मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वन पर काबिज आदिवासियों की आवाज उठाते हुए वन विभाग के अधिकारियों के प्रति तल्खी दिखाते हुए कहा कि वे जंगल के मालिक नहीं है. वहां रहने वाले वनवासी हैं. अधिकारी इस बात को न भूलें. उन्होंने एनजीओ को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा कि एनजीओ से भी सहयोग सरकार को नहीं मिल रहा है.
वन आधारित जलवायु सक्षम आजीविका की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव पर राज्य स्तरीय परिचर्चा का आयोजन वन विभाग की ओर से नया रायपुर के आरण्य भवन में किया गया. कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अलावा मंत्री प्रेमसाय टेकाम के अलावा वन अमला, पर्यावरण विशेषज्ञ , जल विशेषज्ञ के साथ समिति के अनेक सदस्य मौजूद थे.
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी जिम्मेदारी की उनकी जीवन शैली बेहतर हो. जंगल के लोगों की प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने हमारा लक्ष्य है. आज जंगल में इंसान तो क्या जानवर भी नहीं रहना चाहते. हाथी, बन्दर, शेर जंगल छोड़ते जा रहे हैं. उनकी आवश्यकता की पूर्ति जंगल में नहीं हो पा रही. जलवायु परिवर्तन, दोहन जैसी वजह है. इनकी आवश्यकता कि पूर्ति की जिम्मेदारी हमारी है.
उन्होंने कहा कि जशपुर में चायपत्ती का उत्पादन और बस्तर में भी चाय व काफी का उत्पादन की कोशिश करें. गौठान होगा तो लोग ज्यादा से ज्यादा दूसरे कामों में लग सकेंगे. जंगल में रहने वाले लोगों ने अपने नाम पट्टा नहीं लिखवाया तो क्या ये उनकी गलती है. आदिवासियों के खेतों में भी सिंचाई की व्यवस्था होनी चाहिए.