रायपुर, 31 मार्च 2020। कोरोना वायरस से गर्भवती व शिशुवती महिलाओं को भी खतरा होने को लेकर मनोवैज्ञानिक दबाव महसूस होना स्वाभाविक है। बेंगलुरु स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट फार मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (निम्हांस) पेरिनटल मेंटल हेल्थ सर्विसेस द्वारा कोरोना वायरस से बचाव को लेकर गर्भवती महिलाओं को कुछ जरूरी तरीके बताए गए हैं। निम्हांस के अनुसार, गर्भवती महिला को कोरोना वायरस के प्रकोप से बचने के लिए मानसिक तौर पर दबाव और गर्भ में पल रहे बच्चे और प्रसव बाद शिशु के देखभाल को लेकरकुछ खास बातों का बारीकी से ख्याल रखना होगा। बच्चे के स्तनपात को लेकर चिंता मुक्त करते हुए परिवार के सदस्यों द्वारा देखभाल करना बेहद जरुरी है। ऐसा करने से न सिर्फ महिला सुरक्षित रहेंगी, बल्कि बच्चे की सेहत पर भी इसका बुरा असर नहीं पड़ेगा।
निमहांस के अनुसार अभी तक की जानकारी में ऐसे साक्ष नहीं मिले हैं जिनसे कहा जाए कोरोना वायरस से गर्भवती महिलाओं को गर्भपात का खतरा है या संक्रमित महिलाकागर्भ भी संक्रमित हो सकता है| नवजात शिशु या छोटे बच्चों को कोरोना वायरस से ज्यादा खतरा नहीं है लेकिन गर्भवती महिलाओं और शिशुवातियोंको जांचें करवाते रहना चाहिए| यह भो ज़रूरी है कि प्रसब अस्पताल में ही हो और बच्चों को माँ का दूध ही देना चाहिए जिससे उनकी रोग प्रतोरोधक शक्ति बढती है| अभी तक ऐसा कोई साक्ष सामने नहीं मिला है जिससे समझा जाए माँ के दूध से कोविड-19का संक्रमण होता है|
यह भी ज़रूरी है कि संक्रमित माँ को बच्चे से दूर न किया जाए बल्कि उसे और ज्यादा सतर्क बरतने की ज़रुरत है जब वह शिशु को दूध पिला रही हो या गोद में रखे हो |
रायपुर स्पर्श क्लीनिक के मनोचिकित्सक डॉ डीएस परिहार ने बताया, अब तक के कोरोना वायरस से गर्भवस्था में जोखिम व गर्भपात जैसे खतरे सामने नहीं आए हैं। वायरस के प्रभाव से बच्चे के शाररिक व मानसिक विकास पर कोई असर डालेगा या नहीं यह तथ्य सामने नहीं आया है। डॉ परिहार ने कहा वायरस से बचाव के लिए सोशल डिसटेंसिंग बनाए रखने के लिए लॉकडाउन किया गया है| इससे गर्भवती महिलाओं में चिंता हो है कि कहीं वायरस के प्रभाव से गर्भ में पल रहे बच्चे में असामान्यता तो पैदा नहीं होगी। फिलहाल डब्लूएचओ की ओर से जारी रिपोर्ट में शिशुओं व गर्भवती माताओं पर वायरस के प्रभाव के कोई लक्षण सामने नहीं आए हैं। इसके बावजूद इस समय गर्भवती महिलाओं के मन में भी कई सवाल उठ रहे होंगे।
इन बातों का रखें ध्यान
1. नियमित रूप से साबुन या सैनिटाइजर से हाथ धोते रहें।
2. आंख, मुंह या नाक पर हाथ लगाने से बचें।
3. अन्य लोगों से निश्चित दूरी बनाकर रखें।
4. खांसने या छींकने से पहले मुंह पर हाथ, टिश्यू या रुमाल जरूर रखें।
5 .नियमित रूप से प्रसवपूर्व जांच, अल्ट्रासाउंड, मातृ और भ्रूण की जांच में सावधानियां रखें।
6 .बच्चे को जन्म देने के लिए सबसे सुरक्षित जगह एक अस्पताल में है।
7 .स्तनपान के लिए माता को प्रोत्साहित कर इस दौरान मास्क लगाना चाहिए।
8. अगर मां को कोविद-19 संक्रमण का संदेह पर बच्चे से स्वतः अलग होने के लिए प्रोत्साहित करें।
इन लक्षणों से होगी मानसिक तनाव की पहचान
• सभी सावधानियां बरती जाने के बाद भी संक्रमण के बारे में अत्यधिक चिंता होना।
• चिंता के कारण नींद की कमी होना।
• कोविद-19 के बारे में सोशल मीडिया संदेशों पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करना।
• परिवार के सदस्यों में संक्रमण नियंत्रण प्रक्रियाओं के बारे में अत्यधिक चिंतित होना।
• बेवजह किसी काम के बारे में बहुत ज्यादा चिंता करना।
• अलगाव के कारण और परिवार से मिलने में सक्षम न होने से दुखी और गुस्सा करना।
• घबराहट, बेचैनी या किनारे पर महसूस करना।
• चिंता को रोकने या नियंत्रित करने में सक्षम नहीं होना।
• आराम करने में परेशानी।
• इतना बेचैन होना कि बैठना मुश्किल हो जाए।
• सामान्य बातमेंभी नाराज या चिड़चिड़ा होना।
• कुछ भयानक घटना होने को लेकर डर लगना।
तनाव व चिंता मुक्त रहने के चार तरीके-
1. साझा करना – किसी भी प्रकार के मानसिक चिंता महसूस होने पर अस्पताल के डॉक्टर व एएनएम के साथ समस्याओं को साझा करते हुए फोन से बात करें। खुद को व्यस्त करने समय सारणी बनाकर आराम, शौक, काम और व्यायाम करें। रिश्तेदारों व दोस्तों के साथ फोन व वीडियो कॉल से बातचीत कर अकेलापन न रहें। सोशल मीडिया के माध्यम से नकारात्मक संदेशों से भरे ग्रुप से बाहर रहें। खाली समय में अपने परिवार के साथ दूसरों साथ चित्रों को साझा करें।
2. तैयारी और योजना – चिंता को रोकने के लिए योजना बनाना का एक अच्छा तरीका है। एम्बुलेंस सेवाओं, दोस्तों का फोन नंबर अपने पास रखें। प्रसव के समय ये सूचित करना कि उनकी मदद की आवश्यकता है। ऐसे दस्तावेज जो अस्पताल का जच्चा बच्च कार्ड की जिन्हें लॉकडाउन के दौरान पुलिस को बताने की जरुरत पडने पर बताया जा सके। बच्चे के जन्म के बाद शिशु रोग विशेषज्ञ का मोबाइल नंबर जिससे टीकाकरण की जानकारी मिल सके।
3 .चिंताजनक विचारों में कमी लाना – मुख्य चिंता को रोकना जैसे लॉकडाउन के दौरान पति किराने का सामान लेकर घर कब तक पहुंचेगा। सकारात्मक विचारों का आदान प्रदान गभर्वती महिलाओं के साथ करें। साकारात्मक भाव से बातचीत कर मन को हल्का करें। एक ऐसी गतिविधि की पहचान करें जिसे आप आनंद लेकर उसमें डूब जाते हैं जैसे – पढ़ना, सुननासंगीत, एक पहेली सुलझाना, टहलने जाना, अपने आस-पास के बच्चों के साथ खेलना, एक नई कोशिश करना। आम अलमारी साफ करना, कुछ बनाना, डायरी व ब्लॉग लेखन कर सकते हैं। खुद को सुकून मिले इसके लिए अनमोल वचन, संगीत व पुस्तक भी पढें।
4 आराम और ध्यान – आराम करने के तरीके खोजें – योग, ध्यान, गहरी साँस,सचेतन,सरल विश्राम अभ्यास, दिमाग की साँस लेना, अपनी आँखें बंद करें, एक कुर्सी पर या बिस्तर पर आराम करें।
परिवार के सदस्य महिला की मदद कैसे करें-
अत्यधिक चिंता या मनोवैज्ञानिक संकट के संकेतों से अवगत रहें। महिला की चिंताओं को कम आंकने की कोशिश न करें । महिला की कुछ चिंताओं को दूर करने की कोशिश करके स्वास्थ्य सेवा के बारे में बताएं। उन्हें दिनभर अच्छी बातों में शामिल करें। आप खाली समय में खेलने व कुछ कलात्मक चीजें बनाएं। अस्पताल में उपलब्ध सुविधाओं को लेकर परिवार के सदस्य बात करें। प्रसव के दौरान रक्त की व्यवस्था भी करें। लॉकडाउन के दौरान बच्चे का देखभाल और आराम करने का सरल तरीका परिवार के सदस्य बताएं। अगर महिला बार-बार चिंतित महसूस करती हैं तो किसी अच्छी चीजों के बारे में बातीचीत करें। नवजात शिशु व मां को पर्याप्त नींद लेना चाहिए। बच्चे को लोरी सुनाएं। लॉकडाउन में जन्मोत्सव कार्यक्रम को संदेश भेजकर परिजन प्रसव बाद महिला के मानसिक दबाव को कम कर सकती है।
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लॉक डाउन: गर्भावस्था व प्रसव के बाद महिलाओं को संक्रमण से चिंता मुक्त रहने व बचाव के निम्हांस ने दिए टिप्स
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