रायपुर. 29 आदिवासी (Adivasi) आरक्षित सीटों वाले राज्य छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में कांग्रेस ने 30 सीट जीत कर पंद्रह सालों बाद सत्ता में वापसी की. जिस आदिवासी समाज ने साल 2018 में कांग्रेस का भरपूर साथ दिया आज वहीं समाज सरकार से सीधा नाराज हो गया है. वह भी नाराजगी इतनी की 19 जुलाई से सरकार के खिलाफ सर्व आदिवासी समाज अनवरत धरने पर बैठने वाला है. दरअसल, सिलगेर (Adivasi Protest Police Camp in Silger) की घटना के बाद आदिवासी समाज का सरकार के सीधा नाराज बताया जा रहा है. जानकारों की मानें तो आदिवासी समाज सरकार से त्वरित कार्रवाई चाहता था. मगर सरकार ने काफी देर कर दी. इन्ही बातों को देखते हुए कहा जा रहा है कि सरकार ने कवासी लखमा को बस्तर के पांच जिलों का प्रभार दे कर समाज को साधने की जिम्मेदारी दी है.
पीसीसी चीफ मोहन मरकाम (Mohan Markam) का मानना हैं कि कवासी लखमा वरिष्ठ नेता हैं. बस्तर में उनकी अच्छी पैठ है जिसका लाभ कांग्रेस पार्टी को मिलेगा. वहीं विपक्ष की ओर से पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि सरकार और जिम्मेदारों के लापरवाही की वजह से प्रदेश में अराजक स्थित बनी हुई है. सिलगेर ही क्या प्रदेश के अधिकांश स्थानों पर सरकार का विरोध हो रहा है.
सिलगेर की घटना से राजनीति
सिलगेर घटना पर राजनीतिक जानकारों से लेकर राजनीति गरियारों तक चर्चाओं का दौर तेज है कि क्या सिलगेर (Silger Police Camp Protest) की घटना सरकार पर भारी पड़ेगी. क्या कवासी लखमा सरकार के तानरणहार बनेंगे. तमाम चर्चाओं के बीच सर्व आदिवासी समाज के कार्यकारी अध्यक्ष ने सरकार पर बरसते हुए कहा कि सिलगेर में पहले गोली मार दी फिर कहते हैं कि वो नक्सली थे. अब तो हालात यह हो गया हैं कि चाहे पीठ में गोली लगे या सीने पर सरकार का विरोध तो किया जाएगा.
इस बात में कोई दो मत नहीं हैं कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी सीट सत्ता की चाबी हैं, और खासकर बस्तर. मगर सरकार के ढाई साल बाद ही बस्तर से लेकर अन्य क्षेत्रों तक आदिवासी समाज में सरकार के प्रति नाराजगी देखने को मिल रही है. बहरहाल देखना होगा कि आदिवासियों की यह नाराजगी सरकार और कांग्रेस के सेहत पर कितना प्रभाव डालती है.