रायपुर, 15 नवंबर 2019। परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण विभाग 15 नवंबर से 21 नवम्बर के बीच नवजात शिशुओं को विशेष देखभाल प्रदान करने के उद्देश्य से गृह आधारित नवजात एवं बच्चों की देखभाल सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है। इस दौरान शहर से लेकर गांव के मितानिन घर-घर जाकर उन दंपतियों से संपर्क कर रही हैं, जिनके घर नवजात शिशुओं का जन्म हुआ है। महिलाओं के गर्भधारण से लेकर बच्चेंप के 2 साल पूर्ण होने तक 1000 दिन तक शिशुओं के देखभाल, मां द्वारा स्तिनपान कराने और ऊपरी पोषण आहार देने को लेकर महिलाओं को जानकारी दी जा रही है। इसके अलावा आंगनबाड़ी केंद्रों में पंजीकृत गर्भवती महिलाओं व शिशुवती माताओं को भी खानपान से लेकर बच्चेे के गर्भावस्थास के दौरान सावधानियां बरतने की जानकारी दी गई। आंगनबाड़ी केंद्रों में शिशुओं का हर महीने वजन कराने और स्वासस्य्े परीक्षण व नियमित टीकारण के दौरान महिलाओं को बच्चोंी के देखभाल की जानकारी प्रदान की जाती है।
राजधानी के रायपुरा वार्ड के आरडीए कॉलोनी में मितानिन श्रीमती रामेश्व री महिलांगे और श्रीमती ताहिरा खान द्वारा संस्थावगत प्रसव के बाद अस्प ताल से डिस्चा र्ज होकर लौटी शिशुवती माता श्रीमती उतरा पाठक के घर जाकर गृह आधारित नवजात शिशु की देखभाल की जानकारी दी गई। मितानिन रामेश्वमरी ने बताया, उतरा पाठक ने डॉ अंबेडकर अस्पअताल में सिजेरियन प्रसव से एक स्वचस्य्ाता शिशु को जन्मा दिया। जन्मा के तुरंत बाद शिशु का वजन 3.5kg रहा, जिसकों अस्पताल में 8 दिन भर्ती रहने के बाद डिस्चा र्ज कर किया गया था। शिशु का उम्र आज 21दिन हुए हैं। आज गृह आधारित नवजात देखभाल सप्ताेह के दौरान गृहभ्रमण में महिला को बताया, शिशु को दिनभर में 8 से 10 बार स्तुनपान कराया जाना चाहिए । शिशु को मां के सीने से लगाकर ही स्त नपान कराने से मां का बच्चे0 से लगाव बना रहता है। मितानिन ताहिरा खान ने मितानिन ने बताया, माँ और परिवार के सदस्यों को शिशु के आँख में आँख डाल कर बात करना चाहिए है, माँ को मुस्कुँराकर बच्चेत के सिर पर हाथ सहलाना चाहिए। शिशु के गर्भ नाल में किसी तरह का क्रीम नहीं लगाना चाहिए और बच्चेु को साफ हाथ से छूना चाहिए है।
मितानिनों ने बताया, प्रसव के बाद मां के मानसिक स्वाएस्य्सहल पर ध्याबन रखने के लिए सप्तानह में एक बार गृहभ्रमण कर दंपतियों से बातचीत भी किया जाता है। ताकि प्रवस के बाद माता के व्यरवहार में कुछ बदलाव आता है। जैसे –चिड़चिड़ापन आना, अपने ऊपर व बच्चे के ऊपर ध्याचन नहीं देना, उदास होना। इस तरह के व्यंवहार होने पर परिजनों को समझाइश दिया जाता है कि माता का ध्यायन रखते हुए बच्चेख के देखभाल में भी सहयोग प्रदान करना है। नवजात में संक्रमण का पहचान के लिए नवजात के जन्मह के बाद 42 दिनों में 7 बार परिवार को भ्रमण कर पूरी जानकारी लेकर परिवार को मदद किया जाता है। सरकार द्वारा मितानिन को टीकाकरण, संस्थागत प्रसव, प्रसव पूर्व चार जांच, नवजात के बच्चे के घर भ्रमण सहित कुछ सेवाएं पर शासन द्वारा प्रोत्साहन राशि दी जाती है। मितानिनों के निस्वार्थ कार्यों से स्वास्थ्य विभाग को काफी सहयोग भी मिलता है।
आंगनबाड़ी केंद्रों में भी महिला स्वानस्य्ार कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता द्वारा गर्भवती महिलाओं व शिशुवती माताओं को शिशुओं की देखभाल की जानकारी दी जाती है। महिला स्वाीस्य्र् कार्यकर्ता श्रीमती अरुणा गुहा ने बताया, नवजात को 6 महीने तक मां का दूध से स्तणनपान कराने से शिशु का मानसिक और शाररिक विकास सही तरीके से होता है। इसके अलावा 6 महीने के बाद बच्चेह को ऊपरी पोषण आहार, केला, अंडा, दूध और बिस्किट भी दिया जाना चाहिए। हर महीने वजन कराने के साथ निर्धारित अवधि में बच्चेक का टिकाकरण कराया जाना चाहिए।
रायपुरा वार्ड के डिपरापारा स्थित आंगनबाड़ी केंद्र क्रमांक -8 की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती बुधा घृतलहरे ने बताया, शिशुवती माता श्रीमती पूनम यादव और गीता यादव की बच्चीं का उम्र 11महीने का है जिनका वर्तमान में वजन 6.2 kg है। जबकि उम्र के बच्चेी के औसत वजन 9kg तक होना चाहिए। इन महिलाओं को बच्चों के देखभाल में पुरक पोषण आहार कराने के लिए जानकारी दी गई। आंगनबाड़ी केंद्र क्रमांक- 8 में गर्भवती महिलाओं की संख्याी 10 और 6 माह से कम उम्र की बच्चों वाली शिशुवती माताएं 14 है। वहीं 6 माह से 3 साल तक उम्र की बच्चे की संख्याग 72 और 3 वर्ष से 6 साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या 86 है। इसके अलावा अतिकुपोषण से ग्रसित 3 बच्चेी मिले हैं। इन हितग्राहियों को प्रतिदिन आंगनबाड़ी केंद्र द्वारा पोषण आहार व भोजन दिया जाता है।
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मितानिन और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने दी गृह आधारित नवजात एवं बच्चों की देखभाल की जानकारी
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