भोपाल
मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के 15 साल के शासन को 2018 में झटका लगा था। भाजपा की इस हार की एक वजह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का साथ कमजोर होना भी माना गया था। हालांकि, हार से सबक लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तक सक्रिय हो गए थे। जानते हैं राज्य में क्यों जरूरी है दलितों का साथ और भाजपा का क्या है प्लान।
पहले चुनाव 2018 के हाल
साल 2018 में 230 विधानसभा सीटों वाले मध्य प्रदेश में भाजपा के खाते में 109 सीटें आई थीं। जबकि, 114 सीटों पर जीत के साथ कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। खास बात है कि 2013 चुनाव में यह आंकड़ा क्रमश: 165 और 58 था। भाजपा का सबसे खराब प्रदर्शन चंबल, मालवा ट्राइबल क्षेत्र में रहा था। इसके अलावा पार्टी महाकौशल में भी कांग्रेस से पिछड़ गई थी।
SC/ST सीटों पर बिगड़ा खेल
बीते चुनाव में आरक्षित 82 सीटों पर भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ था और पार्टी केवल 34 सीटें ही जीत सकी थी। इनमें 18 एससी और 16 एसटी शामिल थी। 2013 में यह संख्या 59 सीटों पर थी। उस दौरान भाजपा ने 31 एसटी और 28 एससी सीटें अपने नाम की थीं।
मतदाताओं का गणित
साल 2018 चुनाव में 5 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं में एससी वोटर्स की संख्या 73 लाख 77 हजार 150 थी। इनमें पुरुषों की संख्या 38 लाख से ज्यादा और महिलाएं करीब 35 लाख थीं। वहीं, राज्य में एसटी वोटर 1 करोड़ 5 लाख 2 हजार 949 थे। सामान्य के मुकाबले मतदान एसटी वर्ग में ज्यादा हुआ था।
समस्या क्या?
राज्य में भाजपा लगातार दलितों और आदिवासियों के बीच विस्तार में जुटी हुई है, लेकिन कहा जा रहा है कि सत्ता साझा करने में असफलता भी पार्टी के लिए इस मामले में नुकसानदायक हो सकती है। हालांकि, 2018 की हार के बाद ही भाजपा ने इसपर मंथन शुरू कर दिया था और 2020 में दोबारा सत्ता संभालने के बाद दिग्गज भी आदिवासियों के बीच पहुंच गए थे।
पीएम मोदी 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस पर राजधानी पहुंचे थे। उस दौरान उन्होंने रानी कमलापति (भोपाल की आखिरी गौंड रानी) रेलवे स्टेशन का उद्घाटन किया था। साथ ही उन्होंने एमपी के सभी 89 ट्राइबल ब्लॉक्स में राशन की होम डिलीवरी शुरू की थी और PESA एक्ट लागू करने का ऐलान किया था। इसके अलावा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी जबलपुर पहुंचे थे और गौंड स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रघुनाथ शाह और उनके बेटे शंकर शाह को समर्पित संग्रहालय बनाने की बात कही थी।