स्थानीय उत्पाद के दम पर छत्‍तीसगढ़ के पिछड़े जिलों में लड़ी जाएगी कुपोषण की जंग

रायपुर। बस्तर संभाग के आकांक्षी (पिछड़े) जिलों में कुपोषण के खिलाफ जंग कोदो, कुटकी, मुनगा की पत्तियों समेत स्थानीय उत्पादों के दम पर लड़ी जाएगी। मुख्य सचिव आरपी मंडल के निर्देश पर विभाग ने आकांक्षी जिलों की रैकिंग सुधारने की कार्ययोजना तैयार की है। इसके तहत पौष्टिक आहार के साथ नियमित स्वास्थ्य जांच और टीकाकरण समेत अन्य उपाय किए जाएंगे। मुख्य सचिव मंडल ने विभागों को लक्ष्य निर्धारित करके अभियान के रूप में कार्ययोजना के क्रियान्वयन करने के निर्देश दिए गए हैं। बैठक में महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य विभाग और नगरीय प्रशासन विभाग ने अपनी कार्ययोजना की जानकारी दी।

मिशन मोड में काम करने के निर्देश

बस्तर संभाग और जिला प्रमुखों की बैठक में मुख्य सचिव मंडल के अनुसार आकांक्षी जिलों के विकास संबंधी मापदंडों के प्रगति की जानकारी स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा वीडियों कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ली जाती है। उन्होंने बस्तर संभाग के सभी जिलों में विशेष कार्ययोजना बनाकर मिशन मोड में काम करने के निर्देश प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए है। मंडल ने कुपोषण मुक्ति, स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका, ग्रामीण विकास सहित अन्य जरूरी विषयों पर विशेष और प्रभावकारी रणनीति बनाकर उसका क्रियान्वयन करने की जिम्मेदारी संबंधित विभाग के सचिव और कलेक्टरों को दिए हैं।

कृषि उत्पादों का सही उत्पादन और इस्तेमाल दूर कर सकता है कुपोषण

मुख्य सचिव की बैठक में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस.के. पाटिल ने बताया कि कृषि उत्पादों का सही उत्पादन और इस्तेमाल करके कुपोषण को दूर किया जा सकता है, स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है। ग्रामीणों की आय में बढ़ोतरी की जा सकती है। उन्होंने शकरकंद की विशेष प्रजाति के विषय में जानकारी दी। इसके साथ ही कोदो, कुटकी, मुनगा की पत्तियों का इस्तेमाल भी पोषण स्तर में सुधार लाने में सहायक है। पोषण वाटिका के रूप में पोषक तत्वों से भरपूर स्थानीय कंदमूल भाजी आदि का उत्पादन किया जा सकता है। स्थानीय समूहों द्वारा इसका प्रसंस्करण करके स्थानीय आंगनबाड़ी केंद्रों, स्कूलों और पंचायतों में गरम भोजन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

वनोपजों का होगा उपयोग

प्रधान मुख्य वन संरक्षक राकेश चतुर्वेदी ने जानकारी दी कि लघु वनोपज के माध्यम से रोजगार निर्माण के दिशा में काम किया जाएगा। स्वसहायता समूहों के माध्यम से बांस के ट्री-गार्ड, बैग, लघु वनोपज का संग्रहण और प्रसंस्करण किया जाएगा। इसके साथ ही शहद के उत्पादन व प्रसंस्करण का काम भी स्थानीय समूहों के द्वारा किया जाएगा। स्थानीय वनोपजों का इस्तेमाल कुपोषण मुक्ति के लिए किया जाएगा।

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