Kartik Snan 2019: कार्तिक स्नान की ऐसी है महिमा, जानिए इसकी प्रक्रिया

मल्टीमीडिया डेस्क। हिंदू महीनों में कार्तिक मास का बड़ा महत्व बताया गया है। इस महीने शीतऋतु की शुरूआत होती है और गुलाबी ठंड दस्तक देने लगती है। इसलिए इस महीने का शारीरिक, मानसिक और धार्मिक रूप से बड़ा महत्व है। कार्तिक स्नान इस महीने के प्रारंभ होते ही शुरू हो जाते हैं। शास्त्रों में कार्तिक मास की बड़ी महिमा बताई गई है। मान्यता है कि इस मास में सुबह उठकर पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान कर भगवान विष्णु की आराधना करते हैं उनको श्रीहरी की कृपा प्राप्त होती है।

कार्तिक स्नान का महत्व

शास्त्रोक्त मान्यता है कि जो भक्त सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान करते हैं उनको सुख – समृद्धि और स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति होती है। जो श्रद्धालु कार्तिक महीने में समुद्र , पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करते हैं उन्हें अश्व मेघ यज्ञ जैसा लाभ होता है। कार्तिक स्नान और पूजा करने से सत्यभामा को श्रीकृष्ण की अर्द्धांगिनी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

मान्यता है कि इस माह में स्नान, दान और व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और तीर्थयात्रा के समान शुभफल की प्राप्ति होती है। प्रयाग कुंभ में संगम स्नान का जो फल मिलता है वही फल कार्तिक महीने में किसी पवित्र नदी के तट पर स्नान से मिल जाता है। विज्ञान के दृष्टिकोण से भी कार्तिक स्नान को स्वास्थ्यवर्धक बताया गया है। बारिश के दिनों में धरती पर असंख्य हानिकारक जीव पनप जाते हैं। कार्तिक मास में वर्षा समाप्त होने के बाद धरती पर सूर्य की तेज किरणें पहुंचती है, जिससे हानिकारक जीवाणुओं का नाश होता है। वायु शुद्ध होती है और इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

इस तरह करें कार्तिक स्नान

कार्तिक स्नान और व्रत का संकल्प लेने वाले श्रद्धालु को सूर्योदय से पूर्व उठ जाना चाहिए। नित्यकर्म से निवृत्त होकर पवित्र नदी, तालाब या कुंड के जल में प्रवेश करना चाहिए। शरीर का आधा हिस्सा जल में डूबा रहे इस तरह खड़े होकर स्नान करना चाहिए। कार्तिक स्नान में गृहस्थ को काले तिल और आंवले के चूर्ण को शरीर पर मलकर स्नान करना चाहिए। सन्यासी को तुलसी के पौधे की जड़ में लगी मिट्टी को शरीर पर मलकर स्नान की प्रक्रिया पूर्ण करना चाहिए। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर विधि विधान से भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए और तुलसी , केला , पीपल के नीचे दीपक जलाकर पूजन करना चाहिए।

इसके साथ ही कुछ सावधानियां भी बरतना जरूरी है। सप्तमी , द्वितीया , नवमी , दशमी , त्रयोदशी तथा अमावस्या को तिल और आंवला मलकर स्नान का निषेध है। कार्तिक स्नान का संकल्प लेने वाले को इस महीने तेल नहीं लगाना चाहिए। सिर्फ नरक चतुर्दशी के दिन तेल लगाया जा सकता है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *