रायपुर
शिव के कृपा के बिना मुक्ति मिलना असंभव है क्योंकि अधृत्व मुक्ति केवल शिव ही दे सकता है। शिव की भक्ति कब करोंगे जो जब शिव को जानेंगे। करोड़ों नदी में चढ़ाने के बराबर है शिव को जल चढ़ाना है। शिव को जल चढ़ाने के लिए लोटा नहीं, लोटे से भरा जल नहीं, खंडे से भरा जल नहीं, सिर्फ नाम मात्र से शिव प्रसन्न हो जाते है। करोड़ों तीर्थ यात्रा के बराबर फल मिलता है वाउजमैय यज्ञ से। गंगा जल पीने से पाप माफ नहीं होता है, सबको पाप उसका परिणाम भुगतना ही पड़ता है। उक्त बातें श्री शिव महापुराण कथा व महाशिवरात्रि रुद्राभिषेक के दौरान खमतराई के दोना पत्तल फेक्टरी बम्हदाई पारा में कथावाचक पं. खिलेंद्र कुमार दुबे ने कहीं।
उन्होंने कहा कि क्या कोई व्यक्ति तार सकता है जो कभी नाम ही न लिया हो ईश्वर का, जो जैसा रहता है वह वैसा ही मित्र चाहता है। तुम तुम नहीं मैं मैं नहीं और कोई भेदवभाव नहीं है। कथा एक ऐसी चीज है जिसमें खुद ब खुद सब कुछ मिट जाता है और नहीं जाने की जरुरत नहीं पड़ती। जो मानव दिन रात पाप में लगा हो क्या वह किसी को तार सकता है, हो क्योंकि भारत में कोई ऐसा पापी नहीं है। त्रिराज नगर में रहने वाले ब्राम्हण भी पापी थे और वहां कुछ भी सही नहीं था। ब्राम्हण जहां पापी हो जाए वहां अन्य लोगों का पापी होना स्वभाविक है। भगवान का पार्षद कौन ब्राम्हण है और वह पाप पे पा करते जा रहे थे और स्त्रियां भी वही काम करने लगी। पाप के बारे में भागवत में इसलिए बताया जाता है कि लोग पाप करने से दूर रहे लेकिन आज के लोग है जो पाप करने से डरते नहीं है और पाप करने के बाद गंगा जल पी लेते है। गंगा जल पीने से पाप माफ नहीं होता है क्योंकि सबको पाप का परिणाम एक दिन भुगतना ही पड़ता है।
पं. खिलेंद्र दुबे ने श्रद्धालुजनों को बताया कि कितना भी जतन कर लो इस शरीर और मन का इसे कोई तार नहीं सकता और तार सकता है तो वह है शिव महापुराण, इसके अलावा कोई भी पुराण नहीं तार सकता। जब कभी भी कोई शंकराचार्य आते है तो वह लंबा प्रवचन या कथा करने के लिए नहीं आते है इसलिए उनका दर्शन करने के लिए अवश्य जाना चाहिए क्योंकि हमें बार-बार चमत्कार प्राप्त नहीं होता है। देवराज भी कथा सुनने के लिए नहीं चोरी करने के लिए गए हुए थे। भगवान की कथा आशुतोष खींचता है और देवराज भी उसे ही चोरी करने के लिए गए थे और वहां से आने के बाद बीमार हो गए और कथा सुनते-सुनते उसे मृत्यु की प्राप्ति हो गई और भगवान शिव ने उसे अपना पार्षद बना दिया। अगर हम भी जान बुझकर कथा सुनेंगे और एक दिन भगवान शिव भी हमें अपना पार्षद या अपना गण जरुर बनाएंगे।
पंडित दुबे ने कहा कि पाप का मित्र कलयुग और सत्य का मित्र सतयुग, धान का मित्र त्रेतायुग है और हम अभी पाप के युग में रह रहे है। बिंदु नगर में सब नर पापी थे लेकिन बिंदुनगर की महारानी चंचुला पूजा-पाठ करती थी और भगवान शिव की परम भक्त थी और पति की सेवा करना बंद कर दिया था क्योंकि वह उसे पति सुख नहीं दे रहा था। दोनों पति-पत्नी दूसरों से संबंध बनाना शुरू कर दिया। इसलिए हमें किसी दूसरे के साथ संबंध नहीं बनाना चाहिए क्योंकि अगर पाप करोंगे तो नरक में जाओगे। इसलिए वर्णन को सुनकर चंचुआ कांप गई और रोने लगी कि मैंने भी बहुत पाप किया है। लेकिन चंचुला ने बचपन में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी इसलिए उसका पाप व्यर्थ नहीं गया। जो मनुष्य प्राश्चयाताप करता है उसका पाप कटना उसी दिन से शुरू हो जाता है।