छत्‍तीसगढ़ से सटे ओडिशा के 151 गांवों में नक्सल फरमान, मोबाइल रखा तो मिलेगी मौत

जगदलपुर।  छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले से सटे ओडिशा के मलकानगिरी जिले के बालीमेला हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के कट ऑफ एरिया में बसे 151 गांवों में दहशत बढ़ गई हैं। इस इलाके में नक्सलियों ने मोबाइल के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है। ग्रामीणों को चेतावनी दी है कि यदि किसी के पास मोबाइल मिला या इस्तेमाल करता पाया गया तो उसे प्रजा कोर्ट में मौत की सजा दी जाएगी। यह फरमान न केवल ग्रामीणों के लिए है बल्कि वहां के अधिकारियों और -कर्मचारियों के लिए भी है। दहशत में लोगों ने अपने पास मोबाइल रखना छोड़ दिया है।

कट ऑफ एरिया में काम करे रहे शिक्षक, स्वास्थ्य कर्मियों व अन्य कर्मचारियों के लिए इससे काफी परेशानियां उत्पन्न् हो गई हैं। नक्सलियों ने अपना पैगाम प्रमुख पंचायत अण्ड्रापाली के आरापदर गांव के सरकारी नोटिस बोर्ड पर लिखा है। क्षेत्र में कई स्थानों पर सरकारी बोर्ड पर चेतावनी लिखी गई है। इसमेंं कहा गया है कि अगर ग्रामीण मोबाइल का इस्तेमाल करना चाहें तो उन्हें पहले अनुमति लेनी होगी।

यहीं से कलेक्टर को उठा ले गए थे नक्सली

विकास से कोसों दूर चित्रकोण्डा ब्लॉक का कट ऑफ एरिया नक्सलियों का सुरक्षित पनाहगार रहा है। यहां नक्सलियों ने 29 जून 2008 को आंध्र प्रदेश के ग्रे हाउंड जवानों की वोट पर हमला कर 38 जवानों को मार गिराया था वहीं फरवरी 2011 में तत्कालीन कलेक्टर आर विनिल कृष्णा का अपहरण कर लिया था। यह इलाका नक्सलियों द्वारा गांजे की खेती कराने को लेकर भी चर्चित है। पहले इन गांवों तक पहुंचने के लिए जलमार्ग ही एकमात्र सहारा था पर 27 जुलाई 2018 को इस इलाके में गुरुप्रिया सेतु के लोकार्पण के साथ ही नक्सलियों और सरकार के बीच यहां सीधे जंग शुरू हो गई है।

पहुंची बीएसएफ, कैंप बनाकर लहराया तिरंगा

चित्रकोण्डा के कट ऑफ एरिया में विकास के लिए ओडिशा सरकार ने इसे स्वाभिमान अंचल का नाम दिया है। वहीं शनिवार को इलाके के जोड़ाआम्बा पंचायत के हंतालगुड़ा गांव में बीएसएफ का पहला कैंप खोलकर तिरंगा लहराया गया। जिसका ग्रामीणों ने भी उत्साह के साथ स्वागत किया। विकास से अछूते इलाके में सरकार और पुलिस के बढ़ते कदम से युवा वर्ग काफी उत्साहित है। वहीं नक्सलियों तथा गांजा तस्करों पर बढ़ते दवाब और मुखबिरी रोकने नक्सलियों ने इलाके में मोबाइल पर बैन लगा दिया है।

इनका कहना है

नक्सली खुद तो मोबाइल इस्तेमाल कर रहे हैं और गांव वालों को रोक रहे हैं। दरअसल फोर्स के बढ़ते दबाव से माओवादी बौखला गए हैं।

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