कोंडागांव। गोबर के दीए से इस बार घर- आंगन रोशन करने की तैयारी है। पर्यावरण संरक्षण और महिला स्वसहायता समूहों को रोजगार मुहैया कराने की दिशा में गोबर से बने दीए को अहम माना जा रहा है। रंग-बिरंगे गोबर के ये दीए पहली बार बाजार में आया है। छत्तीसगढ़ के विभिन्न शहरों में तेजी से इसकी बिक्री हो रही है। दीए को दीपावली में उपयोग करने के बाद जैविक खाद बनाने उपयोग में लाया जा सकता है। दीया के अवशेष को गमला या कीचन गार्डन में भी उपयोग किया जा सकता है। इस तरह मिट्टी के दीए बनाने और पकाने में पर्यावरण को होने वाले नुकसान के स्थान पर गोबर को दीए को इकोफ्रेंडली माना जा रहा है।
कोंडागांव जिले के गांव बड़े कनेरा की महिलाओं ने इस दिशा में अभिनव पहल किया है। कुछ समय पहले तक यहां महिलाएं खेतों में काम करतीं, घर संभालतीं और गोठान में गाय का गोबर उठाते नजर आती थीं। इन्हीं महिलाओं ने गाय के गोबर को अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति मजबूत करने का जरिया बना लिया है।
गांव की महिलाओं का एक स्वसहायता समूह इस काम में लगा है और ये गोबर से आकर्षक दीए बनाने के साथ-साथ कई तरह की कलात्मक चीजें बना रही हैं। इनकी इस कलात्मक दीयों के कद्रदान भी बहुत हैं। कोंडागांव की यह कला अब छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे देश में अपनी पहुंच बना रही है।
इस तरह से आत्मनिर्भर हो रही हैं महिलाएं
कुछ समय तक इस गांव की महिलाएं गरीबी से जूझते हुए अपना परिवार चला रही थीं। महिलाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, बिहान के स्व सहायता समूहों से जोड़कर प्रशासन द्वारा महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया गया।
यह प्रयास सफल रहा और अब महिलाएं इस अनोखी कलाकारी के जरिए आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रही हैं। ग्राम बड़े कनेरा की महिलाओं द्वारा गोबर से निर्मित दीए इस दिवाली में घरों को रोशन करने के लिए तैयार हैं। महिलाएं गोबर के दिए, स्वास्तिक चिन्ह, गणेश की मूर्ति आदि निर्मित कर रही हैं।
देवकी मानिकपुरी, संतोषी कश्यप, संपत्ति कुलदीप ने बताया कि 26 सितंबर को तीन दिनों का प्रशिक्षण हमें दिया गया। इसके बाद अलग-अलग समूहों की 15 महिलाओं ने गौशाला में गोबर के उत्पाद तैयार करने का काम शुरू किया है। प्रशिक्षण लेने के पश्चात समूह की महिलाएं इत्मीनान से गोबर से दीए, स्वास्तिक चिन्ह, की रिंग, गणेश की मूर्ति जैसी चींजों का निर्माण कर रही हैं। अनोखी कलात्मकता से सजी इन चीजों की कीमत भी बेहद कम है।
गाय के गोबर में मिलाते हैं गोंद
महिलाओं ने बताया कि करीब ढाई किलो गोबर के पाउडर में एक किलो प्रीमिक्स व गोंद मिलाते हैं। गीली मिट्टी की तरह सानने के बाद इसे हाथ से खूबसूरत आकार दिया जाता है। इसके बाद इसे दो दिनों तक धूप में सुखाने के बाद अलग-अलग रंगों से सजाया जाता है।
कामधेनु गौशाला बड़े कनेरा की संचालिका बिंदु शर्मा ने बताया कि पुलिस विभाग की ओर से दीयों का आर्डर आया है। अभी तक दो हजार दीयों का निर्माण हुआ है। इको फ्रेंडली होने के चलते राज्य के अन्य शहरों और अन्य राज्यों से भी इसकी मांग आ रही है। इसके अलावा यहां महिलाएं बचे हुए गोबर चूर्ण और पत्तियों से ऑर्गेनिक खाद भी बना रही हैं।
जिला पंचायत कोंडागांव की मुख्य कार्यपालन अधिकारी नूपुर राशि पन्ना ने बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्यम से बड़े कनेरा में 15 महिलाओं को हमने गोबर के दीए और ऑर्गेनिक खाद बनाने का प्रशिक्षण दिया है। अभी दूसरी बेच को प्रशिक्षण देने की तैयारी चल रही है। इको फ्रेंडली होने के कारण इन दीयों की काफी मांग आ रही है। यहां सफलता के बाद अब जिले के दूसरे इलाकों में भी प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाएंगे।