बिलासपुर के नामकरण की कहानी, इस वीरांगना के कारण है शहर की पहचान

बिलासपुर। बिलासा केंवटिन… यह वह नाम है, जिसने बिलासपुर को पहचान दी और अपना नाम भी दिया। बिलासा केंवटिन और बिलासपुर का इतिहास 400 वर्ष पुराना है। बिलासा की धरा पर कभी अरपा कल-कल छल-छल करती हुई बहा करती थी। अरपा में तब बारहमासी पानी हुआ करता था। अरपा के आंचल में बिलासपुर खूब फला फूला। प्राकृतिक संसाधनों से लबालब बिलासा की धरती बिलासपुर ने विकास का इतिहास रच दिया है। एशिया का सबसे विशाल और भव्य छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट बिलासपुर के नक्शे पर छाया हुआ है। बिलासा की इस नगरी को न्यायधानी के रूप में भी पहचान मिली। प्रदेश के साथ ही बिलासपुर में बिलासा एक देवी के रूप में देखी जाती है। उनके ही नाम पर बिलासपुर शहर का नामकरण हुआ।

शनिचरी बाजार पड़ाव में बिलासा केंवटिन की एक आदमकद प्रतिमा लगी हुई है। बिलासा देवी के लिए प्रदेश के लोगों में विशेषकर केवट समाज में बड़ी श्रद्धा है और इसका एक सबूत यह भी है कि राज्य सरकार हर वर्ष मत्स्य पालन के लिए बिलासा देवी पुरस्कार भी देती है।

भारतीय सभ्यता का इतिहास निषाद, आस्ट्रिक या कोल-मुंडा से आरंभ माना जाता है। 400 वर्ष पहले अरपा नदी के किनारे, जवाली नाले के संगम पर इनके रहने का उल्लेख मिलता है। जब यहां निषादों के प्रतिनिधि उत्तराधिकारियों केवट – मांझी समुदाय का डेरा बना। नदी तट के अस्थायी डेरे, झोपड़ी में तब्दील होने लगे।

वीरांगना थी बिलासा देवी

बसाहट, सुगठित बस्ती का रूप लेने लगी। यही दृश्य में उभरी, लोक नायिका- बिलासा केंवटिन। बिलासा केंवटीन का गांव आज बिलासपुर जिले के नाम से विख्यात है। पूर्व के इतिहास पर नजर डालें तो बिलासा देवी एक वीरांगना थीं। 16वीं शताब्दी में जब रतनपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी हुआ करती थी तो राजा कल्याण सहाय बिलासपुर के पास शिकार करते हुए घायल हो गए थे।

उस समय बिलासा केंवटिन ने उन्हें बचाया था। इससे खुश होकर राजा ने उन्हें अपना सलाहकार नियुक्त करते हुए नदी किनारे की जागीर उनके नाम लिख दी थी।

प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा शहर आज महानगर का रूप ले रहा है। कलचुरीवंश की राजधानी रतनपुर बिलासपुर जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां महामाया देवी का मंदिर है। जो कि धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विख्यात है।

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