कोरोना वायरस लोगों को भुलक्कड़ बना रहा है। वायरस से उबरे लोगों की याददाश्त कमजोर हो रही है। वैसे तो यह समस्या हर उम्र के लोगों में देखने को मिली है लेकिन युवाओं में खास तौर पर यह समस्या देखी जा रही है। बीस से तीस फीसदी तक युवा भूलने की बीमारी की जद में है। जबकि पुराने बीमारी से जूझ रहे लोगों में यह समस्या और भी गंभीर बनी हुई है। मरीज रोजमर्रा की चीजों को भी भुलने लगे हैं। वहीं, चीजों को भूलने की समस्या बताने वाले मरीजों का डॉक्टर एमएमएस (मिनी मेंटल स्टेटस) टेस्ट करा रहे हैं जिसमें यादाश्त की कमी से पीड़ित अधिकतर मरीज फेल हो रहे हैं। अल्जाइमर जागरुकता दिवस पर यूपी, बिहार, झारखंड और दिल्ली की पड़ताल पेश है रिपोर्ट-
उत्तर प्रदेश : आईसीयू में भर्ती मरीजों में देखने को मिली अधिक समस्या
केजीएमयू और बलरामपुर अस्पताल की ओपीडी में अब तक 100 से अधिक मरीज आ चुके हैं। कोविड को हराने के बाद इन लोगों में भूलने की समस्या पैदा हुई है। केजीएमयू मानसिक स्वास्थ्य विभाग के डॉ. आर्दश त्रिपाठी के मुताबिक कोरोना वायरस शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करता है। सबसे ज्यादा फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। नतीजतन मरीज को सांस लेने में दिक्कत होती है। शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है। जबकि शरीर में सबसे ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत दिमाग को पड़ती है। शरीर की करीब 25 प्रतिशत ऑक्सीजन दिमाग को जरूरत पड़ती है। इसमें किसी भी प्रकार की गड़बड़ी से दिमाग की कोशिकाएं (न्यूरांस) को प्रभावित करता है। इससे मरीज में भूलने की समस्या पैदा होती है। उन्होंने बताया कि ओपीडी में कोरोना से उबरे कई मरीज भूलने की समस्या लेकर पहुंचे हैं।
वहीं, यूपी के मुरादाबाद में चीजों को भूलने की समस्या बताने वाले मरीजों का डॉक्टर एमएमएस (मिनी मेंटल स्टेटस) टेस्ट करा रहे हैं जिसमें यादाश्त की कमी से पीड़ित अधिकतर मरीज फेल हो रहे हैं। इन सभी मरीजों का भूलने की बीमारी डिमेंशिया अल्जामइर से पहले की स्थिति मानकर इलाज शुरू किया जा रहा है। मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर नीरज गुप्ता ने बताया कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर में संक्रमण की चपेट में आने वाले मरीजों में भूलने की समस्या बड़े पैमाने पर सामने आ रही है। अमूमन, भूलने की बीमारी 55 या इससे अधिक उम्र में शुरू होती है, लेकिन, कोरोना संक्रमित होने के बाद ठीक हुए 45 साल के लोग भी चीजों को भूलने की समस्या बता रहे हैं। ऐसे सभी लोगों का मिनी मेंटल स्टेटस एग्जामिनेशन कराया जा रहा है।
दिल्ली : बुजुर्ग मरीजों में भूलने की समस्या ज्यादा
दिल्ली में कोरोना से ठीक हुए मरीजों में याददाश्त जाने के कई मामले सामने आए हैं। दिल्ली के एम्स, अपोलो और राजीव गांधी सुपरस्पेशलिटी अस्पताल के पोस्ट कोविड क्लीनिक में अभी तक कई दर्जन ऐसे मामले सामने आ चुके हैं। इनमें बुजुर्गों के साथ युवा मरीज भी हैं जो लॉन्ग कोविड से पीड़ित होने के बाद भूलने की बीमारी से पीड़ित हैं। एम्स के जिरियाटिक मेडिसिन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर विजय कुमार ने बताया कि बुजुर्ग मरीजों में कोरोना से ठीक होने के बाद भूलने की समस्या वाले कई मरीज भर्ती हुए हैं। कई मरीज तो अपने घर का पता तक नहीं याद कर पा रहे थे। ऐसे मरीजों को फिजियोथेरेपी के साथ कॉउंसलिंग और न्यूरो के डॉक्टरों से भी परामर्श कराया जा रहा है।
वहीं, राजीव गांधी सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर बीएल शेरवाल का कहना है कि उनके अस्पताल के पोस्ट कोविड क्लीनिक में कई ऐसे युवा भी आए जो भूलने की समस्या से परेशान थे। कई मरीज तो अपने परिचितों के नाम तक भूल रहे थे। वहीं एम्स की न्यूरोलॉजी विभाग की प्रोफेसर मंजरी त्रिपाठी का कहना है कि कोरोना वायरस शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है। वायरस मस्तिष्क की कोशिकाओं को प्रभावित कर करता है।
झारखंड :: युवा सूडो-डिमेंशिया की चपेट में
झारखंड में 15 प्रतिशत युवा सूडो-डिमेंशिया के शिकार हो रहे हैं। कोविड के बाद ऐसे मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है। न्यूरोलॉजिस्ट के पहुंचने वाले सौ में से 15 मरीजों में इसके लक्षण पाए जा रहे हैं। रांची के न्यूरो फिजिशयन डा. सुरेंद्र के अनुसार कोरोना के बाद ऐसे लक्षण वाले मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है लेकिन यह शोध का विषय है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस पर शोध हो रहा है जिसमें रिम्स के डॉक्टर भी शामिल हैं। डॉक्टरों के अनुसार, अल्जाइमर के मिलते-जुलते लक्षण वाले मरीजों में सोडियम की कमी कॉमन है। साथ ही मोटापा, मधुमेह, कॉलेस्ट्रॉल का बढ़ना प्रमुख कारण हैं। सिर्फ दस फीसदी मरीजों में ही आनुवांशिक वजह से अल्जाइमर हैं। शेष 90 फीसदी लोगों में इसकी सबसे बड़ी वजह स्ट्रेस है।
बिहार:20 से 30 फीसदी युवाओं में भूलने की बीमारी
बिहार के भागलपुर के जेएलएनएमसीएच में कोरोना को मात दे चुके एक से दो लोग रोजाना अवसाद-भूलने की बीमारी के इलाज के लिए आ रहे हैं। इनमे से ज्यादातर लोगों की उम्र 20 से 35 साल के बीच है। पूर्णिया में कोरोना से ठीक हो चुके 20 से 30 फीसदी युवाओं में भूलने की बीमारी सामने आ रही है। चिकित्सक की मानें तो इसमें ब्रेन, हार्ट, फेफड़े आदि को नुकसान पहुंच रहा है। गया में अस्पतालों में सोमेटोफॉर्म यानी तनाव संबंधित मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है।
गया में अस्पतालों में सोमेटोफॉर्म यानी तनाव संबंधित मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है। अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अभय कुमार बताते हैं कि मनोचिकित्सा विभाग में आने वाले रोगियों में लगभग 50 फीसदी से अधिक मरीज तनाव संबंधित रोगों से ग्रसित हैं। तनाव के पीछे कोविड-19 के दौरान रोजगार में नुकसान, नौकरी का नहीं होना, परिवार में किसी की कोविड-19 से मौत या स्वयं कोरोना पीड़ित रहना मुख्य कारण है। मनोचिकत्सिक डॉक्टर दीपशिखा काव्या ने बताया कि जेपीएन अस्पताल में भी उनके पास आने वाले 100 मरीजों में 25 से 30 ऐसे मरीज आ रहे हैं जिन्हें तनाव संबंधी बीमारी हैं। मुजफ्फरपुर में भी संक्रमण से स्वस्थ हो चुके बीस से तीस फीसदी तक युवा भूलने की बीमारी की जद में हैं।
लक्षण
– सोचने समझाने की ताकत कम होना
-ध्यान या मन न लगना,एकग्रता की कमी
-योजना बनाने व उसे लागू करने में अड़चन
– खुद को परिवार व भीड़ वाली जगहों से अलग रखना
कैसे करें बचाव
– भुलने की परेशानी से उबरने के लिए मरीज रोजमर्रा के काम नियमित रूप से करते रहें
– योग करें। प्राणायाम फायदेमंद हो सकता है। परिवार संग मिलकर बातें करें। टहलें और पौष्टिक भोजन लें
क्या है मिनी मेंटल स्टेटस टेस्ट
मिनी मेंटल स्टेटस टेस्ट से मरीज की यादाश्त को सेकेंडों में परखा जाता है। सोलह सवालों के जवाब फटाफट देने होते हैं। आज कौन सी तारीख है, ये हफ्ते का कौन सा दिन है..आप बिल्डिंग के कौन से फ्लोर पर बैठे हैं?…सरीखे सवालों का जवाब फौरन देना होता है। जवाब देने के लिए ज्यादा सोचने की जरूरत पड़ने का सीधा मतलब भूलने की समस्या से होता है।
स्कोर 24 से कम तो खतरे की घंटी
टेस्ट के सवालों का जवाब देने के बाद अगर स्कोर 24 से 30 के बीच आता है तो इसका मतलब आपको यादाश्त से जुड़ी समस्या नहीं है। स्कोर 18 से 23 आने का मतलब आप माइल्ड कॉगनिटिव इंपेयरमेंट से पीड़ित हैं और स्कोर 0 से 17 आने पर आप सेवियर यानि गंभीर कॉगनिटिव इंपेयरमेंट से पीड़ित की श्रेणी में आते हैं।
घर बैठे दे सकते हैं टेस्ट
डॉ.नीरज गुप्ता ने बताया कि चीजों को भूलने की परेशानी महसूस करने वाले लोग घर बैठे गूगल पर मिनी मेंटल स्टेटस एग्जामिनेशन सर्च करके यह टेस्ट ऑनलाइन दे सकते हैं। स्कोर कम आने पर चिकित्सक से परामर्श करके इलाज शुरू करा सकते हैं।
अल्जाइमर से अलग है यह बीमारी
मनोरोग चिकित्सक डॉ. पंकज कुमार मनस्वी बताते हैं इस तरह की बीमारी अल्जाइमर से बिल्कुल अलग है। इसे सुडो डिमेंशिया या पोस्ट कोविड फॉग कहते हैं। इसके शिकार लोगों में यह समस्या छह माह से एक साल तक रहती है। लंबे समय तक समस्या रहने से इसे अवसाद में परिवर्तित होने की आशंका है।