दुनिया भर में संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के स्थापना दिवस के दिन पर विश्व खाद्य दिवस (World Food day) मनाया जाता है. हर साल 16 अक्टूबर को मनाए जाने वाले इस दिन को मनाने का उद्देश्य संसार में भूख की समस्या से निपटना और दुनिया को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना है जिससे पूरी दुनिया में से भूख का उन्मूलन किया जा सके. यह दिन दो तरीके से मनाया जाता है एक तो इस दिन दुनिया के बेहतरीन खाने को प्रोत्साहित किया जाता है, लेकिन इसे दुनिया में खाद्य की कमी से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए भी मनाया जाता है.
पहली बार कब मनाया गया था यह दिन
वैसे तो संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन की स्थापना 16 अक्टूबर 1945 को हुई थी, लेकिन विश्व खाद्य दिवस को मनाने का प्रस्ताव नवंबर 1979 में हंगरी के पर्व कृषि एवं खाद्य मंत्री डॉ पाल रोमानी ने दिया था. तब से इसे हर साल 16 अक्टूबर को 150 से ज्यादा देशों में मनाया जाता है. इस मौके पर बहुत से कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं.
क्या है इस बार की थीम
इस साल की थीम सेहतमंद कल के लिए अभी खाना सुरक्षित रखें ( Save Food now for a healty tomorrow) है. आज खाद्य सुरक्षा एक बहुत बड़ी और बढ़ती समस्या बनती जा रही है. जलवायु परिवर्तन पर खाद्य उपलब्धता पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ रहा है जिसपर लोगों को ध्यान नहीं जा रहा है. वैसे तो ज्यादातर थीम कृषि के आसपास ही होती हैं, लकिन इस बार समस्या की गंभीरता को देखते हुए थीम में आने वाले कल की चिंता पर जोर दिया गया है.
इन संगठनों का जोर
इस दिवस को मानने काम बहुत सारे संगठन करते हैं. लेकिन इस बार संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के साथ, संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार आयोग, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी और विश्व खाद्य कार्यक्रम मिल कर मना रहे हैं.ये संगठन विस्थापित और “मेजबान समुदाय के लिए स्थानीय खाद्य व्यवस्था को मजबूत करने के प्रयासों को मनाने” के शीर्षक के तहत इस साल को खाद्य दिवस मना रही हैं.
जलवायु परिवर्तन भी कारक
दुनिया में इस समय आर्थिक विषमता बहुत है. लेकिन इसके अलावा भौगोलिक, जलवायु, राजनैतिक कारण भी हैं जिससे लोगों में भोजन का उत्पादन और उसकी उपलब्धता की समस्या बहुत गंभीर हैं. हाल के सालों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों ने भी भूख और खाद्य सुरक्षा की समस्या को गंभीर बनाया है. कई जगहों से लोगो पलायन करने के मजबूर हैं जिससे वे शरणार्थी बने हैं और खाद्य की समस्या से जूझने लगे हैं.