Laxman Temple Chhattisgarh : ताजमहल से पुराना है ये ‘प्रेम का प्रतीक’, ऐसे हो गया था तबाह

महासमुंद। सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर देश-दुनिया में विख्यात है। यह स्थान अपने सीने में कई इतिहास समेटे हुए है। इसे देवभूमि भी कहा जाता है, जो विभिन्न संप्रदाय के मंदिर, मठों और देवालयों से सजा हुआ है। छत्तीसगढ़ के सिरपुर में लाल ईंटों से बना मौन प्रेम का साक्षी लक्ष्मण मंदिर है। बाहर से देखने पर यह सामान्य हिंदू मंदिर की तरह ही नजर आता है, लेकिन इसके वास्तु, स्थापत्य और इसके निर्माण की वजह से इसे लाल ताजमहल भी कहा जाता है।

यह मंदिर कौशल प्रदेश के हर्ष गुप्त की विधवा रानी वासटा देवी के अटूट प्रेम का प्रतीक बताया जाता है। राजधानी रायपुर से लगभग 78 किमी दूर है सिरपुर। इसे 5वीं शताब्दी के आसपास बसाया गया था। ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि यह छठी सदी से 10वीं सदी तक बौद्ध धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल रहा।

खुदाई में यहां पर प्राचीन बौद्ध मठ भी पाए गए। 12वीं सदी में आए एक विनाशकारी भूकंप ने इस जीवंत शहर को पूरी तरह से तबाह कर दिया था। कहते हैं कि इस आपदा से पहले यहां बड़ी संख्या में बौद्ध लोग रहा करते थे। प्राकृतिक आपदाओं के कारण उन्हें इस शहर को छोड़ना पड़ा। इस तरह धीरे-धीरे यह शहर वक्त की धूल में कहीं खोता चला। बाद में इसे फिर से बसाया गया।

स्थापत्य शैली

एक बहुत बड़े मंच पर पूरी तरह से ईंट का बना हुआ यह अत्यंत भव्य मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इसमें उत्तर और दक्षिण दिशा की ओर से मंदिर प्रांगण में ऊपर पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हैं, मंदिर में एक गर्भगृह, अंतराल और मंडप शामिल है। मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर शेषदायी भगवान विष्णु को उकेरा गया है।

इस पर भगवान विष्णु के प्रमुख अवतार और विष्णु लीला के दृश्यों का भी वर्णन है। मंदिर के गर्भगृह में पांच फन वाले सर्प पर आसीन लक्ष्मण की मूर्ति है, जो शेषनाग का प्रतीक है। संभवत: रानी ने खुद को उर्मिला के तौर पर देखा होगा जो 14 साल तक भगवान लक्ष्मण का वनवास खत्म होने का इंतजार करती रहीं।

गौरवशाली इतिहास

सिरपुर को कला के शाश्वत नैतिक मूल्यों व मौलिक स्थापत्य शैली के लिए पहचाना जाता है। यह भारतीय कला के इतिहास में विशिष्ट कला तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध था। साथ ही यह धार्मिक, आध्यात्मिक व ज्ञान-विज्ञान के प्रकाश से भी जगमग रहा है।

सिरपुर प्राचीन काल में श्रीपुर के नाम से विख्यात रहा। सोमवंशी शासकों के काल में इसे दक्षिण कौसल की राजधानी होने का गौरव भी हासिल था। इतिहासकारों के अनुसार छठी शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग भी यहां आया था। वहीं ऐतिहासिक जनश्रुतियां बताती हैं कि भद्रावती के सोमवंशी पाण्डव नरेशों ने भद्रावती को छोड़कर इसको बसाया था।

न आगरा के ताजमहल की बात की जाए तो शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में 1631-1658 के मध्य इसका निर्माण कराया था। वहीं सफेद संगमरमर से बने ताजमहल से लगभग 1100 साल पहले पूर्व शैव नगरी श्रीपुर में मिट्टी की ईंटों से बने स्मारक में विष्णु के दशावतार अंकित किए गए हैं, जिसे इसे लक्ष्मण मंदिर के नाम से जाना जाता है।

यह दक्षिण कौशल में पति प्रेम की निशानी भी है। भूगर्भ से उजागर तथ्यों से पता चलता है कि 635-640 ई. में रानी वासटा देवी ने राजा हर्षगुप्त की स्मृति में लक्ष्मण स्मारक का निर्माण कराया था। वासटा देवी मगध नरेश सूर्यवर्मा की बेटी थीं और वैष्णव धर्मावलंबी थीं।

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