लंबे इंतजार के बाद राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने दो साल पहले यानी 2017 के जो अपराध संबंधी आंकड़े जारी किए हैं, वे चौंकाने वाले हैं, खासतौर से देश की राजधानी दिल्ली के संदर्भ में। इन आंकड़ों से पता चलता है कि संगीन अपराधों में दिल्ली सबसे आगे है, जहां रोजाना हत्या, लूटपाट, बलात्कार, महिलाओं से छेड़छाड़ और गैंगवार जैसी घटनाएं होती हैं। हालांकि आंकड़े देशभर के हैं, इसलिए अपराध के मामले में और राज्यों की हकीकत भी सामने है। रिपोर्ट बता रही है कि अपराधों के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। साल 2017 में पचास लाख से ज्यादा मामले दर्ज हुए थे, जिनमें से तीन लाख से ज्यादा मामले अकेले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए। इसके बाद दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र रहा जहां करीब दो लाख नब्बे हजार आपराधिक मामले दर्ज हुए। तीसरे स्थान पर मध्य प्रदेश, चौथे पर केरल, और पांचवें पर दिल्ली रहा। दिल्ली में दो लाख बत्तीस हजार आपराधिक मामले दर्ज हुए थे। इन आंकड़ों से जो तस्वीर बनती है, वह यह कि शीर्ष चार राज्यों और दिल्ली में अपराधी बेखौफ हैं।
दिल्ली में बढ़ते अपराध चिंता का ज्यादा और गंभीर विषय इसलिए भी हैं, क्योंकि यह देश की राजधानी है। इसलिए माना जाता है कि यहां सुरक्षा सबसे ज्यादा होनी चाहिए। लेकिन हकीकत में स्थिति ऐसी है नहीं। राजधानी होने की वजह से दिल्ली में रोजगार के लिए देश के दूसरे हिस्सों से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। जाहिर है, दिल्ली पर आबादी का बोझ है और इसलिए अपराध भी बढ़ रहे हैं। आबादी की तुलना में पुलिस की भारी कमी है। दिल्ली पुलिस का बड़ा हिस्सा वीआइपी सुरक्षा में लगा रहता है और ऐसे में पुलिस आम आदमी की सुरक्षा से समझौता करती है। फिर दिल्ली में ज्यादातर आपराधिक घटनाएं दर्ज होती हैं, जबकि दूसरे राज्यों में ऐसा नहीं होता। अपराधों का बढ़ता ग्राफ सिर्फ दिल्ली तक ही सीमत नहीं है। देश के ज्यादातर महानगरों की हालत यही है। लोग काम की तलाश में इन शहरों की ओर जा रहे हैं और काम नहीं मिलने पर अपराध की दुनिया की चपेट में आ जाते हैं। लूटपाट और हत्या की ज्यादातर घटनाओं के पीछे पैसा ही प्रमुख कारण है और इनमें शामिल युवक कई बार बेरोजगारी की वजह से भी ऐसा करते हैं। जबकि आपसी रंजिश में हत्याओं की घटनाएं कम हुई हैं।
लेकिन उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों में अपराधों का बढ़ता ग्राफ सीधे-सीधे कानून-व्यवस्था से जुड़ा है। अपराधों के मामले में उत्तर प्रदेश हमेशा से आगे रहा है। कहना न होगा कि भीड़ हत्या, बच्चा चोरी के शक में पीट-पीट कर मार डालने की वारदातें, गोरक्षकों के तांडव जैसी घटनाएं तो उत्तर भारत के राज्यों में ही ज्यादा हुई हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि एनसीआरबी की इस रिपोर्ट में ऐसे मामलों के आंकड़े नहीं दिए गए हैं। जबकि राजद्रोह और साइबर अपराधों के आंकड़े शामिल किए गए हैं। एनसीआरबी दरअसल वही आंकड़े जारी करता है जो उसे राज्यों की पुलिस मिलते हैं। लेकिन वास्तव में देखा जाए तो अपराधों की संख्या इन आंकड़ों से कई गुना होगी, क्योंकि बहुत सारे मामलों में पुलिस रपट ही नहीं लिखती। अपराधों के बढ़ने के पीछे बड़ा कारण पुलिस की निष्क्रियता और लापरवाही है। नागरिकों से पुलिस का सतत संपर्क भी खत्म-सा हो गया है। ऐसे में लगता है कि पुलिस का आमजन से कोई सरोकार नहीं रह गया है। फिर, पुलिस तंत्र खुद सदियों पुराने कानूनों को ढो रहा है और दुर्दशा का शिकार है। ऐसे में पुलिस के भरोसे अपराध रुकें तो कैसे!