5 के पंच से मिलेगा चीन के ‘प्रपंच’ को जवाब, गणतंत्र दिवस के लिए भारत ने की ऐसी तैयारी

अफगानिस्तान में चीन के बढ़ते दबदबे के बीच भारत गणतंत्र दिवस के लिए खास तैयारी कर रहा है। भारत ने इस अवसर पर पांच मध्य एशियाई देशों के नेताओं को आमंत्रित करने की योजना बनाई है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस ‘पंच’ के जरिए भारत अफगान क्षेत्र में चीन के ‘प्रपंच’ को सॉलिड जवाब देना चाहता है।

इन पांच देशों पर है निगाह
भारत हर साल गणतंत्र दिवस परेड पर कुछ खास मेहमानों को आमंत्रित करता है। इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक इस साल पांच मध्य एशियाई देशों के नेता भी इस लिस्ट में शामिल हैं। इन देशों के नाम हैं, कजकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान। इन देशों के नेताओं को बुलाने का मकसद, इनके साथ सहयोग, निवेश और रक्षा सहयोग की दिशा में पुख्ता कदम बढ़ाना है। साथ ही ईरान के चाभर पोर्ट के जरिए मध्य एशिया से जुड़ाव की संभावनाओं भी बल देना है। 18-19 दिसंबर को भारत और मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों के बीच होने वाली बैठक के बाद इस पर बात आगे बढ़ने की संभावना है।

कजाकिस्तान इसलिए अहम
बता दें कि सेंट्रल एशिया के कजाकिस्तान से 2009 के गणतंत्र दिवस समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजरबायेव ने शिरकत की थी। उनकी विजिट के दौरान दोनों देशों के बीच इस समझौते पर दस्तखत हुए थे कि कजाकिस्तान भारत को यूरेनियम सप्लाई करेगा। वहीं हाल ही में कजाकिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति के भारत दौरों से भी दोनों देशों के बीच संबंध मधुर हुए हैं। भारत के न्यूक्लियर प्लांट्स को यूरेनियम की सप्लाई को देखते हुए कजाकिस्तान की काफी अहमियत है।

हो सकता है कई तरह से फायदा
मध्य एशियाई देशों से भारत के अच्छे संबंध कई तरह से फायदेमंद साबित हो सकते हैं। एक तो इससे आतंकवाद से लड़ाई में मदद मिलेगी। दूसरे रूस के साथ अच्छे संबंधों को भी वह यहां भुना सकेगा। भारत की शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन में मौजूदगी भी इस दिशा में अहम भूमिका निभा रही है। गौरतलब है कि नवंबर में भारत ने एक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की एक बैठक की थी। इसमें अफगानिस्तान को लेकर बातचीत हुई थी। वहीं छह दिसंबर को भारत और रूस की टू प्लस टू बातचीत में दोनों पक्षों ने मध्य एशिया में संयुक्त प्रोजेक्ट्स पर बात की थी। इस क्षेत्र में रूस का तीन देशों के साथ मिलिट्री समझौता है। मॉस्को की रुचि इस बात को लेकर थी कि क्या भारत इस क्षेत्र में अपना दखल बढ़ाएगा?

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