दिल्ली में व्यस्कों से ज्यादा यौन शोषण का शिकार हो रहे बच्चे, डराने वाले हैं ये आंकड़े

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में व्यस्कों से ज्यादा बच्चे, यौन शोषण का शिकार हो रहे हैं। आंकड़े डराने वाले हैं। दिल्ली पुलिस एक नहीं, बल्कि कई बार बच्चों की सुरक्षा के लिए गंभीरता से काम करने का दावा कर चुकी है, मगर अपराध के आंकड़े हर बार उनके दावे की पोल खोल देते हैं। पिछले दो सालों की बात करें, तो बच्चों के साथ होने वाली यौन हिंसा की घटनाओं में 17 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

इसी सप्ताह प्रजा फाउंडेशन ने दिल्ली में हो रहे अपराधों को लेकर जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें ये बात सामने आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दो वर्ष में बच्चों के साथ यौन शोषण की घटनाएं 17 फीसदी तक बढ़ गई हैं। साल 2016-17 में बच्चों के साथ दुष्कर्म के मामलों का 46 फीसदी था, तो वहीं 2017-18 में यह 52 फीसदी हो गया। इसके अगले साल यानी 2018-19 में यौन शोषण के मामले 63 फीसदी तक पहुंच गए। अपराध का ये बढ़ता आंकड़ा दिल्ली वालों को डरा रहा है। अभिभावक अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। बच्चों के साथ यौन शोषण की सबसे ज्यादा घटनाएं रोहिणी जिला, उत्तर-पश्चिम जिला और बाहरी जिले में हो रही हैं।

बढ़ रहे हैं बच्चियों के अपहरण के मामले

रिपोर्ट के मुताबिक राजधानी में लड़कों के अपहरण के मामले कम तो हुए हैं, लेकिन लड़कियों के अपहरण का प्रतिशत लगातार बढ़ता जा रहा है। साल 2015-16 में दर्ज अपहरण के कुल मामलों में से 56 फीसदी लड़कियां अगवा की गई थीं। इसके अगले साल 2016-17 में अपहरण के मामलों की संख्या बढ़कर 61 फीसदी हो गया। 2017-18 में किडनैपिंग के कुल मामलों में से 65 फीसदी लड़कियों का अपहरण हुआ था। 2018-19 में वह बढ़ कर 70 फीसदी पर पहुंच गया।

डीसीपी मंदीप सिंह रंधावा के अनुसार, बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन शोषण के मामलों में पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज किया जाता है। इसके तहत आरोपी को ज्यादा सजा मिलती है। ऐसे मामलों की जांच एक तय समय के भीतर पूरी की जाती है। इसके बाद अदालत भी तय समय सीमा में ही मामले की सुनवाई पूरी कर दोषी को सजा देती है। पॉक्सो एक्ट में न केवल दोषी, बल्कि उन लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई होती है, जो जानकारी होने के बावजूद ऐसे मामलों को छुपाते हैं। इस तरह के अपराध रोकने के लिए पुलिस लगातार जागरूकता अभियान चलाती है।

बच्चों के साथ होने वाले अपराधों बाबत अभिभावकों को सचेत करने के लिए जागरूकता शिविर लगाए जाते हैं। दिल्ली पुलिस ने निर्भीक कार्यक्रम के तहत स्कूलों में जाकर बच्चों को इस एक्ट से संबंधित जानकारी दी हैं। बच्चों को बताया जाता है कि ‘गुड और बैड टच’ में क्या फर्क होता है। इसके अलावा पुलिस ने कई स्कूलों में कंप्लेंट बॉक्स लगाए हैं, जहां पर बच्चे अपनी शिकायत सीधा डाल सकते हैं। डीसीपी मंदीप सिंह रंधावा बताते हैं कि ऐसे मामलों में जल्द से जल्द सजा करवाने के लिए दो महीने के भीतर पुलिस आरोप पत्र तैयार कर उसे अदालत में दाखिल करती है। यही वजह है कि अपराधियों को सजा दिलवाने के प्रतिशत में भी काफी सुधार हुआ है।

बच्चों के साथ होने वाले अपराध के आंकड़े

अपराध                     2016-17     2017-18     2018-19
दुष्कर्म के कुल मामले        2153           2207         1965
बच्चों से दुष्कर्म                  991            1137         1237
बच्चियों का अपहरण           44%           61 %         70 %
लडकों का अपहरण           56 %          39 %          30%
कुल बच्चों का अपहरण       6017          5757          5555

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