कोरोना काल में ड्यूटी के बाद नहीं मिला वेतन, दफ्तरों के चक्कर लगा रहे स्वास्थ्यकर्मी

कोरबा। कोरोना काल में 3 महीने तक ट्रामा सेंटर में काम करने वाले कर्मचारियों को अब अपना वेतन पाने के लिए अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। काफी दिनों से उन्हें केवल तारीख दी जा रही हैं जबकि इन कर्मचारियों को वेतन की जरूरत है। नाराज कर्मचारियों ने इस मामले को लेकर कलेक्ट्रेट का रुख किया। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर उदासीनता का आरोप भी लगाया है। कोरबा में ट्रामा सेंटर में संविदा में काम करने वाले 144 कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़ गए हैं। अप्रैल से अब तक इन लोगों को वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। संविदा में काम करने वाले इन कर्मचारियों को वेतन दिया जाना सुनिश्चित किया गया था और जिला अस्पताल के माध्यम से इन लोगों की ड्यूटी तय की गई थी।

कोरोना काल में काम-काज करने के बाद भी कर्मियों को वेतन नहीं मिला है। नतीजा यह हुआ कि इस लंबी अवधि में कर्मचारियों को मकान किराए से लेकर दूसरे खर्चों के लिए अन्य लोगों से उधार लेना पड़ा। अब हर तरफ से उनके सामने समस्याएं पेश आ रही हैं। कर्मचारियों का आरोप है कि वेतन देने के बजाय स्वास्थ विभाग के अधिकारी हर बार नई तारीख देने के साथ उनसे मजाक कर रहे हैं। इसी बात को लेकर इन कर्मियों ने कलेक्ट्रेट पहुंच कर नाराजगी जाहिर की। कर्मचारियों ने साफ तौर पर बताया कि उन्हें तारीख से नहीं बल्कि वेतन से मतलब है और इसकी व्यवस्था जल्द की जानी चाहिए। कलेक्टर के आने की प्रतीक्षा करते हुए कुछ समय कर्मचारियों ने जिला कार्यालय के आसपास बिताया और इसके बाद उनके प्रतिनिधियों ने अधिकारी से चर्चा की ट्रामा सेंटर कर्मचारी संघ एक प्रतिनिधि ने बताया कि वेतन दिलाने का आश्वासन दिया गया है। इस मामले में सिविल सर्जन का रुख गैरजिम्मेदाराना बना हुआ है। इस संबंध में जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. अरुण तिवारी से संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि वेतन की राशि कब प्राप्त हुई इसकी जानकारी नहीं है लेकिन कर्मचारियों के बैंक खाते में आरटीजीएस किया जा रहा है। भले ही ट्रामा सेंटर के 144 कर्मचारियों के वेतन का मसला आजकल में सुलझा लिया जाएगा लेकिन कर्मचारी इस पसोपेश में है कि आगे उनके भविष्य का आखिर क्या होगा? कारण यह है कि संविदा पर रखे गए इन कर्मचारियों की सेवाएं आगे दिए जाने को लेकर अब तक कुछ नहीं कहा गया है और ना ही कोई संकेत दिए गए हैं। इस स्थिति में कर्मचारियों का सामाजिक संरक्षण दांव पर है।

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