BSP : भारत में 3.04 फीसद कम हुआ इस्पात उत्पादन

भिलाई। भिलाई इस्पात संयंत्र इस्पात उत्पादन और फिनिश्ड प्रोडक्ट को लेकर परेशान है। एक्सपांशन प्रोजेक्ट के तहत स्टील मेल्टिंग शॉप-3 चालू किया गया। लेकिन उत्पादन रफ्तार नहीं पकड़ रहा। इस वजह से हॉट मेटल का प्रोडक्शन बीएसपी को कम करना पड़ रहा है। वहीं, दुनिया के 64 देशों में इस्पात उत्पादन का अक्टूबर में 2.8 प्रतिशत ग्राफ गिर गया। इनमें भारत को भी झटका लगा है। पिछले साल अक्टूबर की तुलना में इस बार 3.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। भारत ने 9.1 मिलियन टन क्रूड स्टील का उत्पादन किया है। दुनिया के 64 देशों के अक्टूबर में इस्पात उत्पादन की रिपोर्ट वर्ल्ड स्टील एसोसिएशन ने जारी किया है।

इसमें कहा गया है कि इस साल अक्टूबर में दुनियाभर में 151.5 मिलियन टन इस्पात का उत्पादन हुआ है, जो अक्टूबर 2018 की तुलना में 2.8 फीसद कम है। वहीं, क्रूड स्टील प्रोडक्शन में चीन का दबदबा कायम है। 81.5 एमटी प्रोडक्शन चीन ने किया, लेकिन इसे भी इस बार 0.6 फीसद का झटका लगा है। दूसरे नंबर पर भारत है।

उत्पादन के मामले में तीसरे नंबर पर जापान है। जापान ने 8.2 एमटी उत्पादन किया, जो पिछले साल अक्टूबर की तुलना में 4.9 फीसद कम है। साउथ कोरिया को 3.5 प्रतिशत का नुकसान उठाना पड़ा है। जर्मनी को 6.8 फीसद, फ्रांस को 10.6 प्रतिशत, स्पेन को 7.6 फीसद कम उत्पादन से नुकसान हुआ।

यूनाइटेड स्टेट ने 7.4एमटी प्रोडक्शन किया, जो इस बार दो फीसद कम है। सबसे बड़ा नुकसान ब्राजील को हो रहा है। अक्टूबर 2019 में 2.6 एमटी उत्पादन किया, जो 2018 की तुलना में 19.4 प्रतिशत की गिरावट है। मांग कम होन से नुकसान करने वालों में तुर्की का भी नाम है। 15 प्रतिशत कम उत्पादन करना पड़ा। यूक्रेन ने 12.7 प्रतिशत कम प्रोडक्शन किया।

बीएसपी को झेला रहा एसएमएस-3

भिलाई स्टील प्लांट-बीएसपी का इस्पात उत्पादन इस वक्त करीब 13 से 15 हजार टन रोज हो रहा है। कुल आठ हैं। लेकिन फर्नेस नंबर-6, 7 और आठ से ही उत्पादन किया जा रहा। शेष कैपिटल रिपेयर या अन्य खामियों से मरम्मत में हैं। बीएसपी प्रबंधन का कहना है कि इस्पात की खपत स्टील मेल्टिंग शॉप-3 में होती है। लेकिन यहां उत्पादन में रफ्तार बहुत कम है।

विदेशी तकनीकी का सिस्टम अपेक्षाकृत काम नहीं कर रहा। एसएमएस-3 में रोज करीब 30-32 हीट होना चाहिए। अभी करीब 22 हीट ही हो रहा है। ऐसे में हॉट मेटल बनाकर करेंगे क्या। इससे लागत बढ़ेगी और नुकसान होगा। इसलिए उत्पादन कम किया जा रहा है। जब तक व्यवस्था पटरी पर नहीं आ जाती। वहीं, यूनिवर्सल रेल मिल का उत्पादन भी लक्ष्य के मुताबिक नहीं हो रहा है।

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