नई दिल्ली
न्यायिक नियुक्तियों को लेकर केंद्र सरकार और कॉलेजियम के बीच टकराव के बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए जाने पर नाखुशी जताई। सुप्रीम कोर्ट ने 1973 के केशवानंद भारती केस का हवाला देकर कहा था कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है लेकिन इसके मूल ढांचे में बदलाव नहीं कर सकती। उपराष्ट्रपति ने कहा कि 1973 में गलत परंपरा शुरू की गई थी। उन्होंने कहा, मैं कोर्ट से सम्मानपूर्वक कहना चाहता हूं कि बुनियादी ढांचे का आधार भी जनादेश ही होता है। अगर संसद की शक्ति पर कोई संस्थान सवाल उठाएगा तो हम कैसे कहेंगे कि हम लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं।
बता दें कि मूल ढांचे में बदलाव का सिद्धांत ही कई संवैधानिक संशोधन विधेयकों को किनारे करने का कारण बन चुका है। इसी तरह एनजेएसी ऐक्ट को भी रद्द किया गया। कोर्ट ने कहा था कि यह कानून न्यायपालिका की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है जो कि संविधान के मूल ढांचे में है। धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र में संसदीय संप्रभुता औऱ स्वायत्तता सबसे ऊपर है और न्यायपालिका या फिर कार्यपालिक संसद में कानून बनाने और संशोधन करने की शक्ति नहीं अमान्य कर सकता है। वह जयपुर में 83वें अखिला भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन का उद्गाटन करने पहुंचे थे। पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का जिक्र करते उन्होंने कहा कि क्या अब संसद से बने कानूनों पर कोर्ट की मोहर लगवानी पड़ेगी। जनादेश को बेअसर करने की शक्ति किसी के पास नहीं है।
उन्होंने कहा संसद और विधानमंडलों की प्रधानता औऱ स्वायत्तता से समझौता नहीं किया जा सकता है। कार्यपालिका कानून का पालन करने को बाध्य है। इसी तरह एनजेएसी कानून को भी पालन करना था। न्यायपालिका इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। संसद और विधायिकाओं का काम है कि वह लोगों की संप्रभुता की रक्षा करे। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका संसदीय कार्य में दखल नहीं दे सकती। उन्होंने कहा, शायद दुनिया में लोकतांत्रिक इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है। किसी भी कार्यपालिका या फिर न्यायपालिका के दखल से संसदीय स्वायत्तता दांव पर नहीं लगाई जा सकती।