छत्तीसगढ़ की जनजातीय कलाकृतियां दिल्ली में बनी आकर्षण का केन्द्र तोरन, तुरही, रावघोड़ा बने आकर्षण का केंद्र

रायपुर : महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा नई दिल्ली स्थित इन्दिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स में ‘रुरल बिजनेस समिट और ट्रेड फेयर’ का आयोजन किया गया है।  ट्रेड फेयर में विभिन्न राज्यों की प्रदर्शनी लगाई गयी है। इस दौरान छत्तीसगढ़ की बेजोड़ धातु शिल्पकला की झलक देखने को मिल रही है। प्रदेश की बेलमेटल से मूर्तियाँ बनाने की कला उत्कृष्ट है। ग्रामीण शिल्पियों की इन कलाकृतियों को लेकर लोगों में खासा उत्साह है। इन कलाकृतियों में सर्वाधिक आदिवासी जीवनशैली और संस्कृति से संबंधित, वन्यजीव, देवी देवताओं की मूर्तियाँ आकर्षण का केंद्र बनी है। पूजा कक्ष हो या स्वागत कक्ष हर जगह इन मूर्तियों को रखा जा सकता है। जिनकी कीमत 100 से लेकर 10 हजार तक है। वहीं, ये कलाकृतियाँ आदिवासी मान्यताएँ और परंपराओं से भी जुड़ी हुईं हैं। 
कलाकृतियों में दिख रही मान्यताओं की झलक 
कलाकृतियों में आदिवासी मान्यताएँ और परंपराएं भी दिख रही है। बस्तर से आए कलाकारों ने बताया कि धातु से बनी ‘तुरही’ पूजा पाठ के दौरान बजाना शुभ माना जाता है। वहीं, घर में ‘रावघोड़ा’ रखने से हार्ट अटैक नहीं आता है। बुरी शक्तियों को घर से दूर रखने के लिए दरवाजे पर ‘तोरन’ लगाया जाता है। वहीं, अच्छी किस्मत के लिए घर में धातु के कछुआ, नंदी बैल और हाथी रखे जाने की मान्यता है।
लगती है कई दिनों की मेहनत
बेलमेटल से कलाकृति बनाने में मेहनत के साथ ही समय भी लगता है। पहले मिट्टी से कलाकृति बनाई जाती है। इसके ऊपर मोम के धागे बनाकर डिजाइन तैयार किया जाता है। दोबारा मोम के ऊपर मिट्टी का लेप लगाकर भट्टी में पकाया जाता है। इस दौरान मोम पिघल कर बह जाता है, और उसकी जगह पर धातुओं के मिश्रण को पिघलाकर द्रव रूप में इस साँचे में डाला जाता है। रायगढ़ से आए धातुकला के कलाकार कांति मेहर और हेमसागर मेहर ने बताया कि पूरी प्रक्रिया में करीब हफ्तेभर का समय लगता है। इसे बनाने में पीतल और कांसे का उपयोग किया जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *