता है कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए व्यक्ति का जेंडर महत्वपूर्ण है. इसके मुकाबले 54 फीसदी पुरुष भी ऐसा सोचते हैं. भारत में लगभग 22 प्रतिशत महिलाओं को लगता है कि कंपनियां पुरुषों के प्रति ‘अनुकूल पूर्वाग्रह’ से ग्रस्‍त हैं, जो कि क्षेत्रीय औसत 16 प्रतिशत से काफी अधिक है. भले ही भारत में 66 फीसदी लोगों को लगता है कि उनके माता-पिता के समय से लैंगिक असंतुलन दूर हो गया है. भारत की कामकाजी महिलाएं अभी भी एशिया प्रशांत क्षेत्र में सबसे मजबूत जेंडर पूर्वाग्रह का सामना करती हैं.

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