आज तीन महीने हो गए, मेरे पापा एकदम बदल से गए हैं. वो ऑफिस से आकर बहुत उदास-से रहते हैं. न घर पर टीवी चलती है न कोई म्यूजिक सिस्टम चलाता है. यहां तक कि मम्मी पापा आपस में भी कम बात करते हैं. किसी के यहां प्रोग्राम फंक्शन में आना-जाना तक बंद कर दिया है.हर किसी को बताते हैं कि बेटी का 12वीं बोर्ड एग्जाम है, इसलिए हम लोग अभी उसे पढ़ने का माहौल दे रहे हैं. मुझे ये समझ नहीं आता कि मैं कैसे बताऊं कि इन दोनों का ये रवैया ही मुझे परेशान किए है. मेरे हमेशा 90 प्रतिशत से ज्यादा नंबर आए हैं, लेकिन शायद इस बार न आ पाएं.
'मैं अच्छे नंबर नहीं ला पाई तो मम्मी-पापा का क्या होगा'
ये वो कंप्लेन है जो IHBAS हॉस्पिटल दिल्ली की ओर से शुरू नेशनल टेली मानस हेल्पलाइन नंबर में आई एक कॉल में एक छात्रा ने काउंसलर से की. छात्रा ने कहा कि उसे ये चीजें लगातार इतना परेशान कर रही हैं कि वो न सही से पढ़ पा रही है न ही कोर्स पूरा कर पा रही है. छात्रा ने कहा कि अब कभी कभी लगता है कि अगर मैं अच्छे नंबर नहीं ला पाई तो मम्मी-पापा का क्या होगा. इतना कहते हुए छात्रा रोते हुए बोली कि अगर नंबर अच्छे नहीं आए तो मैं ये सब कैसे फेस कर पाऊंगी.
एंजाइटी से जूझ रहे पैरेंट्स
छात्रा की कॉल को काउंसलर ने पूरा सुनने के बाद उससे अपने पैरेंट्स से बात कराने को कहा. फिर पैरेंट्स की काउंसिलिंग शुरू हुई तो उनमें एंजाइटी के पूरे लक्षण थे. फिर इस तरह काउंसलर ने उन्हें फॉलोअप कॉल किया, फिर इसके बाद फिर अगले दिन कॉल किया. उसके बाद काउंसलर ने छात्रा से फिर बात की तो उसने सुसाइड के ख्याल आने की बात कही. इसके बाद वो कॉल साइकेट्रिस्ट से कनेक्ट की गई और छात्रा को अस्पताल भेजकर उसका इलाज शुरू किया गया. वहीं पैरेंट्स ने भी अपना रवैया काफी बदल दिया.
बच्चों में मानिसक तनाव का कारण बन रहे पैरेंट्स?
IHBAS के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि कमोबेश पैरेंट्स के व्यवहार से छात्रों में मानसिक तनाव ज्यादा बढ़ रहा है. इस तरह की दर्जनों शिकायतें डेली आ रही हैं जहां हमें बच्चों की बजाय पैरेंट्स की काउंसिलिंग करनी होती है. इसलिए आप बच्चे के सामने इस तरह का व्यवहार करके उनमें पैनिक न क्रिएट करें.
पैरेंट्स न करें ये 10 गलतियां
- आप बच्चों पर कुछ भी थोपे नहीं चाहे वो खाने पीने की बात हो या सोने की
- बच्चे से हर समय पढ़ाई की बात न करें, तैयारी हुई कि नहीं, ये न पूछते रहें.
- बच्चे को पूरी तरह से मोबाइल सोशल मीडिया से कट आफ न कर दें.
- अपना व्यवहार रोजमर्रा से अलग न करें मसलन दुखी और उदास न रहें.
- बच्चे की पड़ोसी-रिश्तेदारों के बच्चे या उसके दोस्तों आदि से तुलना न करें
- उन्हें 40 से 45 मिनट का ब्रेक लेने पर कभी टोके नहीं.
- बच्चों को उनकी हॉबी के काम भी करने दें, किसी से बात करने को न रोकें.
- बच्चे को हर समय मॉनीटर करने की आदत से बचें कि वो क्या कर रहा है.
- बच्चे को हमेशा ये ताना न दें कि आपने उन पर कितना पैसा खर्च किया.
- बच्चे को ये भी प्रेशर न दें कि उसे माता-पिता का सपना पूरा करना है.
पैरेंट्स क्या करें?
भोपाल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी ने कहा कि आप बच्चे के व्यवहार पर दूर से नजर रखें. अगर वो बताते हैं कि उन्हें अजीब से विचार आ रहे. वो कम खा रहे हैं या कम सो रहे हैं तो उनकी मदद करें. उन्हें ये बताएं कि आप उन्हें अनकंडीशनल प्रेम करते हैं, उनके कम या ज्यादा मार्क्स लाने से आपका प्यार कम नहीं होगा.