श्रीराम का छत्तीसगढ़ से है गहरा नाता, वनवास के दौरान इस मंदिर में की थी पूजा

रायपुर। छत्तीसगढ़ से मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का गहरा नाता रहा है। वनवास के चौदह वर्षों में से करीब दस साल श्रीराम ने यहां के जंगलों में गुजारा । तब इसे दंडक वन के नाम से जाना जाता था। इस वनमार्ग से गुजरते हुए श्रीराम आरंग (रायपुर) आए थे। जहां बागेश्वरनाथ महादेव मंदिर में उन्होंने भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की थी, ऐसी ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यता है। आरंग स्थित बागेश्वरनाथ महादेव का प्राचीन और भव्य मंदिर इतिहास का साक्षी है। जहां रघुवीर के चरण पड़े थे। 108 खंभों से निर्मित इस मंदिर को सिद्घपीठ का दर्जा प्राप्त है। यहां हजारों श्रद्घालु दर्शन करने पहुंचते हैं और मन्नतें मांगते हैं।

छत्तीसगढ़ में इन मार्गों से होकर गुजरे थे श्रीराम

श्रीराम वनगमन मार्ग शोध दल छत्तीसगढ़ के अनुसार भगवान श्रीराम अयोध्या से वनवास पर उत्तर से दक्षिण की ओर चल पड़े थे। इस दौरान उन्होंने करीब दस साल दंडक वन में गुजारे। उत्तर से दक्षिण की ओर जाने वाला यही मार्ग दक्षिणापथ कहलाया। छत्तीसगढ़ में श्रीराम का पहला पड़ाव मवई नदी के तट पर सीतामढ़ी हरचौका, जनकपुर, भरतपुर तहसील कोरिया में हुआ था। इसके बाद मवई, रापा, गोपद, नेउर, सोनहद, हसदेव, रेण, महान, मैनपाट के समीप मैनी नदी, माड से होते हुए महानदी के तट पर पहुंचे।

महानदी के तट पर स्थित शिवरीनारायण होते हुए सिरपुर, आरंग, राजिम ऐतिहासिक नगरियों के जंगल से होते हुए सिहावा पर्वत पर महानदी के उद्गम स्थल पर भी पहुंचे थे। सीतानदी, कोतरी, दूध नदी, इंद्रावती, शंखनी-डंकनी, दंतेवाड़ा, कांगेर नदी से होते हुए तीरथगढ़ होकर कुटुमसर गुफा और रामाराम तट पर पहुंचने के प्रमाण शोधकर्ताओं को मिले हैं। शबरी नदी से गोदावरी तट होते हुए वे भद्राचलम (आन्ध्रप्रदेश) पर्णकुटी पहुंचे थे। इस तरह श्रीराम दंडक वन अर्थात दंडकारण्य (छत्तीसगढ़) में जीवनदायिनी नदियों के तट से होते हुए जलमार्ग से दक्षिण में प्रवेश किए।

वास्तु शास्त्र का अनूठा मेल है इस मंदिर में

भगवान श्रीराम का ननिहाल दक्षिण कोशल (वर्तमान में छत्तीसगढ़) के आरंग नगरी में स्थित है बागेश्वर नाथ महादेव का प्राचीन और भव्य मंदिर, जहां भगवान श्रीराम वन गमन के समय आये थे। ऐसी मान्यता है कि श्रीराम का वनगमन मार्ग में यहां 98वां पड़ाव था। 108 खंभों से निर्मित इस मंदिर में 24 खंभे गर्भगृह मंडप के लिए है। और शेष 84 खंभों से मंदिर के चारों ओर चार दीवारी बनाई गई है। यह मंदिर पूर्वाभिमुख है। यहां के पुजारी और नगरवासी बताते हैं कि सूर्योदय की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह में भोलेनाथ की मूर्ति पर सीधा पड़ती है। मंदिर की एक खासियत यह भी है कि भगवान भोलेनाथ के साथ देवी पार्वती की मूर्ति गर्भगृह में विराजमान हैं। यहां शिवलिंग का विशेष श्रृंगार के साथ पूजा अर्चना प्राख्यात है। इस मार्ग से जब भी आदिगुरू शंकराचार्य गुजरते हैं, भगवान भोलेनाथ का दर्शन करने अवश्य पहुंचते हैं।

लाल पत्थरों से निर्मित है यह भव्य मंदिर

श्रीराम गमन सांस्कृतिक स्रोत संस्थान न्यास नई दिल्ली के अनुसार वनवास काल में भगवान श्रीराम 249 स्थानों पर रूके थे। जिसमें बाबा बागेश्वरनाथ भी शामिल है। इससे मंदिर की प्राचीन काल से मान्यता, पौराणिकता व भक्तों की आस्था को बल मिलती है। मंदिर का पूर्वमुखी होने के साथ-साथ विशाल आकार, सुंदर बनावट व भव्यता श्रद्घालुओं को बरबस ही आकर्षित करती है। प्राचीनकाल में लाल पत्थरों से निर्मित इस मंदिर की भव्यता और मजबूती से इसके ऐतिहासिक होने का प्रमाण मिलता है।

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