30 रुपए लीटर सस्ता मिलेगा डीजल, भारतीय प्रोफेसर जॉन ने किया विश्व का पहला ‘ऐसा’ आविष्कार

कोच्ची: केरल के एक पशु चिकित्सक ने पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों की मार सहती आम जनता के लिए बड़ा आविष्कार किया है। इसके साथ ही उनका यह अविष्कार दूषित होते पर्यावरण के लिए भी संजीवनी का काम करेगा। विश्व में पहली बार किसी वैज्ञानिक ने चिकन के वेस्ट से बायो-डीजल (bio diesel) का निर्माण कर पूरी दुनिया में भारत का नाम ऊंचा किया है। साढ़े सात साल की लम्बी जद्दोजहद के बाद, भारतीय पेटेंट कार्यालय ने आखिरकार 7 जुलाई, 2021 को केरल वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज यूनिवर्सिटी के तहत पशु चिकित्सा कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर जॉन अब्राहम को इस बायो डीजल का पेटेंट प्रदान कर दिया है। प्रोफेसर जॉन से इस विषय में बात की, तो उन्होंने बेहद ही सादगी से अपने इस अविष्कार के बारे में हमें पूरी जानकारी दी।

सवाल- आपको चिकन वेस्ट से बायो डीजल बनाने का आईडिया कहाँ से आया ?

बकौल प्रोफेसर जॉन, 2009 में वे तमिलनाडु की वेटेनरी यूनिवर्सिटी में पीएचडी करने गए थे, जहां नामकल में एक बड़ी पोल्ट्री फॉर्म भी था। प्रोफेसर जॉन बताते हैं कि उस पोल्ट्री फॉर्म में लगभग 3 से 4 लाख मुर्गियां रखी जाती थीं और हर दिन बड़ी तादाद में मुर्गियां मारी जाती थी, जिनका काफी वेस्ट बचता था। उन्होंने बताया कि, वहीं पास में ही एक रेंडरिंग प्लांट था, जहां मुर्गी के वेस्ट से सीड इंग्रेडिएंट बनाए जाते थे, जिनमे चिकन आयल भी शामिल था, लेकिन उस चिकन आयल का अधिक इस्तेमाल नहीं हो पाता था। ऐसे में प्रोफेसर जॉन और उनके साथी रमेश श्रवणकुमार के दिमाग में विचार कौंधा कि अन्य देशों में कई तरह के आयल से बायो डीजल बनाया जाता है, लेकिन आज तक किसी ने भी चिकन आयल से बायो डीजल (bio diesel) नहीं बनाया था। जिसके बाद प्रोफेसर जॉन ने 2009 से लेकर 2012 तक पढ़ाई की और रिसर्च की, जिसके बाद उन्हें ये सफलता मिली।

इसके बाद 2014 में प्रोफेसर जॉन और उनके गाइड रमेश श्रवणकुमार ने इसके लिए पेटेंट फाइल किया। अपनी पीएचडी पूरी करने के बाद प्रोफेसर जॉन केरल वेटेनरी कॉलेज में वापस आकर अध्यापन कार्य करने लगे, लेकिन साथ ही बायो डीजल पर भी उनका फोकस बना रहा। शोध के बाद प्रोफेसर जॉन ने वायनाड के कलपेट्टा के पास स्थित पोकोडे वेटेरिनरी कॉलेज में 2014 में 18 लाख रुपए की लागत के साथ एक बॉयलर स्थापित किया। जहां से प्रतिदिन 50 लीटर बायो डीजल का उत्पादन किया जाने लगा।  अपने बॉयलर प्लांट में बनाए गए बायो डीजल (bio diesel) को उन्होंने टेस्टिंग के लिए भारत पेट्रोलियम कोऑपरेशन के कोचीन रिफाइनरी में भेजा। जहां से जो रिजल्ट मिला, वो प्रोफेसर जॉन के लिए किसी सपने के साकार होने जैसा था। कोचीन रिफाइनरी से बताया गया कि उनके द्वारा बनाया गया बायो डीजल बेहद उच्च क्वालिटी का है। लेकिन इसके बाद भी प्रोफेसर ने अपना एक्सपेरिमेंट जारी रखा, उन्होंने इस बायो डीजल को एक बोलेरो में डालकर इस्तेमाल करना शुरू किया। पहले उन्होंने बोलेरो में 50 फीसद डीजल और 50 फीसद बायो डीजल डालकर चलाया, इसके बाद उन्होंने डीजल की मात्रा कम कर दी और 20 फीसद डीजल में 80 फीसद बायो डीजल (bio diesel) मिलाकर गाड़ी दौड़ाना शुरू किया। इससे और भी चौंकाने वाले परिणाम सामने आए, बायो डीजल के इस्तेमाल से बोलेरो का माइलेज और कार्यक्षमता भी बढ़ गई, साथ ही इंजन से निकलने वाला धुआं भी आधे से कम हो गया। इस परिणाम से प्रोफेसर को काफी ख़ुशी हुई, क्योंकि उन्होंने पर्यावरण को बचाने के साथ ही सस्ते दामों पर उपलब्ध बायो डीजल का निर्माण कर लिया था और उसकी टेस्टिंग भी सफल रही थी, लेकिन अब भी पेटेंट नहीं मिला था।

पेटेंट के लिए उन्हें काफी लंबा इंतज़ार करना पड़ा, ये किस्सा सुनाते हुए प्रोफेसर बेहद भावुक हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि 2014 में आवेदन देने का बाद भी उन्हें 2020 तक पेटेंट नहीं मिला और 2020 में आई कोरोना महामारी ने उनसे उनका साथी और मार्गदर्शक छीन लिया। रमेश श्रवणकुमार ने पेटेंट की राह देखते-देखते दुनिया को अलविदा कह दिया। प्रोफेसर कहते हैं कि, उनका यह आविष्कार, रमेश श्रवणकुमार के प्रति श्रद्धांजलि है, क्योंकि उन्होंने इसके लिए काफी मेहनत की थी, लेकिन वे पेटेंट नहीं देख पाए।

सवाल- ये बायो डीजल किस किस चीज़ में काम आएगा ?

प्रोफेसर जॉन बताते हैं कि दुनिया में जितने भी डीजल इंजन हैं, उन सभी में यह बायो डीजल काम करेगा। उन्होंने बताया कि इस बायो डीजल से जनरेटर, ट्रक आदि डीजल से चलने वाली सभी गाड़ियां चल सकेंगी, फैक्ट्रीज में बॉयलर्स चल सकेंगे, यहां तक कि एयरफोर्स के कुछ प्लेन भी इस डीजल से चल सकेंगे। प्रोफेसर कहते हैं कि अभी वे इस दिशा में और काम कर रहे हैं और जैसे ही ये बायो डीजल कमर्शियल होता है, यानी मार्केट में आता है तो जहां-जहां डीजल का उपयोग होता है, उन सभी जगहों पर बायो डीजल का इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसके साथ ही यह बायो डीजल स्रोतों से प्राप्त होता है जो पुनः नवीन किये जा सकते हैं। जो मौजूदा डीजल है, वो इस्तेमाल के बाद ख़त्म हो जाता है, लेकिन इस बायो डीजल के साथ ऐसा नहीं होगा। इसके साथ ही ये पर्यावरण के लिए भी काफी फायदेमन्द रहेगा।

सवाल- क्या आपने बायो डीजल बनाने के लिए चिकन वेस्ट के अलावा अन्य किसी जानवर के अपशिष्टों का उपयोग किया ?

प्रोफेसर जॉन कहते हैं कि रेड मीट और बकरे के मीट से बायो डीजल बनाने की संभावना बेहद कम होती है। क्योंकि वो रेंडरिंग करने के बाद भी सॉलिड एस्टेट में ही रहता है, जबकि बायो डीजल बनने के लिए उसे आयल की तरह तरल होना होगा। प्रोफेसर के अनुसार, रेड मीट और बकरे के मीट का प्रतिपादन करने के बाद भी वो रूम टेम्परेचर पर सॉलिड ही रहेगा, उसे तरल रखने के लिए लगातार गर्म करना होगा। हालांकि, उन्होंने अपनी आगे की योजना के बारे में बताते हुए कहा कि उनकी टीम फिलहाल मुर्गी के अलावा पोर्क (सूअर) के फैट से बायो डीजल तैयार करने के काम में लगी हुई है।  उन्होंने साथ ही बताया कि कसाई घरों से मिलने वाले मुर्गे के 100 किलोग्राम वेस्ट से एक लीटर बायोडीजल का उत्पादन किया जा सकता है.

सवाल- यह बायो डीजल, आम डीजल के मुकाबले कितना सस्ता होगा ?

प्रोफेसर बताते हैं कि, बायो डीजल बनाने में उन्हें 35.65 प्रति लीटर की लागत आई है, जब ये पूरी तरह कमर्शियल हो जाएगा, तो उसमे GST और मुनाफा जोड़ने के बाद इसकी कीमत लगभग 70 से 75 रुपए प्रति लीटर तक जा सकती है। इस तरह से आम ग्राहक को डीजल 30 रुपए प्रति लीटर सस्ते में मिलेगा। साथ ही प्रोफेसर ने बताया कि, उनके द्वारा बनाए गए बायो डीजल का सिटेन नंबर 72 है, जो इंजन की कार्यक्षमता में इजाफा करेगा, जबकि आम डीजल का सिटेन नंबर 54 होता है, जिसके कारण इंजन पर अधिक भार पड़ता है। इसके आगे प्रोफेसर ने बताया कि मुर्गी के वेस्ट से बने बायो डीजल में 11 फीसद ऑक्सीजन भी मौजूद है, जो इंजन की आयु तो बढ़ाएगा ही, साथ ही धुआं कम निकलने से प्रदूषण भी बेहद कम होगा।

बता दें कि वर्तमान दौर में जब देश के कई हिस्सों में डीजल के भाव 100 रुपए प्रति लीटर के लगभग पहुँच गए हैं, ऐसे में प्रोफेसर जॉन द्वारा किया गया ये आविष्कार आम जनता के साथ ही भारत सरकार को भी काफी राहत देने वाला है। इससे जहां आवागमन सस्ता हो सकता है, वहीं पर्यावरण और गाड़ी के इंजन के लिए भी यह बायो डीजल किसी संजीवनी से कम नहीं है।प्रोफेसर के इस अभूतपूर्व आविष्कार के लिए उन्हें और उनकी पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *