नई दिल्ली
चीन के प्रयासों से सऊदी अरब और ईरान के बीच फिर से राजनयिक संबंधों की बहाली और दोनों देशों के बीज विश्वास बहाली के समझौते के बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सोमवार को वैश्विक मामलों के प्रबंधन में बड़ी भूमिका निभाने का आह्वान किया है। वैसे तो शी जिनपिंग ने चीनी संसद के औपचारिक सत्र समापन के मौके पर सोमवार को दिए अपने भाषण में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की किसी योजना का कोई विवरण तो नहीं दिया लेकिन 2012 में सत्ता में आने के बाद से उनके नेतृत्व में बीजिंग तेजी से मुखर रहा है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और अन्य वैश्विक संस्थाओं में बदलाव के लिए कहता रहा है। शी कहते रहे हैं कि ये संस्थाएं विकासशील देशों की इच्छाओं को प्रतिबिंबित करने में विफल रहे हैं।
अमेरिका के मुकाबले बड़ी ताकत बनने की चीनी चाहत:
हालांकि,शी ने कहा कि चीन को वैश्विक प्रशासन प्रणाली के सुधार और निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए और "वैश्विक सुरक्षा पहलों" को बढ़ावा देना चाहिए। शी ने कहा कि इससे "विश्व शांति और विकास में सकारात्मक ऊर्जा" बढ़ेगी। इससे चीनी राष्ट्रपति के इरादे साफ होते हैं कि आने वाले समय में वह चीन को अमेरिका के मुकाबले एक बड़ी ताकत के रूप में खड़ा करना चाहते हैं और इसके लिए वह अमेरिका के सारे दुश्मन देशों को अपने साथ लामबंद करना चाहते हैं। रूस पहले से ही चीन का साथी रहा है।
शी जिनपिंग की मंशा क्या:
शी जिनपिंग दक्षिण प्रशांत से लेकर एशिया से अफ्रीका और यूरोप तक के देशों में बंदरगाहों, रेलवे और व्यापार से संबंधित अन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए मल्टीबिलियन-डॉलर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विस्तार चाहते हैं और चीन के व्यापार और सुरक्षा पहलों को बढ़ावा देने की मंशा रखते हैं। शी लंबे समय से अमेरिका और उसके सहयोगियों को चुनौती देने के लिए एक वैकल्पिक विश्व व्यवस्था बनाने की मांग करते रहे हैं। तेहरान-रियाद सौदा यह साबित करता है कि वाशिंगटन अब जियोस्ट्रैटेजिक सफलताओं के केंद्र में नहीं रह गया है।
लैटिन अमेरिका से लेकर अफ्रीका तक पर नजर:
शी ने शुरुआत में अपने ऐतिहासिक बेल्ट-एंड-रोड इन्फ्रास्ट्रक्चर कार्यक्रम के माध्यम से पड़ोसी देशों के बीच आर्थिक संबंधों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया था लेकिन अब वह मध्य पूर्व, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के देशों के साथ चीन के राजनयिक प्रभाव का विस्तार करना चाह रहे हैं। वैश्विक मंच पर, ईरान-सऊदी अरब की दोस्ती कराकर चीन ने उस क्षेत्र के देशों के साथ पहले से अधिक विश्वसनीयता हासिल कर ली है, जो भविष्य में उसके आर्थिक महाशक्ति बनने की राह बना सकते हैं।