न इलाज और न घर जाने का रास्ता… दिल्ली के अस्पतालों के मरीज़ बोले- कोरोना से नहीं पर भूख से जरूर मर जाएंगे

नई दिल्ली. देश में कोरोना वायरस (Coronavirus) के प्रसार को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 24 मार्च से 21 दिनों का लॉकडाउन लगा दिया है. शनिवार को लाकडाउन का चौथा दिन है. लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार दिहाड़ी मजदूरों, मरीजों, गरीबों और जरूरतमंदों पर पड़ी है. इनके पास न तो खाने के लिए पैसा है और न ही घर वापस लौटने का जरिया.  लॉकडाउन के प्रभावों का जायजा लेने के लिए दिल्ली के दो बड़े सरकारी अस्पतालों एम्स और सफदरजंग पहुंची, जहां दूसरे राज्यों और दूर-दराज के लोग इलाज के लिए आते हैं.

दोनों ही अस्पतालों में ज्यादातर वहीं मरीज और तीमारदार मिले, जो गरीब हैं और बहुत बुरी हालत में आसपास फुटपाथ में रहने को मजबूर हैं. लॉकडाउन की वजह से वो अपने घर नहीं लौट पाए और यहीं अपने मरीजों के साथ फंस गए हैं. पुलिस ने यहां एनजीओ या किसी निजी संस्था को लंगर लगाने की अनुमति भी नहीं दी है. लिहाजा ये लोग दो वक्त के खाने के लिए तरस रहे हैं. इनमें से कई लोग हैं, जिनके पेट में तीन दिनों से खाने का एक निवाला भी नहीं गया.

अस्पताल के बाहर रहने को मजबूर कुछ लोगों से हमारी टीम ने बात की. वो बताते हैं कि वे लोग घर तो जाना चाहते हैं, लेकिन कैसे जाएं. लॉकडाउन की वजह से सारी ट्रेनें और बसें कैंसिल हो गई हैं. कुछ लोगों को दावा है कि पुलिस एंबुलेंस को जाने की अनुमति दे रही है, लेकिन इस हालत में प्राइवेट एंबुलेंस घर छोड़ने के लिए मोटी रकम मांग रहे हैं. बिहार के एक शख्स ने दावा किया कि परिवार को घर छोड़ने के लिए एंबुलेंस 50 हजार रुपये मांग रहे हैं. वहीं अमरोहा के रहने वाले एक शख्स बताते हैं कि घर पहुंचाने के लिए प्राइवेट एंबुलेंस ड्राइवर ने उनसे 15 हजार रुपये मांगे. दूसरी ओर मुरादाबाद के एक दृष्टिहीन मरीज से घर छोड़ने के लिए 20 हजार का किराया मांगा गया.

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