दशक भर से थाने में कोई केस नहीं, कई गांवों के झगड़े निपटा रहा गीला चावल

जगदलपुर. नक्सली घटनाओं के लिए बदनाम दरभा इलाके में कई ऐसे गांव है, जहां दशकभर से कोई मामला थाने तक नहीं पहुंचा है। विश्वास तो नहीं होता, लेकिन यह हकीकत है। यहां के बाशिंदे छोटे मोटे विवादों को थाना पहुंचने से पहले ही निपटा देते है। इसमें मुख्य भूमिका चावल के दानों की होती है। दोनों पक्षों से मंगाए गए चावल के दानों को पानी के जार में डुबाया जाता है। कुछ देर के बाद पानी को हटाया जाता है। अगर चावल के दाने एक दूसरे से चिपके होते हैं, तो समझा जाता है कि दोनों पक्षों में अब कोई विवाद नहीं है। ऐसा गांव के लोग ही नहीं, बल्कि पुलिस का रिकार्ड भी बताता है कि इन इलाकों में वर्षों से कोई मामला दर्ज नहीं है।

जी हां हम बात कर रहे हैं बस्तर जिले के दरभा इलाके की, जहां माओवादियों द्वारा कई संगीन घटनाओं को अंजाम दिया जा चुका है, जिसमें दर्जनों जवानों व आम लोगों की जान जा चुकी है। इस इलाके में अभी भी कई ऐसे गांव हैं, जहां घटनाएं नहीं के बराबर होती हैं। क्षेत्र के सबसे संवेदनशील दरभा थाना व पखनार चौकी के रिकार्ड की बात करें, तो इनमें नागलसार, मादरकोंटा, धारीगुड़ा, मिलकुलवाड़ा, तोलावाड़ा, कावा पुलचा, चितालगुर व सेड़वा ऐसे गांव हैं, जहां वर्षों से कोई संगीन मामले नहीं हुए और न ही यहां के रहवासी रिपोर्ट दर्ज कराने पहुंचे हैं। पुलिस रिकार्ड के मुताबिक मादरकाेंटा गांव की बता करें, तो यहां वर्ष 2014 से अब तक कोई घटना नहीं हुई है और न ही कोई मामला दर्ज हुआ है। इसी तरह ग्राम नागलसार में वर्ष में 2008 से, मादरकोंटा में वर्ष 2014 से, धारीगुड़ा में 2009 से, कावा पुलचा में 2016 से, चितालगुर में वर्ष 2014 से तथा सेड़वा में वर्ष 2017 से कोई मामला दर्ज नहीं है। इससे पूर्व इन गावों में कोई केस हुआ भी है, तो वह प्रतिबंधात्मक कार्रवाई या एक्सीडेंट के मामले दर्ज हुआ है।

चुनाव भी निर्विरोध चितापुर पंचायत के ग्राम धारीगुड़ा निवासी सोनू, चैतन, चितापुर सरपंच चैतूराम कश्यप, धुरवा समाज के संरक्षक महादेव नाग, संपत बघेल, अध्यक्ष बनसिंह कश्यप, उपाध्यक्ष सोनसाय बघेल, चैतू नाग, रतनू, सुखदास, सचिव दशमत कश्यप, सह सचिव अर्जुन बघेल, हीरालाल, दलसाय बघेल, महांंगू बघेल, सामदेव नाग, लखेराम कश्यप आदि ने बताया कि जब से पंचायती राज शुरू हुआ, तब से यहां सरपंच का चुनाव भी निर्विरोध हो रहा था, लेकिन कुछ वर्ष पहले से सरपंच का चुनाव हो रहा है, लेकिन वर्षों बाद भी पंचों का चुनाव निर्विरोध होता चला आ रहा है। इस क्षेत्र में धुरवा जाति के लोगों की संख्या अधिक है। विवाद निपटाने में इनकी होती है महत्वपूर्ण भूमिका

इन गावों में होने वाले छोटे मोटे विवादों को निपटाने में वर्तमान में भी पुरानी परंपराओं की अहम भूमिका होती है। विवाद होने पर सर्वप्रथम दोनों पक्ष को समझाइश दी जाती है। उन्हें बताया जाता है कि आपके विवाद से देवी देवता नाराज होते हैं। इसके बाद भी मामला नहीं सुलझने पर गांव के पुजारी, पेरमा (माटी पुजारी) नाइक व पटेल को आमत्रिंत किया जाता है, जिनकी विवाद निपटाने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इनके द्वारा दोनों पक्षों को बुलाया जाता है। उनके द्वारा लाए गए चावल के दानों को पानी के जार में डुबाया जाता है। कुछ देर के बाद पानी को हटाया जाता है। अगर चावल के दाने एक दूसरे से चिपके होते हैं तो समझा जाता है कि दोनों पक्षों में अब कोई विवाद नहीं है। अगर चावल के दाने अलग अलग होते हैं, तो समझ में आ जाता है कि कोई एक पक्ष संतुष्ट नहीं है। इसके बाद पुन: दोनों पक्षों को समझाइश देकर विवाद को समाप्त किया जाता है। यही कारण है नक्सल प्रभावित संवेदनशील इलाका होने के बाद भी इन गावों से कोई मामला वर्षों से थाना नहीं पहुंचा है और न ही पुलिस रिकार्ड में काई मामला है।

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